Self-control Yoga Vasishtha आत्मसंयम : सनातन बोध – ६७

योगवासिष्ठ एक अद्भुत सनातन ग्रंथ है, साथ ही दर्शन तथा मनोविज्ञान की दृष्टि से भी यह ग्रंथ अद्वितीय है। शोध व अध्ययनों का सारांश है कि जिस व्यक्ति के पास लोभों से बचने का आत्मसंयम हो, दीर्घकाल में उसका जीवन अत्यंत सफल होता है।

स्वास्थ्य संध्या नियमित दिनचर्या : सनातन बोध – ६६

आधुनिक अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार के समय में जहाँ लोग किसी भी नित्य-नियमित को व्यर्थ का बंधन व नीरस समझते हैं तथा प्रति दिन एक नए रूप में जीना चाहते हैं; क्या बँधी बँधाई दिनचर्या के विषय में मनोविज्ञान के कुछ निष्कर्ष उपलब्ध हैं?

Subsidised Higher Education सानुवृत्ति उच्च शिक्षा, गुणवत्ता ह्रास व दस्युवृत्ति : सनातन बोध – ६५

यह स्वाभाविक है कि शिक्षण संस्थाओं में असीमित समय तक यदि अनुदान मिले तो व्यक्ति को न ही उत्तीर्ण होने में रुचि होगी, न गुणवत्ता में। सनातन दर्शन में कुछ भी निःशुल्क प्राप्त करने या उसकी आकाँक्षा करने के स्थान पर कर्म से उपार्जन को श्रेष्ठ माना गया है।

प्रसन्न सार्थक सफल सुखी जीवन, सनातन व पश्चिम : सनातन बोध – ६२

प्रसन्न सार्थक सफल सुखी, अमेरिकी स्वतंत्रता घोषणा में लिखे शब्द pursuit of happiness को अधिकांशतया लोग जीवन का लक्ष्य मानते हैं। प्रसन्नता एवं सार्थकता के बीच अर्थहीन से प्रतीत होते विभाजन पर अनेक गम्‍भीर अध्ययन हुए हैं।

Death मृत्यु से भय कैसा? : सनातन बोध – ६१

Death मृत्यु से भय कैसा? इसका संज्ञान सुखी जीवन की ओर ले जाता है। इस दर्शन का अलौकिक लाभ हो न हो, मनोवैज्ञानिक लाभ तो स्पष्ट ही है।

Political Correctness नयसत्यता व कुल संस्कार प्रभाव : सनातन बोध – ६०

जीव विज्ञान तथा आनुवंशिकी का संदर्भ देकर कुल, संस्कृति इत्यादि के प्रभाव को नकारने वाले ये भूल जाते हैं कि संस्कृति, धर्म, परिवेश तथा जाति (Ethnicity) का व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव होता है।

स्पर्श व मर्म चिकित्सा – सनातन बोध – 58

शताब्दियों से स्पर्श मनुष्य के लिए रोचक विषय रहा है। त्वचा इंद्रियों में सबसे विस्तृत तथा बाह्य ग्राही है। ज्ञानेंद्रियों में त्वचा एक प्रमुख इन्द्रिय है।

परोपकार Selfless help : सनातन बोध – 54

व्यसनी,धोखाधड़ी आदि में लिप्त व्यक्ति अर्थात जिन्हें परोपकार से कुछ लेना देना नहीं था, से जब छोटे परोपकार के कार्य कराए गए तो उनकी प्रसन्नता में वृद्धि हुई।

Paradox of Choices, craving of best, seek of happiness

Maximiser vs Satisficer सर्वोत्तम की चाहना, विकल्प एवं सुख : सनातन बोध – 51

Maximiser Vs Satisficer, मनोवैज्ञानकों ने निर्णय लेने के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण दो सरल रूपों में किया है – एक वे जो प्रत्येक निर्णय को इस प्रकार लेने का प्रयत्न करते हैं जिससे उन्हें अधिकतम लाभ मिले (maximiser), इन व्यक्तियों को अपने निर्णयों के पूर्णत: दोषमुक्त (perfect) होने चिंता बनी रहती है। और दूसरे वे जो अपने निर्णयों से प्रायः संतुष्ट होते हैं।

Holy Femme Fatales यत्र नार्यस्तु या कामिनी कंचन : सनातन बोध – 47

स्त्री-पुरुष में प्रकृति-प्रदत्त शारीरिक और प्रकृति के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए निर्मित विकासवादी-जनित कुछ मनोवैज्ञानिक भेद अवश्य हैं। जिनका पूर्ण अध्ययन अभी भी शेष है। स्त्री-पुरुष की कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जिन्हें हम सामान्यतया असमानता समझ लेते हैं। वास्तव में वो स्त्री-पुरुष की विशिष्टताएं हैं। इन विशिष्टताओं को श्रेष्ठ या निकृष्ट कह सौहार्द विखंडित करना अनुचित एवं मूर्खता है।

Temptation and Self-control प्रलोभन एवं आत्मसंयम : सनातन बोध – 44

मनोविज्ञान में इसे अस्थायी कटौती (temporal discounting) भी कहते हैं, दीर्घकालिक लाभ की दूरदर्शी सोच के स्थान पर अल्पकालिक क्षणिक सुख के प्रलोभन में उलझना।

Live in the moment सत् चित्त आनंद : सनातन बोध – 43

Live in the moment चित्त एकाग्रता। आधुनिक मनोविज्ञान सत् चित्त आनंद की निष्पत्ति तक तो आ चूका है परन्तु उस स्थिति को प्राप्त करने का उपाय अभी आधुनिक मनोविज्ञान नहीं बता पा रहा परन्तु सनातन दर्शन इसका हल भी बताता है।

Perception and Reality अनुभूति व वास्तविकता : सनातन बोध – 40

क्या अनुभूतियाँ (perception) स्थिर न होकर देश, काल और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनशील होती हैं? जीवन में कभी चरम सौन्दर्य एवं अतिप्रिय लगने वाले उपादान भी क्या कभी कालान्तर में हमें व्यर्थ प्रतीत हो सकते हैं?