Consciousness चैतन्य व योगवासिष्ठ : सनातन बोध – ७४

Consciousness चैतन्य व योगवासिष्ठ समुद्र-तरंग, सर्प-रस्सी, घट-आकाश, यन्त्र पुतली, अनेक स्वाँग धरने वाला नटुआ, वर्षाकाल का एक ही मेघ नानारूप। वस्तुओं और घटनाओं का स्वरूप मस्तिष्क द्वारा निर्मित होता है। इसका अर्थ यह नहीं कि वे वस्तुयें हैं नहीं परंतु यह है कि वे हमारे मस्तिष्क के लिए उस आभासी रूपों में हैं जिनमें उन्हें वह देखना चाहता है।

Negativity bias Good Company सत्संग

Negativity bias Good Company सत्संग : सनातन बोध – ६९

Negativity bias Good Company सत्संग वर्ष २००५ में रिव्यू ऑफ जनरल साइकोलोज़ी में छपे शैली गेबल और जोनाथन हैडट के एक शोध पत्र के अनुसार सामान्यतः हमें नकारात्मक से तीन गुना अधिक सकारात्मक अनुभव होते हैं। यह शोध पढ़ते हुए मन में स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि यदि ऐसा है तो क्यों हम बहुधा अपने…

Delusion Yoga Vasishtha भ्रांति माया अविद्या : सनातन बोध – ६८

भ्रांति यथा इंद्रजाल, माया या अविद्या की चर्चा किसी एक सनातन ग्रंथ तक सीमित नहीं होते हुए यह सनातन दर्शन का एक विशिष्ट सिद्धांत है, विशेषकर अद्वैत ग्रंथों में। बौद्ध दर्शन, जिसका परिवर्तित रूप पश्चिमी देशों में लोकप्रिय है, भी स्पष्ट रूप से इन दर्शनों से प्रभावित है। मानव मस्तिष्क के परे ब्रह्मांड के निर्माण, परिवर्तन तथा विस्तार इत्यादि के संदर्भ में भी सनातन दर्शन में इन भ्रांतियों की परिभाषा बृहत् है।