Social identity theory, US vs THEM

Social identity theory सामाजिक समरूपता सिद्धान्त

यदि निष्पक्ष भाव से प्रश्न करें तो एक स्वाभाविक प्रश्न मन में उठता है कि संकीर्ण मानसिकता तथा कुण्ठित विचारधारा के व्यक्ति अपने घृणित मत को भी सत्य सिद्ध करने के लिए कैसे किसी भी स्तर तक पतित हो जाते हैं। भला यह किसी प्रकार की दुराग्रही प्रवृत्ति है जो व्यक्ति को घृणा से अंधा…

Hypocrisy ढोंग

Hypocrisy ढोंग : सनातन बोध – ८२

Hypocrisy ढोंग – भीतर से क्रूर होते हैं किंतु मधुर वाणी बोलते हैं। वे घासफूस से ढके कुँये के समान होते है, धर्मध्वजी बन कर संसार को लूटते हैं। वर्ष २००१ में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि नैतिकता का दिखावा कर रहे लोग उतने ही स्वार्थी निकले जितना नैतिकता के झंझट में नहीं रहने वाले। निष्पक्षता का चोला पहने पत्रकार इसके सटीक उदाहरण हैं।

gerontology जराविज्ञान

Gerontology जराविज्ञान व वृद्धावस्था : सनातन बोध – ८०

Gerontology जराविज्ञान – अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं ॥… देहे कौमारं यौवनं जरा।

Do Animals have Moral मानवेतर जीव-चेतना

Do Animals have Moral मानवेतर जीव-चेतना? : सनातन बोध – ७८

क्या अन्य जीवों को भी अनुभूति होती है? क्या वो भी सोच पाते हैं? ये प्रश्न या तो अन्य परम्पराओं में उठे ही नहीं या इनका उत्तर सकारात्मक नहीं रहा। वहीं इन प्रश्नों का उत्तर सनातन दर्शन में सहज ही स्पष्ट है।

Default bias or Status Quo Bias यथास्थिति पक्षपात

Default Bias यथास्थिति पक्षपात – उपदेश असाध्य स्वभाव : सनातन बोध – ७७

Default Bias यथास्थिति पक्षपात – विषयों के सम्बंध में इंद्रियों को राग-द्वेष रहते ही हैं। उनके वश में न हों क्योंकि वे मनुष्य के शत्रु हैं।

Curse of Expertise विशेषज्ञ दम्भ की सङ्‌कीर्णता

Curse of Expertise विशेषज्ञ दम्भ की सङ्‌कीर्णता [दुरत्यया दुर्गम्‌]

प्रतिष्ठित विशेषज्ञ भी बहुधा अतार्किक बातें करने लगते हैं तथा प्रायः विशेषज्ञ स्वयं के ज्ञान के दम्भ में इस प्रकार सङ्‌कीर्ण होते जाते हैं कि उनके क्षेत्र में अन्वेषित नवीन सिद्धान्तों को ग्रहण करने के प्रति उनकी सहनशीलता में भी ह्रास हो जाता है।

Corona COVID-19 कोरोना कॅरोना विषाणु आकस्मिक भय : सनातन बोध – ७१

हमें मित्र से अभय हो, अमित्र (शत्रु) से अभय हो, जिसको जानते हैं उससे अभय हो, जिसको नहीं जानते उससे भी अभय हो, रात्रि में भी अभय हो, दिन में भी अभय हो, समस्त दिशायें हमारी मित्र हों अर्थात् हमें सब काल में सभी ओर से निर्भयता प्राप्त हो।
यदि ऐसा सोचें तो नकारात्मक भ्रांति कहाँ टिक पाएगी!

Paternity and Human evolution मानव विकास में पितृत्व का महत्त्व

Paternity and Human evolution शरीरकृत् प्राणदाता यस्य बच्चों के चित्र देख पिताओं के मस्तिष्क में पारितोषिक प्रदान क्षेत्र सक्रिय हो जाते हैं। मातृत्व की ही भाँति पितृत्व भी मानव प्रजाति के साथ साथ व्यक्ति के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है तथा मातृत्व एवं पितृत्व एक दूसरे के पूरक हैं एक दूसरे को प्रतिस्थापित नहीं कर सकते।

Delusion Yoga Vasishtha भ्रांति माया अविद्या : सनातन बोध – ६८

भ्रांति यथा इंद्रजाल, माया या अविद्या की चर्चा किसी एक सनातन ग्रंथ तक सीमित नहीं होते हुए यह सनातन दर्शन का एक विशिष्ट सिद्धांत है, विशेषकर अद्वैत ग्रंथों में। बौद्ध दर्शन, जिसका परिवर्तित रूप पश्चिमी देशों में लोकप्रिय है, भी स्पष्ट रूप से इन दर्शनों से प्रभावित है। मानव मस्तिष्क के परे ब्रह्मांड के निर्माण, परिवर्तन तथा विस्तार इत्यादि के संदर्भ में भी सनातन दर्शन में इन भ्रांतियों की परिभाषा बृहत् है।

Self-control Yoga Vasishtha आत्मसंयम : सनातन बोध – ६७

योगवासिष्ठ एक अद्भुत सनातन ग्रंथ है, साथ ही दर्शन तथा मनोविज्ञान की दृष्टि से भी यह ग्रंथ अद्वितीय है। शोध व अध्ययनों का सारांश है कि जिस व्यक्ति के पास लोभों से बचने का आत्मसंयम हो, दीर्घकाल में उसका जीवन अत्यंत सफल होता है।

स्वास्थ्य संध्या नियमित दिनचर्या : सनातन बोध – ६६

आधुनिक अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार के समय में जहाँ लोग किसी भी नित्य-नियमित को व्यर्थ का बंधन व नीरस समझते हैं तथा प्रति दिन एक नए रूप में जीना चाहते हैं; क्या बँधी बँधाई दिनचर्या के विषय में मनोविज्ञान के कुछ निष्कर्ष उपलब्ध हैं?

Subsidised Higher Education सानुवृत्ति उच्च शिक्षा, गुणवत्ता ह्रास व दस्युवृत्ति : सनातन बोध – ६५

यह स्वाभाविक है कि शिक्षण संस्थाओं में असीमित समय तक यदि अनुदान मिले तो व्यक्ति को न ही उत्तीर्ण होने में रुचि होगी, न गुणवत्ता में। सनातन दर्शन में कुछ भी निःशुल्क प्राप्त करने या उसकी आकाँक्षा करने के स्थान पर कर्म से उपार्जन को श्रेष्ठ माना गया है।

vegan

Vegetarianism Vegan शाकाहार : सनातन बोध – ६४

Vegetarianism Vegan शाकाहार, पश्चिमी देशों में अत्यधिक मांसाहार तथा उसके व्यवसाय ने सदियों से यह भ्रम बना रखा था कि क्रीड़ा, स्पर्धा इत्यादि के लिए मांसाहार उपयुक्त है तथा शाकाहार में पर्याप्त प्रोटीन नहीं होता। अनेक अध्ययनों में ये बातें असत्य सिद्ध हुई हैं।

प्रसन्न सार्थक सफल सुखी जीवन, सनातन व पश्चिम : सनातन बोध – ६२

प्रसन्न सार्थक सफल सुखी, अमेरिकी स्वतंत्रता घोषणा में लिखे शब्द pursuit of happiness को अधिकांशतया लोग जीवन का लक्ष्य मानते हैं। प्रसन्नता एवं सार्थकता के बीच अर्थहीन से प्रतीत होते विभाजन पर अनेक गम्‍भीर अध्ययन हुए हैं।

Death मृत्यु से भय कैसा? : सनातन बोध – ६१

Death मृत्यु से भय कैसा? इसका संज्ञान सुखी जीवन की ओर ले जाता है। इस दर्शन का अलौकिक लाभ हो न हो, मनोवैज्ञानिक लाभ तो स्पष्ट ही है।

Ego Trap Narcissism आत्मप्रशंसा शत्रु : सनातन बोध – 59

सनातन दर्शन में आत्मश्लाघा, आत्मप्रेम, आत्मप्रवञ्‍चना इत्यादि को स्पष्ट रूप से मिथ्याभिमान तथा अविद्या कहा गया है। वहीं स्वाभिमान की भूरि भूरि प्रशंसा भी की गयी है तथा उसे सद्गुण कहा गया है। अर्थात दोनों का विभाजन स्पष्ट है।

Satan and Sanaatan शैतान एवं सनातन अनेकांतवाद : सनातन बोध – 57

हिब्रू मूल से उपजे अरबी शब्द शैतान के समानार्थक कोई शब्द भारतीय वाङ्मय में नहीं है। शैतान का अर्थ या उसकी तुलना राक्षस, असुर, दैत्य, दानव इत्यादि पौराणिक प्रजातियों से करना मूर्खता ही है।

Let go बीती ताहि बिसार दे Forgetting, Key to Health : सनातन बोध – 56

Let go बीती ताहि बिसार दे जैसी उक्तियों में यही बात है। अतीत को भूल वर्तमान में जीने का दर्शन तो निर्विवाद सनातन ही है। ‘बंधनम् मुच्यते मुक्ति’।

सामाजिक संचार माध्यम, सुविधा या जटिलता : सनातन बोध – 55

सनातन दर्शनों की विशेषता यही है कि मानव मस्तिष्क की जो विवेचना उसमें की गयी है वो विभिन्न देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार भी सत्य है। यथा सभा का स्वरूप भले परिवर्तित हो गया हो परन्तु उस सभा में कब क्या बोलना चाहिए, किससे प्रेम करना चाहिए तथा कब और कितना क्रोध करना चाहिए जो इन बातों को जानता है उसे ही तो अब भी पंडित कहा जाएगा