यज्ञोपवीत संस्कार : अवधी लोकगीतों में अभिव्यक्ति

डॉ. अनीता शुक्ल हिंदी विभाग, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा _______________________________________ वर्णाश्रमों में विभाजित भारतीय सामाजिक जीवन में पुत्र का अत्यंत महत्व है। पुत्र वंश को बढ़ाता है, पितृ ऋण से उऋण करता है – ‘पुनाति य: सुचरितै: पितरं स पुत्र:’। ऐतरेय ब्राह्मण में कहा गया है:  ऋणमस्मिन् संनयत्यमृतत्वं च गच्छति। पिता पुत्रस्य जातस्य पश्येच्चेज्जीवतो मुखम्॥…

उपनयन संस्कार

उपनयन की पद्धतियों के ४ भाग दीखते है। विद्यारम्भ, वेदारम्भ, ब्रह्मचर्य व्रत, उपनयन। (१) विद्यारम्भ इसका एक लौकिक रूप है- खली छुआना। खली से स्लेट पर लिखते हैं। सबसे पहले वर्णमाला सीखते हैं। देवों का चिह्न रूप में नगर देवनागरी लिपि है। इसमें ३३ देवों के चिह्न क से ह तक स्पर्श वर्ण हैं। १६ स्वर मिलाने…