मयूरभट्ट तथा उसके मयूराष्टक

मयूरभट्ट व उसके मयूराष्टक का ललित अनुशीलन

यह मयूरभट्ट था कौन? वामहस्त-प्रशस्ति के रूप में इसका परिचय मात्र इतना प्राप्त होता है कि यह बाणभट्ट का श्यालक था, हर्षवर्धन की राज्यसभा में था तथा इसकी बाण से कुछ प्रतिद्वन्द्विता थी। इतिहास जहाँ पर तथ्यों को अङ्कित करने में अपने पृष्ठ मूँद लेता है, वहाँ तथ्यों को सँजोने का कार्य लोक-जिह्वा करती है। किन्तु लोक की संचय-रीति तथ्यात्मक नहीं होती, वह कथात्मक हो जाती है। अतः लोक में प्रचलित मयूरभट्ट के सम्बन्ध में एक कथा है किन्तु उस कथा के पूर्व एक उपकथा भी है।

Autumn शरद

श्वेत धनुतोरण के नीचे,

और मेरा हिय, निज दु:ख धर धीर प्रयास
जब कि वासन समस्त
विदीर्ण खण्ड खण्ड,
चलता है नङ्गे पाँव,
और हो कर अन्‍ध।

Wake उत्सवी अवसर

प्रेमी वही जो बहने दे जैसे जल जाने देता। प्रस्तुत कविता सम्भोग समय स्त्री मन की अपेक्षाओं को उपमाओं एवं अन्योक्ति शैली में अभिव्यक्ति देती है।

दिन सदैव सूरज का

अरुणोदय हो रहा था। क्षितिज कांतिमान एवं पाटल हो चला था, मानो एक बहुत ही उज्ज्वल भविष्य का आगम बाँच रहा हो। मौसी मुझे अलिंद की ओर ले चलीं एवं शनै: शनै: उदित होते सूर्य की ओर इङ्गित कीं,“जानती हो? दिन सदैव सूरज का होता है।“

Muri muri hui hui मौन से भी मृदु

माओरी गीतों में युद्ध, प्रतिद्वंद्विता एवं उदात्त मानवीयता के आदिम भाव मिलते हैं। भावना एवं अभिव्यक्ति में उनकी साम्यता कुछ वैदिक स्वस्तियों से भी है। सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया, जीवन शरद शत जैसे काव्य भाव उनके यहाँ भी हैं यद्यपि आधुनिक काल की रचनाओं में मिलते हैं। उन्हें रचने वालों ने वेद पढ़े या नहीं, इस पर कोई सामग्री नहीं मिली।

Vedic Aesthetics वैदिक साहित्य शृंगार – 5 : अथर्ववेद

Vedic Aesthetics वैदिक साहित्य शृंगार अथर्ववेद;अपने हाथों तेरे भग परनीलाञ्‍जन, कूट, खस और मधूक। तेरा रतिजन्य खेद हर दूँ!आ! तनिक तुझे उबटन कर दूँ!!॥३॥

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

आदिकाव्य रामायण से – 32, सुन्‍दरकाण्ड [हनूमन्तं च मां विद्धि तयोर्दूतमिहागतम्]

मारुति का श्रीराम के गुह्य अङ्गों का अभिजान देवी सीता के मन में विश्वास दृढ़ करने में सहायक हुआ कि यह अवश्य ही उन्हीं का दूत है, कोई मायावी बहुरूपिया राक्षस नहीं। आगे हनुमान स्वयं कहते भी हैं – विश्वासार्थं तु वैदेहि भर्तुरुक्ता मया गुणा:। आदि कवि भी पुष्टि करते हैं – एवं विश्वासिता सीता हेतुभि: शोककर्शिता, उपपन्नैरभिज्ञानैर्दूतं तमवगच्छति। 

बारहमासा होली गीत

शीर्षक पर न जायें! काव्यगत् दृष्टि में शृंगार पक्ष अद्भुत, किन्तु अब लुप्तप्राय। जैसा कि शीर्षक स्पष्ट कर रहा है, बारह मास से ही अभिप्राय है। लोक भोजपुरी में होली के अवसर पर गाया जाने वाला विरह शृंगार गीत। साहित्यिक हिन्दी वालों के लिए विप्रलंभ शृंगार। आइये, तनि गहरे गोता मारिये न! … लगभग तेरह…

Phalgun Floral फाल्गुन पुष्पावली

होली रंगों का वासन्‍ती पर्व है। इस ऋतु में प्रकृति रंग बिखेरती है, मानव उसके अनुकरण में उत्सवी हो जाते हैं! आइये, इस होली पर एक अमेरिकी उद्यान का भ्रमण करते हैं, मिलतेे हैंं मुस्कुराते हुए कुछ फूलों से।

ऋतुगीत : झूम उठते प्राण मेरे

ऋतुगीत : झूम उठते प्राण मेरे त्रिलोचन नाथ तिवारी मुग्ध हो कोमल स्वरों में, मैं बजाता बांसुरी, और, थिरक उठते चरण तेरे, झूम उठते प्राण मेरे॥ तुम हमारी तूलिका और मैं तेरा भावुक चितेरा, भावनाओं में तुम्हारी, रंग भरते प्राण मेरे॥०॥ नाचती बन मोरनी तूं, थाम कर मेरी उंगलियां। मैं तेरी हर भंगिमा पर, लुटा…