पिताजी प्राय: कहा करते थे कि चंदेल राजवंश का अतीत बहुत गौरवशाली रहा है। समृद्ध एवं गौरवमय अतीत में झाँकने की उनकी प्रेरणा के कारण मेरे मन में बहुत इच्छा रहती थी कि अपने पुरखों की धरती ‘महोत्सव नगर’ (अब महोबा) का कभी भ्रमण करूँ। दो मित्रों श्री महेंद्र प्रताप (महोबा के मूल निवासी) और श्री सुनील के साथ गत श्रावण शुक्ल चतुर्दशी को मैं खजुराहो और महोबा की यात्रा हेतु निकल पड़ा। महेंद्र जी ने बताया था कि महोबा भ्रमण के लिए उचित समय रक्षाबंधन है, कारण रक्षाबंधन के अगले दिन से एक सप्ताह तक चलने वाला ‘कजली महोत्सव’ है। चन्देल राजा कीर्तिवर्मन द्वारा निर्मित कीरत सागर के तट पर बहुत विशाल मेला लगा करता है। इस मेले का आयोजन युद्ध में राजा कीर्तिवर्मन की विजय के उपलक्ष्य में किया जाता है।
रक्षाबंधन के दिन हम तीनों रेलमार्ग से खजुराहो पहुँचे, होटल में स्नान-ध्यान के पश्चात पूरे दिन के लिए एक ऑटो ले लिया जो कि बहुत अच्छा निर्णय रहा। सर्वप्रथम हम लोग कर्णावती नदी पर बन रहे जलप्रपात को देखने पहुँचे। कर्णावती नदी को केन नदी भी कहा जाता है। गाइड ने बताया कि इस प्रपात का परिवेश ज्वालामुखी लावा के पत्थरों से बना है। ग्रेनाइट पत्थर की बड़ी चट्टानें सहज ही आकर्षित करती हैं। यहाँ का सोन बालू सबसे अच्छा माना जाता है।
तत्पश्चात हम विश्व धरोहर खजुराहो के मंदिरों की ओर बढ़ चले। खजुराहो के मंदिर दो समूह में बने हैं- पूर्वी समूह और पश्चिमी समूह। पश्चिमी समूह के मंदिर अधिक प्रसिद्ध हैं एवं उनका रख-रखाव भी अच्छा है। सबसे पहले जगत पिता ब्रह्मा का मंदिर है। खजुराहो के मंदिरों की सबसे विशेष बात यह दिखी कि सभी शिव को केंद्र में रख कर बनवाये गये हैं। सम्भवतः यह चंदेल शासको की शिव में अटूट भक्ति को प्रदर्शित करता हैै। ब्रह्मा के मंदिर में शिवलिंग चतुर्मुखी है।
अधिकांश मंदिरों में पूजा नहीं होती है। पंचायतन शैली में बने ये मंदिर शिल्प कला के अप्रतिम प्रतीक हैं। इन मंदिरों ने अनेक आक्रांताओं को झेला होगा, यह भीतियों पर बनी मूर्तियों की खण्डित अवस्था स्पष्टत: बताती है। खजुराहो के मंदिरों के बारे में अधिकांश लोगों की यह धारणा है कि ये मंदिर मात्र मिथुन मूर्तियों को प्रदर्शित करते हैं । ऐसा कदापि नहीं है। ऐसी मूर्तियों का प्रतिशत अल्प है । शिल्पशास्त्र की रूढ़ि के पालन के अतिरिक्त देखें तो मिथुन मूर्तियाँ जीवन के चार पुरुषार्थों में से काम पक्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं । मंदिरों की भीतियों पर बनी मूर्तियाँ जीवन की विविध गतिविधियों को सजीव रूप में प्रदर्शित करती हैं। इन मूर्तियों में कृषि कार्य भी दिखता है, तो कहीं युद्धरत अश्वारोही भी दिखते हैं, कहीं बारात भी दिखती है। इन मंदिरों की मूर्तियों में अद्भुत शिल्प साम्य भी दिख जाता है। उदाहरण के लिये प्राय: सभी मंदिरों की बाहरी मूर्तियों में हयग्रीव अवतार, शार्दूल, अर्द्धनारीश्वर, यक्ष गण प्रदर्शित हैं।
इन मंदिरों को देखते हुए हम लोग उत्खनित मंदिर ‘बीजा मण्डल’ पहुँचे, अभी वहाँ पहुँचने हेतु मार्ग निर्माण नहीं हुआ है। मंदिर के अवशेषों के बीच विशाल शिवलिंग विद्यमान है। इन मंदिरों की वर्तमान दशा अत्यंत ही दुखद है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिल्पकला के अद्भुत और उत्कृष्ट प्रतिमान खजुराहो के मंदिरों के प्रति प्रशासन एवं जनता, दोनों उदासीन लगते हैं।