Detachment अनासक्ति निर्णय कर्म

Detachment अनासक्ति निर्णय कर्म : सनातन बोध – ८७

Detachment अर्थात् अनासक्ति। इसका एक निष्कर्ष यह भी है कि आसक्ति में एवं भावना में बहकर कभी अर्थपूर्ण निर्णय और कार्य नहीं किए जा सकते। सहानुभूति के साथ-साथ अनासक्त अवलोकन की कहीं अधिक आवश्यकता है। तभी उसे करुणा तथा समुचित कर्म में परिवर्तित किया जा सकता है – स्वजनों के लिए भी एवं बृहत् स्तर पर मानवता के लिए भी, अन्यथा व्यक्ति सोचता ही रह जाएगा और चिंतित भी रहेगा।

Perception and Reality अनुभूति व वास्तविकता : सनातन बोध – 40

क्या अनुभूतियाँ (perception) स्थिर न होकर देश, काल और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनशील होती हैं? जीवन में कभी चरम सौन्दर्य एवं अतिप्रिय लगने वाले उपादान भी क्या कभी कालान्तर में हमें व्यर्थ प्रतीत हो सकते हैं?