स्वास्थ्य संध्या नियमित दिनचर्या : सनातन बोध – ६६
आधुनिक अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार के समय में जहाँ लोग किसी भी नित्य-नियमित को व्यर्थ का बंधन व नीरस समझते हैं तथा प्रति दिन एक नए रूप में जीना चाहते हैं; क्या बँधी बँधाई दिनचर्या के विषय में मनोविज्ञान के कुछ निष्कर्ष उपलब्ध हैं?