स्वास्थ्य बीमा सुवाह्यता (Health Insurance Portability) का सरल अर्थ अपना बीमा एक प्रदाता कम्पनी से दूसरे में ले जाने से है।
विवेक रस्तोगी
बीमा आज के समय में एक आवश्यकता है। बीमा किसी भी प्रकार का हो उससे हमें आर्थिक सुरक्षा मिलती है। किसी भी अनहोनी की दशा में बीमा हमें आर्थिक संबल प्रदान करता है और समाज और परिवार के बीच अपने आपको बुरे समय में खड़े होने का मौका भी देता है। अनहोनी में कई बार सगे भी साथ नहीं देते। हम भारत में स्वास्थ्य बीमा के बारे में बात करेंगे, धीरे धीरे अब स्वास्थ्य बीमा के बारे में लोग जान रहे हैं और लाभ भी उठा रहे हैं। स्वास्थ्य बीमा लेना जितना सरल है, दावा कर धन प्राप्त करना उतना ही कठिन है। हम सभी स्वास्थ्य बीमा तो ले लेते हैं परंतु उसके बारे में अधिक जानकारी तभी लेते हैं जब हम दावा (क्लेम) करने जाते हैं। तब दूसरे उपलब्ध बीमा विकल्पों के बारे में पता चलता है और सोचते हैं कि काश हमारा बीमा दूसरी कंपनी में होता तो अमुक समस्या नहीं होती!
वर्ष 2011 में भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) ने भारत में लगभग हर प्रकार के बीमे पर यह सुविधा उपलब्ध करवा दी कि यदि कोई अपनी वर्तमान बीमा कंपनी से संतुष्ट नहीं है तो वह वर्तमान बीमा कंपनी से अपना बीमा नयी कंपनी में ले जा सकता है अर्थात पोर्ट करवा सकता है। यह सुविधा ही सुवाह्यता या पोर्टेबिलिटी कहलाती है। इसके अनंतर निरंतर बीमा नवीनीकरण के समय मिलने वाले सारे लाभ तो मिलेंगे ही, साथ ही नयी बीमा कंपनी के लाभ भी मिलेंगे। पहले यदि हम कंपनी बदलते थे तो नवीनीकरण के समय के सारे लाभ समाप्त हो जाते थे, यहाँ तक कि यदि दावा नहीं किया गया होता था तो उसका लाभांश (नो क्लेम बोनस) भी नहीं मिलता था।
अब आप अपने बीमा को नवीनीकरण के 45 दिन पहले पोर्टिंग का आवेदन दे सकते हैं, इसके लिये आपको जिस बीमा कंपनी से बीमा लेना है, उनको बताना होगा कि आपको बीमा पोर्ट करवाना है तो वे आपसे सारी जानकारी ले लेंगे और फिर बतायेंगे कि आपको कौन से दस्तावेज नई बीमा कंपनी को देने हैं।
स्वास्थ्य बीमा को पोर्ट उसी दशा में करना चाहिये जबकि वर्तमान बीमा बहुत अधिक महँगा हो या फिर वर्तमान बीमा में कम रोगों की चिकित्सा की सुविधा हों या अस्पताल के कमरे के किराये के भुगतान की कोई अधिकतम सीमा हो, जिससे आप अच्छे अस्पताल में अपनी चिकित्सा न करवा पा रहे हों।
स्वास्थ्य बीमा में कौन से बीमा पोर्ट हो सकते हैं
स्वास्थ्य बीमा में जो भी बीमा आपके पास है बिल्कुल उसी तरह की बीमा योजना में आप किसी और बीमा कंपनी में पोर्ट कर सकते हैं। सभी तरह के स्वास्थ्य बीमा, जिसमें फ्लोटर बीमा सामान्य एवं स्वास्थ्य बीमा कंपनियों द्वारा किया गया हो, पोर्टेबल होते हैं। फिर भी समान स्कीम के स्वास्थ्य बीमा ही पोर्ट हो सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति सामूहिक बीमा में बीमित है तो पहले उन्हें सामूहिक बीमे से अपना बीमा व्यक्तिगत बीमा में बदलवाना होगा और फिर वे व्यक्तिगत बीमा को किसी और बीमा कंपनी में पोर्ट करवा सकते हैं। पोर्टिंग से नो क्लेम बोनस के लाभ के साथ ही कुछ बीमारियों को निर्धारित समय के बाद बीमित करने की शर्त भी होती है तो उसमें बीमित व्यक्ति को लाभ होता है।
स्वास्थ्य बीमा में प्रतीक्षा अवधि
स्वास्थ्य बीमा में तीन तरह की प्रतीक्षा अवधियाँ होती हैं, जिन्हें वेटिंग पीरियड कहा जाता है:
- आरम्भ के 30 दिन की प्रतीक्षा अवधि जो कि बीमा खरीदने के पश्चात होती है, इस समय में बीमा कंपनी केवल दुर्घटना के कारण बीमा दावा को ही स्वीकार करती है।
- स्वास्थ्य बीमा लेने से पूर्व के रोग, जिनको बीमा में कवर करने के लिये 4 वर्ष तक की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
- विशेष बीमारियों पर बीमा, जैसे कि कुछ बीमा कंपनियाँ पहले के दो वर्षों तक हार्निया पर बीमा नहीं देतीं, यहाँ तक कि बीमा लेने के बाद भी अगर हार्निया हो जाये, तो भी यह पहले के दो वर्षों तक बीमित नहीं होगा।
इस तरह की विशेष अवधि वाले उन सारे रोगों से पोर्टिंग के बाद आपको लाभ मिलेंगे। जैसे कि यदि आपने पहला स्वास्थ्य बीमा 3 वर्ष चलाया और फिर नये बीमा में पोर्ट करवाया तो पहले से हुई बीमारियों यानि कि प्रीएक्जिस्टिंग बीमारियों पर पहले दिन से ही बीमा मिल जायेगा, इसमें आपको कोई वेटिंग पीरियड नहीं होगा।
यदि नये बीमा में कुछ अतिरिक्त सुविधायें हैं तो वे सारी सुविधायें भी आपको पहले ही दिन से मिल जायेंगी। हालाँकि यदि गर्भावस्था (मैटर्निटि बैनिफिट) है तो इसके लिये प्रतीक्षा अवधि रहेगी।
पोर्ट करने की प्रक्रिया
पोर्टेबिलिटी केवल नवीनीकरण (रिनिवल) के समय ही की जा सकती है। बीमा धारक द्वारा बीमा समाप्ति से न्यूनतम 45 दिन पहले और अधिकतम 60 दिन समाप्ति के पहले आवेदन किया जा सकता है। बीमा धारक को पोर्टेबिलिटी फॉर्मं में वर्तमान बीमा की समस्त सूचनाओं के साथ ही अन्य जानकारियाँ भी देनी होती हैं। बीमा कंपनियाँ ग्राहक की सारी जानकारी IRDAI के पोर्टल पर अपडेट कर देती हैं, इसी पोर्टल पर वर्तमान बीमा कंपनी बीमा धारक की बीमित रकम और क्लेम से संबंधित सारी जानकारी अपडेट कर देते हैं। वर्तमान बीमा कंपनी को पोर्ट के दिनांक से 7 दिन की अवधि में जानकारी जमा करनी होती है और नई बीमा कंपनी को 15 दिन के भीतर बीमा देने का निर्णय लेना होता है। यदि वे 15 दिन में निर्णय नहीं ले पाते हैं तो अनिवार्यत: पोर्टिंग का आवेदन स्वीकार करना ही होता है।
पोर्टेबिलिटी की समस्यायें
उन बीमा धारकों के लिये पोर्टेबिलिटी बहुत ही अच्छी सुविधा है जो कि बुरी बीमा पॉलिसी में फँसे हुये हैं। फिर भी पोर्टेबिलिटी का लाभ भारत में बहुत ही कम लोगों द्वार उठाया जा रहा है। स्वास्थ्य बीमा कंपनियों की सकल बीमाओं की 5 प्रतिशत से भी कम की पोर्टिंग होती हैं। ग्राहक को पोर्ट करने के लिये सोचने की आवश्यकता तभी पड़ती है जब वह दावे की कठिनाइयों और उनसे संबंधित नियमों के बारे में जान पाता है। बीमा पोर्टिंग को बीमा एजेण्टों द्वारा भी हतोत्साहित किया जाता है क्योंकि उनको इस बीमा पॉलिसी पर कोई कमीशन नहीं मिलता है। एजेण्ट सदा ही नयी बीमा पॉलिसी खरीदने के लिये ग्राहक को सलाह देता है।
बीमा कंपनियों को पोर्टिंग से बीमा पॉलिसी लेने या मना करने का पूरा अधिकार दिया गया है, अधिकतर यदि स्वास्थ्य बीमा में दावा होता है तो नई बीमा कंपनी पोर्टिंग से बचती हैं और यदि पोर्टिंग करती भी है तो वे कुछ शर्तें लगा देती हैं, जैसे कि वे कुछ निर्धारित रोगों को कुछ समय तक बीमित नहीं करेंगी इत्यादि, परंतु इस प्रकार की शर्तों से बीमा पोर्ट करने का कोई औचित्य ही नहीं बनता है। बीमा पॉलिसी को पोर्ट करना हो तो जब आप स्वस्थ्य हों और कोई क्लेम नहीं लिया हो तभी पोर्ट करवा लेना चाहिये, क्लेम के बाद या फिर किसी बीमारी का पता चलने के बाद बीमा पोर्टिंग बहुत ही कठिन है।