राजदरी-देवदरी : कहि न जाय का कहिये
विन्ध्याचल निवासिनी गिरीन्द्रनन्दिनी ने स्वकीया परिभ्रमण लीला में विचरण करते हुए इस जल प्रपात में समोद मज्जन किया था। राज राजेश्वरी के अवगाहन तथा सर्वदेवशरीरजा की जल लीला-विहार के चलते इस पावन प्रपात का नाम राजदरी-देवदरी हो गया। इस स्थली को देख सर्वसत्वमयी जयन्ती चमत्कृता हो गयीं थीं अतः पार्श्वभूमि का नाम आज भी चमत्कृता (चकिया) नाम से विश्रुत है।