एक विद्यार्थी मात्र।

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण-41, [शिवश्च तेऽध्वास्तु हरिप्रवीर]

अल्पशेषमिदं कार्यं दृष्टेयमसितेक्षणा देवी सीता का दर्शन तो कर लिया, अब मेरे इस कार्य का अल्प अंश शेष रह गया है। त्रीनुपायानतिक्रम्य चतुर्थ इह दृश्यते…

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण-40, सुन्‍दरकाण्ड [समाधानं त्वं हि कार्यविदां वरः]

शत्रु की सामर्थ्य एवं सुदृढ़ स्थिति के योग्य प्रतिरोधी समक्ष थे, सीता सब जान लेना चाहती थीं, अपनी सेना की सामर्थ्य, सबसे पहले यह कि सेना इस पार आयेगी कैसे?

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण -39, सुन्‍दरकाण्ड [ त्वया नाथवती नाथ ह्यनाथा इव दृश्यते]

विवाहिता नारी द्वारा बहुधा जो बातें पति से नहीं कही जातीं, देवर के माध्यम से बता दी जाती हैं – प्रियो रामस्य लक्ष्मणः, यथा हि वानरश्रेष्ठ दुःखक्षयकरो भवेत्।

Devanagari देवनागरी वर्णमाला की राम राम : सरल संस्कृत – ३

सरल संस्कृत पर कुछ दिनों पूर्व हमने लेखशृङ्खला आरम्भ की थी जिस पर विराम लग गया। हमने सीधे बोलने से आरम्भ किया था। सम्भवत: वर्णमाला से आरम्भ न करने के कारण यह विघ्न आया क्यों कि पहले देव आराधना तो होनी चाहिये थी। देव आराधना का क्या अर्थ है?

Balanced Scorecard छान्‍दोग्य उपनिषद : अत्स्यन्नं पश्यसि प्रियमत्त्यन्नं पश्यति प्रियं भवत्

छांदोग्य में ऋग्वैदिक दृष्टि की पुष्टि …. जो अन्न भोग करता है, जो देखता है, जो प्राण धारण करता है और जो इस ज्ञान का श्रवण करता है, वह मेरी सहायता से यह सब करता है। और जो मुझे मानते-जानते नहीं, वे नष्ट हो जाते हैं। हे प्राज्ञ मित्र ! तू सुन, तुझे मैं श्रद्धेय ज्ञान को कहती हूँ।

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण -38, सुन्‍दरकाण्ड [सामर्थ्यादात्मन: च]

देवी सीता के वचन सुन कर वाक्यविशारद कपिश्रेष्ठ हनुमान को सन्तोष हुआ एवं कहने लगे,” हे शुभदर्शना देवी ! आप ने जो कुछ कहा वह एक साध्वी एवं विनयसम्‍पन्न स्त्री के स्वभाव अनुसार है। पीठ पर अधिष्ठित हो विस्तीर्ण शतयोजनी सागर पारने में एक स्त्री समर्थ नहीं ही होगी।

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण -37, सुन्‍दरकाण्ड [कुरुष्व मां हर्षिताम्]

मारुति हनुमान ने सीता के वचन सुने तथा सोचने लगे कि यह तो मेरा नया तिरस्कार हो गया ! कवि ने उनके लिये लक्ष्मीवान् (लक्ष्मी – लक्ष्-इ मुट् च) संज्ञा का भी प्रयोग किया है क्यों कि वे सम्पदा से युक्त थे। सम्पदा क्या थी?

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी : Tiny Lamps लघु दीप – 20

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी – शताब्दियों पुरानी रामचरितमानस प्रति में? क्या ‘शूद्र’ पर अत्याचारों का नरेटिव स्थापित करते समय इस चौपाई के साथ छेड़छाड़ की गयी?

Vishnu Puran विष्णुपुराण [पुराण चर्चा – 1, विष्णु दशावतार तथा बुद्ध – 9]

Vishnu Puran विष्णुपुराण तब अपना रूप प्राप्त कर चुका था जब परशुराम संज्ञा प्रचलित हो गयी थी, तथा राधा से सम्बंधित सम्प्रदाय अभी भविष्य के गर्भ में थे।

Varah Puran वराहपुराण [पुराण चर्चा – 1, विष्णु दशावतार तथा बुद्ध – 8]

नारद साक्षात यम से पूछते हैं कि वेदपवित्र जन से शूद्रों को बहिष्कृत कर रखा है। उनके लिये जो श्रेयस्कर है, जो हितकर कर्म हैं, बतायें, जो उन्हें करना चाहिये।

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण -36, सुन्‍दरकाण्ड [हर्षविस्मितसर्वाङ्गी]

देवी देवताओं की ही भाँति वाहन बना निज आरोहण का प्रकट आह्वान था तो ‘शोभने’ सम्बोधन में मानों सङ्केत भी था कि ऐसा करना अशोभन होगा, मैं तो प्रस्तुत हूँ !

Narad Puran नारदपुराण [पुराण चर्चा – 1, विष्णु दशावतार तथा बुद्ध – 7]

विष्णु के नयनों के जल से बिन्दुसर जिसमें स्नान से शङ्कर के हाथ से ब्रह्मा का कपाल छूटा, कपालमोचन तीर्थ बना। विष्णु काशी में बिन्‍दुमाधव नाम से विराजमान हुये

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

वाल्मीकीय रामायण से – 35, सुन्‍दरकाण्ड [रामस्य शोकेन समानशोका]

रामस्य शोकेन समानशोका … हे वानर ! जो तुमने यह कहा कि राम का मन अन्य की ओर लगता ही नहीं एवं वे शोकनिमग्न रहते हैं, वह मुझे विषमिश्रित अमृत के समान लगा है ।

Agni Puran अग्निपुराण [पुराण चर्चा – 1, विष्णु दशावतार तथा बुद्ध – 6]

Agni Puran अग्निपुराण : अश्वशिर (हयग्रीव) एवं दत्तात्रेय, दो अन्य नाम हैं जो अन्य पुराणों की अवतार सूचियों में उपस्थित रहे हैं।

Minority अल्पसंख्यक कौन हैं? भारतीय विधि विधान का सच

Minority अल्पसंख्यक , भारतीय संविधान में न कोई मानदण्ड हैं, न ही जनसंख्या प्रतिशत सीमायें ही निर्धारित हैं, केन्द्रीय अधिसूचनाओं द्वारा निर्धारित।

Matsya Puran मत्स्य पुराण [पुराण चर्चा -1 : विष्णु दशावतार तथा बुद्ध – 5]

Matsya Puran मत्स्य पुराण में परशुराम संज्ञा नहीं है, न उनके अवतरण की कोई कथा एवं न ही किसी प्रतिशोध की। भार्गव राम या राम जामदग्न्य उल्लिखित हैं।

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

Valmiki Ramayan Sundarkand रामायण-34..रामं रामार्थयुक्तं विरराम रामा

न चास्य माता न पिता च नान्यः स्नेहाद्विशिष्टोऽस्ति मया समो वा ।
तावत्त्वहं दूत जिजीविषेयं यावत्प्रवृत्तिं शृणुयां प्रियस्य ॥
न माता से, न पिता से एवं न किसी अन्य से उनका प्रेम, मेरे प्रति प्रेम से विशिष्ट है (अर्थात मेरे प्रति उनका प्रेम समस्त सम्बन्‍धों के प्रेम से विशिष्ट है)।
अत:, हे दूत ! मेरी जीने की इच्छा तब तक ही बनी रहनी है, जब तक मैं अपने प्रिय का वृतान्‍त सुनती रहूँ।

आदिकाव्य रामायण से – 33, सुन्‍दरकाण्ड [विक्रान्तस्त्वं समर्थस्त्वं प्राज्ञस्त्वं वानरोत्तम]

Valmiki Ramayan Sundarkand वाल्मीकीय रामायण सुन्‍दरकाण्ड : तुम विक्रान्‍त हो, समर्थ हो, प्राज्ञ हो, तुमने अकेले ही राक्षस राजधानी को प्रधर्षित कर दिया है।

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

आदिकाव्य रामायण से – 32, सुन्‍दरकाण्ड [हनूमन्तं च मां विद्धि तयोर्दूतमिहागतम्]

मारुति का श्रीराम के गुह्य अङ्गों का अभिजान देवी सीता के मन में विश्वास दृढ़ करने में सहायक हुआ कि यह अवश्य ही उन्हीं का दूत है, कोई मायावी बहुरूपिया राक्षस नहीं। आगे हनुमान स्वयं कहते भी हैं – विश्वासार्थं तु वैदेहि भर्तुरुक्ता मया गुणा:। आदि कवि भी पुष्टि करते हैं – एवं विश्वासिता सीता हेतुभि: शोककर्शिता, उपपन्नैरभिज्ञानैर्दूतं तमवगच्छति। 

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

आदिकाव्य रामायण से – 31, सुंदरकांड [कीदृशं तस्य संस्थानं रूपं रामस्य कीदृशम्]

आदिकाव्य रामायण : उपस्थिति सुहावन थी किन्‍तु जनस्थान की स्मृति भी थी। वानर सौम्य है, मन विश्वास करने को कहता था। अविश्वास भी, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही?