An academician. Striving to explore the nectar of Sanatan dharm.
07 अगस्त 2016 का दिन था, जो जीवनपर्यन्त अविस्मृत रहेगा। पिताजी को सुबह हृदयाघात हुआ था। मैं दिल्ली में और भैया चेन्नई थे। पिताजी की जीवन रक्षा हेतु हम दोनों आतुर एवं व्यग्र थे किन्तु भैया की अधीरता नहीं भूलती, पिताजी संध्या काल पर्याण कर गए। अगले दिन जब भैया गाँव पहुंचे तो उन्होंने मुझे अङ्क में छिपा लिया, अपने सारे अश्रु पी गए।
पंचायतन शैली में बने ये मंदिर शिल्प कला के अप्रतिम प्रतीक हैं। इन मंदिरों ने अनेक आक्रांताओं को झेला होगा, यह भीतियों पर बनी मूर्तियों की खण्डित अवस्था स्पष्टत: बताती है। खजुराहो के मंदिरों के बारे में अधिकांश लोगों की यह धारणा है कि ये मंदिर मात्र मिथुन मूर्तियों को प्रदर्शित करते हैं । ऐसा कदापि नहीं है।
पिताजी प्राय: कहा करते थे कि चंदेल राजवंश का अतीत बहुत गौरवशाली रहा है। समृद्ध एवं गौरवमय अतीत में झाँकने की उनकी प्रेरणा के कारण मेरे मन में बहुत इच्छा रहती थी कि अपने पुरखों की धरती ‘महोत्सव नगर’ (अब महोबा) का कभी भ्रमण करूँ। दो मित्रों श्री महेंद्र प्रताप (महोबा के मूल निवासी) और…