शून्य – 4

सिद्धांत-शिरोमणि (लीलावती, बीजगणित, गोलाध्याय और ग्रहगणित) गणित का अद्भुत ग्रंथ है, आज भी। संभवतः उनकी गणितीय रचना से अधिक टीकायें और अनुवाद गणित के किसी पुस्तक की नहीं हुईं। यह रचना भारतीय शिक्षा पद्धति में किस तरह बसी होगी इसका अनुमान मैं इस बात से लगाता हूँ कि भास्कराचार्य के लगभग ८५० वर्ष पश्चात मुझे किसी ने गणित सिखाते हुए कहा था कि ‘मैं जो सिखाऊंगा वह चक्रवाल गणित है। इससे कोई सवाल बन जायेगा लेकिन परीक्षा में ऐसे मत लिखना।’ उस घटना के वर्षों पश्चात पता चला कि चकवाली विधि सच में एक गणितीय विधि है जिसके प्रणेता भास्कराचार्य थे।

शून्य – 3

शून्य – 1, शून्य – 2 से आगे … ‘शून्य’ की प्रथम स्पष्ट गणितीय परिभाषा ब्रह्मगुप्त (628 ई.) के ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त में मिलती है। यह वह युग था जब अंकगणित, बीजगणित और ज्यामिति वेदांग ज्योतिष से अलग गणित के रूप में लगभग स्वतंत्र पहचान बना चुके थे। आर्यभटीय ज्योतिष का पहला ग्रन्थ है जिसमें गणित के…