श्रीनिवास रामानुजन (Sriniwas Ramanujan): हमारे देश में उनका नाम ही गणितशास्त्र के समतुल्य है इसलिये नाम से ही प्रारम्भ करते हैं। शीत अयनांत 22 दिसंबर 1887, बृहस्पतिवार के दिन रामानुजाचार्य जयंती पर जन्म होने के कारण जन्म कुण्डली में उन्हें वही नाम दिया गया। पैतृक नाम ‘श्रीनिवास’ होने पर भी उनके पास ‘श्री’ ने बहुत कम ही ‘निवास’ किया।
आयङ्गर तमिल ब्राह्मण कुल में अपने ननिहाल इरोड में जन्मी यह प्रतिभा ‘श्रीनिवास रामानुजन आयङ्गर‘ कहलायी।
इस कहानी में कई पात्र हैं और इन सबकी अपनी महत्ता है क्योंकि इनके दृष्टिकोण से ही हम श्रीनिवास रामानुजन को समझ सकते हैं। रामानुजन अपने आप में एक बहुत ही विचित्र, भोले, दृढ़ संकल्पित, कुंठित, हँसमुख और साधारण व्यक्ति थे। आप कह सकते हैं कि मेरे पास विशेषण नहीं हैं इसलिये मैंने विरोधाभासी शब्द लिख दिये हैं। ऐसे व्यक्ति को समझने का प्रयास करना आसान भी नहीं है। इस आलेख में रामानुजन की अतुलनीय मेधा की एक झलक से परिचय कराने का मेरा प्रयास है। श्रीनिवास रामानुजन के रूमानी जीवन की घटनाओं का सिलसिला क्रमानुसार नहीं रखा गया है। यदि वास्तव में गणितशास्त्र में उनके योगदान को समझना हो तब उच्चतर गणित पढ़नी पड़ेगी।
आधुनिक गणित में फलन (Function) का बहुत महत्व है। यदि आप साधारण गणितीय समीकरणों से परिचित हैं तो मान लीजिये y=5+x. यहाँ पर x का मान रखने पर y के मान का पता चलेगा जो x से 5 ज्यादा होगा। इस समीकरण के माध्यम से x और y इन दोनों के बीच एक सम्बंध स्थापित हो जाता है जिसमें x के हर मान के लिये y का केवल एक मान होगा। यहाँ x तथा y के साथ स्थिर संख्या 5 भी है जो x ,y के मान को प्रभावित करती है। ऐसे गणितीय सम्बंधों को फलन कहा जाता है। यह एक साधारण सी व्याख्या है जो बीजगणित में काम आती है। किन्तु उच्चतर गणितशास्त्र में हजारों फलन हैं जो न्यूटन के बल के नियम से लेकर अर्थशास्त्र में मांग और उत्पादन के बीच के सम्बंध तक को प्रदर्शित करते हैं।
महान वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यन चन्द्रशेखर कहा करते थे कि x एक भागता हुआ चूहा है जिसका मान जानने के लिये हमें उसे पकड़ना पड़ता है। इस तरह बीजगणित में हम उन चीजों को जानने का प्रयत्न करते हैं जो पता नहीं होतीं जबकि अंकगणित या संख्या सिद्धांत (Number Theory) वह क्षेत्र है जहाँ संख्याओं की भूलभूलइया में उनके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
संख्या सिद्धांत (Number Theory) को गणित की सबसे शुद्ध शाखा माना जाता था क्योंकि इसका उपयोग विज्ञान की अन्य शाखाओं जैसे भौतिकी में लगभग नगण्य था। आज प्रोफेसर केन ओनो (Ken Ono) हमें बताते हैं कि रामानुजन के आखिरी दिनों में उनके द्वारा खोजे गये अनुकरणी थीटा फलन (Mock Theta Functions) का प्रयोग भौतिकी में भी सम्भव है और कृष्ण विवर (Black Hole) जैसी वस्तुओं के व्यवहार को समझने में भी काम आ सकता है। गणितीय भौतिकशास्त्र में इन फलनों के महत्व को सबसे पहले डच प्रोफेसर सैण्डर पॆटर ज़्वेगर्स (Sander Pieter Zwegers) ने 2002 में समझा था।
श्रीनिवास रामानुजन ने संख्या सिद्धांत में एक दो नहीं बल्कि लगभग तीन हजार नौ सौ सूत्र बिना गणित में किसी औपचारिक प्रशिक्षण के स्वयं खोज निकाले थे। कुछ फलन तो ऐसे थे जो उनके जन्म से दो सदी पहले खोजे गये थे और उनसे वह परिचित तक नहीं थे। उदाहरण के लिये – डेल्टा (Delta functions), बरनौली संख्या सिद्धांत (Bernoulli’s number theorem), रीमैन ज़ीटा फलन (Riemann Zeta Function), न्यूटन के समकालीन रहे लीब्नित्ज़ (Leibnitz) के सूत्र, यूलर (Euler) के समीकरण, गॉस योग सिद्धांत (Gauss Summation Theorem) इत्यादि। इसे आश्चर्य कहें या विडंबना परन्तु यह विचित्र तथ्य है कि रामानुजन ने किसी भी सूत्र, समीकरण या प्रमेय को सिद्ध करने के लिये कोई चरणबद्ध प्रक्रिया नहीं दिखाई जिसे प्रमाण (proof) कहा जाता है। होता यह है कि कोई भी गणितज्ञ जब किसी सिद्धांत का प्रतिपादन करता है तो अपने शोध में चरणबद्ध तरीके से उसका प्रमाण दिखाता है जैसे हाई स्कूल के बच्चे दो त्रिभुज को समरूपी (congruent) सिद्ध करने के लिये यह दिखाते हैं कि तीनों भुजायें या कोण समान माप के हैं।
इरोड में जन्म लेने के साल भर बाद ही रामानुजन कुंबकोणम आ गये थे जहाँ एक बार स्कूल में उनके अध्यापक ने विद्यार्थियों से पूछा कि बताओ यदि एक हजार केले हजार बच्चों को दिये जायें तो हर एक को कितना मिलेगा? इस पर बालक रामानुजन ने पलट कर प्रतिप्रश्न दाग दिया कि यदि शून्य केले शून्य बच्चों को बाँटे जायँ तब भी क्या सबको एक केला मिलेगा? यह प्रश्न उस गूढ़ गणितीय सिद्धांत से सम्बन्धित था जिसमें कहा गया है कि शून्य को शून्य से भाग देने पर वह अपरिभाषित (undefined) हो जाता है अर्थात जिसकी कोई व्याख्या ही गणित में नहीं हो सकती।
कॉलेज में रामानुजन गणित को छोड़ हर विषय में अनुत्तीर्ण होते थे क्योंकि वह और कुछ पढ़ना ही नहीं चाहते थे। वास्तव में उन्होंने गणित को भी कभी नहीं ‘पढ़ा’। उन्होंने तो गणित में केवल रचनात्मक कार्य ही किया और नई नई खोजें कीं। उन्हें G S Carr की लिखी Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics मिली थी जो कि गणित के 4800 सूत्रों की एक पुस्तक थी। इसी पुस्तक से प्रभावित हो कर उन्होंने कई समीकरण खुद ढूँढ़ निकाले थे। अंग्रेजों ने जितने भी शैक्षणिक संस्थान बनाये थे वे शोध के लिये नहीं थे बल्कि केवल डिग्री बाँटने का काम करते थे। इस कमी की पूर्ति के लिये राष्ट्रवादी विद्वानों ने कई संस्थायें बनाई थीं जिनमें से एक थी Indian Mathematical Society जिसके जर्नल में रामानुजन अपने शोध प्रकाशित करते थे। उस समय इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे गॉडफ्रे हेरॉल्ड हार्डी (Godfrey Harold Hardy) जो कैंब्रिज में प्रोफेसर थे। रामानुजन ने अपसारी शृंखला (divergent series) पर कुछ अनोखा खोज निकाला था जो उन्होंने कई लोगों को दिखाया भी किन्तु भारत में किसी को भी समझ में नहीं आया। रामानुजन ने किसी के कहने पर अपना शोध प्रो. हार्डी को भेज दिया।
हार्डी ने जब मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क रामानुजन का पत्र देखा तो उन्हें यही समझ में आया कि या तो यह किसी बहुत ऊँचे स्तर के गणितज्ञ का काम है या फिर किसी मूर्ख का। बहुत सोचने के बाद हार्डी इसी परिणाम पर पहुँचे कि उसे लिखने वाला कोई विद्वान ही है क्योंकि किसी मूर्ख की बुद्धि में से ये बातें उपज ही नहीं सकती थीं। तत्पश्चात दोनों के बीच पत्र व्यवहार प्रारम्भ हुआ और अंततः हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज बुला लिया। इंग्लैण्ड उस विश्व प्रसिद्ध विद्वान के बुलावे पर 17 मार्च 1914 को रामानुजन समुद्री यात्रा पर निकल पड़े।
रामानुजन ने गणित में अपनी मेधा का श्रेय कुलदेवी नामगिरि को दिया था। स्लेट पर समीकरण लिखते मिटाते उन्हीं का ध्यान करते थे। जब पंडितों ने कहा कि समुद्री यात्रा करना धर्म विरुद्ध है तब उन्होंने तीन रातें देवी के मन्दिर में बितायीं। दूसरी रात को उन्हें स्वप्न आया कि देवी ने जाने की अनुमति दे दी है। जहाज़ पर वह निरामिष बने रहे।
इंग्लैण्ड में हार्डी के साथ रामानुजन की मित्रता प्रगाढ़ हुई और विभाजन सिद्धांत (Theory of Partitions) के सूत्रों ने जन्म लिया। ये सूत्र हमें बताते हैं कि एक संख्या को हम कितने तरीकों से जोड़ सकते हैं। जैसे कि यदि 5 को प्रदर्शित करना हो तो इसके 7 ढङ्ग हैं:
1+1+1+1+1
1+1+1+2
1+2+2
1+1+3
2+3
1+4
या सीधे 5.
परंतु यदि संख्या ‘200’ हो तब हार्डी रामानुजन के सूत्र से इसे जोड़ने के 3972999029388 ढङ्ग होंगे!
रामानुजन के जीवन में हार्डी और प्रोफेसर जॉन लिटिलवुड (John Littlewood) जैसे प्रतिष्ठित गणितज्ञों ने अहम भूमिका निभाई। एक बार लिटिलवुड ने उन्हें कुछ पढ़ाना चाहा तो रामानुजन ने वे सारे सूत्र अपने ढङ्ग से लिख के दिखा दिये जो लिटिलवुड उन्हें बताना चाहते थे। पूछे जाने पर रामानुजन ने यही कहा कि बस ऐसे ही सब कुछ दिमाग में आ जाता है। उनकी बातें सुनकर लोग आश्चर्य में पड़ जाते थे। चूंकि वे BSc में अनुत्तीर्ण थे इसलिये कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने उनकी प्रतिभा को देखते हुये एक अनौपचारिक डिग्री दी, BSc by Research. उन्हें The Royal Society की फेलोशिप भी प्रदान की गयी थी।
रामानुजन के जीवन की कुछ त्रासदियाँ भी हैं जिनमें दो महत्वपूर्ण हैं। एक तो इंग्लैण्ड का वातावरण अधिक दिनों तक रास न आना और दूसरी वह रहस्यमय रोग जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई। इंग्लैण्ड में एक बार उन्होंने अपने साथियों को घर पर भोजन के लिये बुलाया और जब खाने की टेबल पर एक युवती ने थोड़ा और लेने से मना किया तो उन्हें लगा कि लोग उन्हें पसन्द नहीं करते और वह तत्काल चले गये, अगली सुबह ही मिले। ऐसा भी कहते हैं कि एक बार रामानुजन ने आत्महत्या का प्रयास भी किया था। भारत लौटने पर अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहे और 26 अप्रैल 1920 को चल बसे।
महान गणितज्ञों की कहानियाँ रूमानी होती ही हैं। नील्स हेनरिक एबेल, जिनके नाम पर गणित का सबसे ज्यादा राशि वाला पुरस्कार दिया जाता है, का पूरा जीवन निर्धनता में बीता था। रूस के ग्रिगोरी पेरेलमैन ने फ़ील्ड्स मेडल, क्ले मिलेनियम प्राइज सब लेने से मना कर दिया था। एरिक टेम्पल बेल ने ज़ीनो से लेकर पॉयनकेयर तक सभी गणित के विद्वानों का इतिहास अपनी पुस्तक Men of Mathematics में लिखा परन्तु रामानुजन का उल्लेख तक नहीं किया। सम्भवत: इसीलिये कि रामानुजन को कोई पुरस्कार नहीं मिला था जब कि वह तो स्वयं विज्ञान जगत के लिये पुरस्कार स्वरूप थे। जीवन में अंतिम दिनों में उनकी पत्नी जानकी ने बहुत सेवा की। पीड़ा से कराहते हुये भी उस व्यक्ति ने स्लेट और चॉक नहीं छोड़ी। हँसी मजाक करते हुये भी रामानुजन ने इस ब्रह्माण्ड की भाषा गणित में नई खोजें कीं।
रामानुजन की मृत्यु के बाद दो अमरीकी आचार्यों का नाम आता है जिन्होंने वास्तव में उनके कार्य को पहचाना और संसार को इस मनीषी से परिचित कराया। पेन्न स्टेट विश्वविद्यालय (Penn State University) के प्रोफेसर जॉर्ज एण्ड्र्ज (George Andrews) ने रामानुजन के अनुकरणी थीटा फलनों पर पी.एच.डी. की और इलिनॉय विश्वविद्यालय (University of Illinois) में प्रोफेसर ब्रूस बर्न्ट (Bruce Berndt) ने रामानुजन के योगदान को संग्रहित किया। आज के समय में लोगों की ‘पुस्तकें’ छपती हैं किन्तु प्रो० बर्न्ट ने रामानुजन की ‘नोटबुक’ छपवाई वह भी एक नहीं, कई भागों में।
उनकी कृति अतुलनीय है। मौलिकता क्या होती है यह देखना हो तो रामानुजन को देखें। सन् 1976 में जब प्रो० एण्ड्र्ज किसी सेमिनार में फ्रांस जा रहे थे तो उड़ान के भाड़े में अटपटे नियमों के कारण उन्हें कुछ सप्ताह इंग्लैण्ड में बिताने पड़े। वहाँ कैंब्रिज में दिवंगत प्रो० जी एन वाटसन (G N Watson) के सामग्री देखते हुये उन्हें रामानुजन के हस्तलिखित पेपर मिले जिनमें अनुकरणी थीटा फलन भी थे। वह सब कुछ ‘The Lost Notebook’ के रूप में छपा।
कई वर्ष पश्चात रॉबर्ट केनिगेल (Robert Kanigel) ने उनकी जीवनी लिखी ‘The Man who knew Infinity’। अब तो इसी शीर्षक से फ़िल्म भी बन चुकी है।
याजुषज्योतिष (वेदाङ्ग) में कहा गया है:
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद् वेदाङ्गशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्॥
मूर्धन्य प्रतिभा श्रीनिवास रामानुजन के जीवन में गणित का स्थान सर्वोच्च था।
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चित्र सन्दर्भ:
(1) An Introduction to Ramanujan’s “Lost” Notebook, George E. Andrews
(2) www.imsc.co.in
(3) Wikipedia
लेखक:
यशार्क पाण्डेय
Nice article. Thanks Yashark
Nice, informative article.
Wonderful article Yashark….
बचपन से इस जीनियस के लिए उत्सुकता है, किसी दिन दक्षिण की यात्रा हुई तो और पता करने का प्रयास रहेगा, नामगिरी के बारे में भी।
अच्छा लेख, पर मन नहीं भरा। फिल्म भी देख चुका हूँ।