मानव उद्विकास को जैव विकास के इतिहास की तरह समझें तो हम देखेंगे कि मानवों में बुद्धि और भाषा का विकास लगभग साथ साथ हुआ। यह स्थिति इतनी साम्य लिए हुए है कि कभी लगता है कि बुद्धि भाषा की प्रतिबिंब है या भाषा बुद्धि की। उदाहरण के लिये मानव-सम (Primates) और शिशुमार (Dolphin) जैसे कुछ पशुओं में ही विवेक का दर्शन होता है और यही वे पशु हैं जिनके पास एक सुसंगठित भाषा है। आज पृथ्वी पर हम संभवतः सबसे विवेकशील प्राणी हैं और उसका कारण यह कि स्थलीय निवास के प्रति हमारे भीतर एक आनुवंशिक अस्थायित्व और असुरक्षा का भाव उपस्थित था।
क्या बुद्धिमत्ता आनुवंशिक होती है?
क्या उच्च आई क़्यू दर के लिए जीन्स जिम्मेदार हैं?
क्या सोचने की क्षमता का मनुष्य के वातावरण से कोई संबंध है?
आज दस-बारह वर्ष की आयु का एक बालक मनुष्य द्वारा किये जाने वाले अनेक ऐसे कार्य कर लेता है जिन्हें सीखने में हमारे पूर्वजों को लाखों वर्ष लगे। आप कहते हैं न, बच्चों का आई क़्यू बढ़ गया है? वह इस कारण है कि हर पीढ़ी ने अपनी पिछली पीढ़ी से उसके द्वारा संचित वह ज्ञान ग्रहण किया जो उसे उसकी पिछली पीढ़ियों से मिला। इस तरह उसमेंं गुणात्मक वृद्धि हुई।
मस्तिष्क, बल्कि यह कहें कि स्नायु तंत्र का विकास संवेदी कोशिकाओं और ऊतकों की तरह हुआ जो प्रारम्भ में जीवधारियों को बाहरी वातावरण के अम्लीय या क्षारीय और बाद में गरम या ठण्डे होने की सूचना भर देता था। कालान्तर में कुछ संवेदी ऊतकों में वैद्युत-चुम्बकीय विकिरणों के ग्रहण करने की क्षमता का भी विकास हो गया। ठीक इसी समय जीवधारियों में उद्दीपन के पास आने या दूर जाने के ज्ञान संबंधित क्षमता का विकास हुआ।
प्रारम्भिक तंत्रिका तंत्र संवेदी तंतुओं का समूह भर था और वह संगठित मस्तिष्क की संरचना से लाखों वर्ष दूर था। फिर मस्तिष्क जैसी संरचनायें केंचुये जैसे जीवों में विकसित हुईं। क्रमागत परिवर्तनों के परिणामस्वरूप ब्रह्माण्ड की जटिलतम संरचना मानव मस्तिष्क का विकास हुआ, जिसके पास सीमाओं में अनन्त विस्तृत बुद्धि, विवेक और संज्ञानात्मक क्षमता थी।
यह 1997 के दिसम्बर मध्य का समय था जबकि मूर्खता की हद तक दुस्साहसी टेक्सास विश्वविद्यालय के व्यवहार आनुवंशिकी और मनोविज्ञान के प्रोफेसर राबर्ट प्लोमिन यह दावा कर बैठे कि उनकी टीम ने उस ‘वंशाणु या जीन gene’ की खोज कर ली है जो मनुष्यों में बुद्धिमत्ता की कारण है। हालाँकि ऐसा कोई कारक संभव है किंतु इस पर उस समय वैज्ञानिक तार्किकता युक्त संदेह व्यक्त किये गये।
वास्तव में प्लोमिन और उनके साथी सदस्यों ने अमेरिका के कई असाधारण छात्र छात्राओं पर लगातार कई गर्मियों तक आईओवा के एक कैम्प में आश्चर्यजनक शोध किये।
वे विद्यार्थी बारह से चौदह वर्ष की आयु परास में थे जिनकी शैक्षणिक उपलब्धियाँ चौंका देने वाली थीं। उन सभी केऔसत बौद्धिक स्तर अंक (आई क़्यू, intelligence Quotient, IQ) 160 से अधिक थे।
बहुत पहले 1914 में एक जर्मन मनोवैज्ञानिक स्टर्न ने आई क़्यू स्केल का विचार प्रस्तुत किया था। वैसे तो आई क़्यू के पीछे का सिद्धांत बहुत तर्कसंगत नहीं लगता, मुझे नहीं पता मेरी आई क़्यू क्या है। एक सैद्धांतिक विरोध इसलिए भी कि इस तरह के परीक्षण कई बार सुजननिकी या यूजेनिक्स, वर्ण श्रेष्ठता अथवा रक्त शुद्धता के लिए कुतर्क के हथियार बन सकते हैं। बहुत सारे लोग अपने पूर्वाग्रहों को सिद्ध करने के लिए इस तरह के झूठे विज्ञान या स्यूडो साइंस का सहारा लेते दिखाई दे जाते हैं।
बुद्धि लब्धि या बुद्धिमत्ता की कोई एक सर्वस्वीकार्य परिभाषा नहीं हो सकती। क्या यह सोच की गत्यात्मकता है, तार्किक योग्यता है,गणितीय क्षमता है, तेज याद्दाश्त है या यह केवल एक व्यक्ति की बौद्धिक भूख को प्रदर्शित करता है? अस्तु।
प्लोमिन एक आणविक-जैव वैज्ञानिक पद्धति से तथा अपने पुराने प्रयोगों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि बुद्धिमत्ता का जीन क्रोमोसोम संख्या 6 की बड़ी भुजा, क़्यू आर्म पर होना चाहिये। ध्यातव्य है कि मनुष्यों में क्रोमोसोम अर्थात गुणसूत्रों के तेइस जोड़े होते हैं।
इसी क्रम में शोध टीम ने उन बच्चों के रक्त नमूनों से क्रोमोसोम 6 के क़्यू आर्म से उस जीन को निकालने में सफलता पा ली जिसका नाम था IGF2R । यह जीन एक बड़े ‘वंशाणु गुच्छ, gene cluster’ का भाग था जिसे प्लोमिन ने नाम दिया – ‘आइओवा जीनोमिक ब्रेनबाक्स’।
IGF2R जीन वैसे तो सभी मानव कोशिकाओं में उपस्थित होता है परन्तु उन उच्च आई क़्यू दर वाले बच्चों में यह अतिरिक्त रूप से लम्बा था। प्लोमिन के इस दावे से पहले IGF2R को ‘लीवर कैंसर जीन’ के रूप में जाना जाता था जिसका मुख्य कार्य लीवर में ट्यूमर निर्माण की प्रक्रिया को रोकना था।
IGF2R एक बड़ा वंशाणु अनुक्रम (gene sequence) है जिसका एक दूर का संबंध रक्त में शर्करा के नियंत्रण और इन्सुलिन से भी है। संभवतः इसी संबंध के कारण उच्च आई क़्यू वाले मस्तिष्क शर्करा के उपभोग में विशेष दक्ष होते हैं किंतु IGF2R अकेला वंशाणु नहीं है जिसका संबंध मनुष्य की बौद्धिक क्षमता से हो। जैसा कि प्लोमिन ने पहले ही संकेत किया था, उनके ‘आइओवा जेनेटिक ब्रेनबाक्स’ में दस और वंशाणु थे।
नब्बे के दशक के आरम्भिक वर्षों में ही कई प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका था कि उच्च आई क़्यू वाले लोगों की शारीरिक सममिति अधिक सम होती है। उदाहरण के लिये उनके कान, पैरों और घुटनों की चौंंड़ाई, अंगुलियों कि लम्बाई, कलाइयों की मोटाई, भौंह विन्यास आदि देखे जा सकते हैं। इसे चाहें तो प्राचीन भारतीय सामुद्रिक शास्त्र से जोड़ कर देखा जा सकता है।
वास्तव में हम अपने माता पिता या पूर्वजों से आनुवंशिक रूप से उच्च आई क़्यू दर नहीं अपितु विशेष परिस्थितियों में उच्च आई क़्यू अंगीकृत कर लेने की क्षमता प्राप्त करते हैं।
फ्लिन प्रभाव इस विचार को और पुष्ट करता है। न्यूजीलैंड के राजनीतिक वैज्ञानिक जेम्स फ्लिन 1980 में अपने गणितीय मनोवैज्ञानिक शोधों से इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि दुनिया के सभी देशों में आई क़्यू दर तीन गुणांक प्रति दशक की दर से बढ़ रही है क्योंकि औसत ऊँचाई में वृद्धि, शारीरिक विषमताओं में कमी और भोजन में गुणवत्तायुक्त प्रोटीन का बढ़ना लगभग एक वैश्विक प्रक्रिया है। फ्लिन के इन प्रयोगों को IGF2R पर वातावरण के प्रभाव से भी जोड़ कर देखा जा सकता है, हालाँकि बुद्धि लब्धि या मानव मस्तिष्क की क्षमता का केवल एक आनुवंशिक कारक संभव नहीं। यथा, मस्तिष्क की क्षमता वंशाणुओं की अपेक्षा तंत्रिका तन्तुओं के बीच समन्वय और उनकी कार्यप्रणाली पर कहीं अधिक निर्भर है।
संदर्भ:
1. Hornby AS. Oxford advanced learner’s dictionary of current English. Oxford, UK. Oxford University Press, 2000.
2. Miele F. What is intelligence? In: intelligence, race, and genetics. Oxford, UK. Westview Press, 2002.
3. Spearman C. (1904). General intelligence objectively determined and measured. American Journal of psychology. 15, 201-292
4. Grasso F. (2002). I.Q.-genetics or environment. Allpsych Journal.
5. Galton F. Hereditary genius: An inquiry into its laws and consequences. London, McMillan/Fontana. 1869/1962.
6. Plomin R and Spinath FM. (2004). Intelligence: genetics, genes, and genomics. Journal of personality and social psychology. 86(1), 112-129.
7. Herrnstein RJ, and Murray C. The Bell Curve: Intelligence and class structure in American life. New York, NY. Free Press, 1994.
8. Winterer G. and Goldman D. (2003). Genetics of human prefrontal function. Brain Research Reviews. 41, 134-163.
Dr. Madhusudan Upadhyay
(P.hd, NET-JRF, M.Tech)
Director AESPL
Scientific officer, ABPL, Biotech park, Lucknow
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सम्पादकीय टिप्पणी:
आख्यानों और काव्य में नायक नायिका के देह लक्षण वर्णन की परम्परा रही है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार यह मान्यता रही कि नायक नायिकाओं को सुंदर, सुपुष्ट और मनोहर होना चाहिये। इसका एक उदाहरण वाल्मीकीय रामायण में मिलता है जब अपहृता सीता हनुमान से श्रीराम की पहचान पूछती हैं ताकि सुनिश्चित कर सकें कि हनुमान वास्तव में उनके दूत हैं कोई राक्षस बहुरुपिये नहीं:
यानि रामस्य लिङ्गानि लक्ष्मणस्य च वानर ।
तानि भूयः समाचक्ष्व न माम् शोकः समाविशेत् ॥ ५-३५-३
कीदृशम् तस्य संस्थानम् रूपम् रामस्य कीदृशम् ।
कथम् ऊरू कथम् बाहू लक्ष्मणस्य च शंस मे ॥ ५-३५-४
हनुमान जो उत्तर देते हैं, उसमें श्रीराम के देह लक्षण ऐसे बताये गये हैं:
रामः कमल पत्र अक्षः सर्व भूत मनो हरः ।
रूप दाक्षिण्य सम्पन्नः प्रसूतो जनक आत्मजे ॥ ५-३५-८
विपुल अंसो महाबाहुः कम्बु ग्रीवः शुभ आननः ।
गूढ जत्रुः सुताम्र अक्षो रामो देवि जनैः श्रुतः ॥ ५-३५-१५
दुन्दुभि स्वन निर्घोषः स्निग्ध वर्णः प्रतापवान् ।
समः सम विभक्त अन्गो वर्णम् श्यामम् समाश्रितः ॥ ५-३५-१६
त्रिस्थिरः त्रिप्रलम्बः च त्रिसमः त्रिषु च उन्नतः ।
त्रिवलीवान् त्र्यवनतः चतुः व्यन्गः त्रिशीर्षवान् ॥ ५-३५-१७
त्रिवलीवांस्त्र्यवनतश्चतुर्व्यङ्गस्त्रिशीर्षवान् ।
चतुष्कलश्चतुर्लेखश्चतुष्किष्कुश्चतुःसमः ॥ ५-३५-१८
चतुष् कलः चतुः लेखः चतुष् किष्कुः चतुः समः ।
चतुर्दश सम द्वन्द्वः चतुः दष्टः चतुः गतिः ॥ ५-३५-१९
दश पद्मो दश बृहत् त्रिभिः व्याप्तो द्वि शुक्लवान् ।
षड् उन्नतो नव तनुः त्रिभिः व्याप्नोति राघवः ॥ ५-३५-२०
अंत के चार श्लोक जिनमें कि केवल संख्याओं द्वारा अंगों के संकेत दिये गये हैं, कूट श्लोक हैं जिनकी व्याख्या बिना सामुद्रिक शास्त्र जाने सम्भव नहीं है।
Now I know why I love a lot of Desi Ghee Sweets 🙂
Thanks Dr. Upadhyay for such a good informative narrative.
Congratulation sir
Ham bahut hi bhagyashaali h ki name aap jaise teacher mile
वाह
धन्य हुए लेख पढ कर भी सम्पादकीय टिप्पणी पढ कर भी ! मेधामुग्धकारिका मघा !!!
अहोभाव स्वीकार्य हो !