परोपकार Selfless help : सनातन बोध – 54
व्यसनी,धोखाधड़ी आदि में लिप्त व्यक्ति अर्थात जिन्हें परोपकार से कुछ लेना देना नहीं था, से जब छोटे परोपकार के कार्य कराए गए तो उनकी प्रसन्नता में वृद्धि हुई।
व्यसनी,धोखाधड़ी आदि में लिप्त व्यक्ति अर्थात जिन्हें परोपकार से कुछ लेना देना नहीं था, से जब छोटे परोपकार के कार्य कराए गए तो उनकी प्रसन्नता में वृद्धि हुई।
वन-वृक्ष-नदी-पर्वत का साधना से क्या सम्बन्ध ? ग्रंथ, ऋषि वाणियाँ प्रकृति वर्णन से क्यों भरे पड़े है? वनों में ऐसा क्या प्राप्त हो जाता है जो सामान्य नगरों में नहीं मिलता?
भोजन का सनातन दर्शन। क्या अन्य कार्य करते हुए भोजन करने से कोई हानि-लाभ जुड़ा है। आज के व्यस्त जीवन में भागते हुए भोजन करने पर आज का मनोविज्ञान क्या कहता है।
Maximiser Vs Satisficer, मनोवैज्ञानकों ने निर्णय लेने के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण दो सरल रूपों में किया है – एक वे जो प्रत्येक निर्णय को इस प्रकार लेने का प्रयत्न करते हैं जिससे उन्हें अधिकतम लाभ मिले (maximiser), इन व्यक्तियों को अपने निर्णयों के पूर्णत: दोषमुक्त (perfect) होने चिंता बनी रहती है। और दूसरे वे जो अपने निर्णयों से प्रायः संतुष्ट होते हैं।
Sanātana Darśana Monotheism Polytheism कति देवाः? आठ वसु, एकादश रुद्र, द्वादश आदित्य, इन्द्र एवं प्रजापति, कुल तैंतिस। पूरा प्रकरण एक ऐसी प्रवाहमान धारा को इङ्गित करता है जिसकी पूरी व्याख्या अब अनुपलब्ध है।
पश्चिमी दर्शन, फ़िल्म,साहित्य में सनातन दर्शन का संदर्भ मुख्यतया प्रायः बौद्ध दर्शन के रूप में मिलता है। सम्भवतः इसका कारण पश्चिमी अब्राहमिक धर्मों के ईश्वरदूत (prophet) के रूप में किसी एक व्यक्ति विशेष को देखने की प्रवृत्ति हो जिसे वे तथागत के रूप में देख इस दर्शन की ओर आकर्षित होते हों। परन्तु सत्य तो यह है कि बौद्ध दर्शन विस्तृत सनातन दर्शन का विरोधाभासी न होकर उस विशाल वटवृक्ष की एक विशेष शाखा ही है।
उपनिषद भौतिक लक्ष्य से परे का दर्शन है। जबकि यूनानी दर्शन (प्लेटो) अनुसार मनुष्य अपनी ऊर्जा से भौतिक जीवन के उन्नत रूपों (forms) को पा सकता है। कठोपनिषद का लक्ष्य उन्नत रूप तथा भौतिक सुख के स्थान पर आत्म-अन्वेषण, बुद्धि और परम लक्ष्य की दिशा में है। यूनानी दार्शनिकों ने सनातन दर्शन के अनेक सिद्धांतों को अपना कर उन्हें पश्चिमी जनमानस के लिए पुनर्संस्कृत किया।
स्त्री-पुरुष में प्रकृति-प्रदत्त शारीरिक और प्रकृति के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए निर्मित विकासवादी-जनित कुछ मनोवैज्ञानिक भेद अवश्य हैं। जिनका पूर्ण अध्ययन अभी भी शेष है। स्त्री-पुरुष की कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जिन्हें हम सामान्यतया असमानता समझ लेते हैं। वास्तव में वो स्त्री-पुरुष की विशिष्टताएं हैं। इन विशिष्टताओं को श्रेष्ठ या निकृष्ट कह सौहार्द विखंडित करना अनुचित एवं मूर्खता है।
ब्राज़ील के प्रोफ़ेसर पाउलो हायऐशी ने शंकराचार्य विरचित तत्वबोध और मास्लो के सिद्धांत में समानता देखी और दोनों को एक संदर्भ में अध्ययन करने का सुझाव दिया।
जैसे जैसे आधुनिक शोध आते जायेंगे, अनुभव एवं प्रेक्षण आधारित सनातन प्रज्ञा के निष्कर्ष सूत्र पुष्ट होते जायेंगे। मानवता एक प्रकार से स्वयं के पुनर्नुसन्धान में लगी है एवं भारत उसके मार्ग में सहस्रदीप जलाये हुये है।
मनोविज्ञान में इसे अस्थायी कटौती (temporal discounting) भी कहते हैं, दीर्घकालिक लाभ की दूरदर्शी सोच के स्थान पर अल्पकालिक क्षणिक सुख के प्रलोभन में उलझना।
Live in the moment चित्त एकाग्रता। आधुनिक मनोविज्ञान सत् चित्त आनंद की निष्पत्ति तक तो आ चूका है परन्तु उस स्थिति को प्राप्त करने का उपाय अभी आधुनिक मनोविज्ञान नहीं बता पा रहा परन्तु सनातन दर्शन इसका हल भी बताता है।
आधुनिक मनोविज्ञान के अनेकों अध्ययन निर्विवाद रूप से इस बात को सिद्ध करते हैं कि मनुष्य संज्ञानात्मक पक्षपात से अंधे होते हैं। मानसिक रूप से इस अंधेपन के साथ-साथ हमारे हठी एवं अतार्किक होने के भी प्रमाण मिलते हैं। यदि मनुष्य तार्किक एवं ग्रहणशील होते तो उन्हें तथ्यों को पढ़-समझ कर सत्य का आभास हो जाता तथा स्वयं की भ्रामक मान्यताओं को सुधारने में सहजता होती। परंतु ऐसा होता नहीं !
विवाह का निर्णय युवाओं का, परंतु एक माता-पिता अपने बच्चों को भली भाँति जानते हैं। We have a very romantic view of marriage. Theirs is more pragmatic.
क्या अनुभूतियाँ (perception) स्थिर न होकर देश, काल और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनशील होती हैं? जीवन में कभी चरम सौन्दर्य एवं अतिप्रिय लगने वाले उपादान भी क्या कभी कालान्तर में हमें व्यर्थ प्रतीत हो सकते हैं?
मनोवैज्ञानिक इसे मानसिक व्याधियों से जोड़ते हैं, प्रमुख हैं – व्यग्रता (anxiety) एवं अवसाद (depression), सबका केंद्र –आत्म आसक्ति जिसकी जड़ – अहम (ego) !
Find your passion! Is it so? हमें अपनी एक विशेष रुचि ‘पैशन’ ढूंढना होता है या फल की इच्छा बिना कर्म करना होता है। नए शोध सनातन दर्शन की ओर झुकते दिखाई पड़ते हैं।
अनुकम्पा और मोह से अनासक्त हो वस्तुनिष्ठ होने की बात है। भ्रान्ति से परे सम्बन्धों और संसार को समझने की बात है, सुखमय प्रेम और दाम्पत्य के लिए ।
Post Modern Science Discoveries Resemblance to Sanaatana Knowledge. Is it Painful for Scientist? “…the main influence (on my work) is coming from Indian philosophy. I don’t know why. When I read it, I see that it very strongly fits into some quite modern schemes which appear in cosmology. …Many centuries before Greek philosophy appears, there were clever people who were just sitting and thinking — a lot of schools of people with very deep and profound thinking.” says Prof. Andrei Dmitriyevich Linde.
संसार में कुछ भी आनन्ददायक तब तक नहीं, जब तक हम उसमें पारङ्गत नहीं हो जाते और किसी भी विषय में पारङ्गत होने के लिए कठिन परिश्रम आवश्यक है।