भरतस्य शपथाः (द्वितीयः भागः)

भरतस्य शपथाः (द्वितीयः भागः)

भरतस्य शपथाः (द्वितीयः भागः)।
वाल्मीकीये रामायणे भरतः श्रीरामस्य वनगमने तस्य लेशमात्रोऽपि प्रयत्नः नास्ति इति माता कौसल्यां प्रति विश्वास्यति । तदा भरतः सौगन्धरूपेण बहूनि अकर्तव्यानि पातकानि च वदति यथा — यस्य कारणाद् आर्यः श्रीरामः वनं गतः सः एतत्पापफलं प्राप्नोति, पूर्वभागतः अग्रे वयं पश्यामः।

भरतस्य शपथाः (प्रथमः भागः)

भरतस्य शपथाः (प्रथमः भागः)

वाल्मीकीये रामायणे बहुषु स्थानेषु तत्समये किम्कर्तव्यम किमकर्तव्यम् इति शिक्षा मिलति, परस्पर द्वयोः जनयोः सम्वाद रूपे लेखकस्य स्वगतविचारे वा । यथा अयोध्याकाण्डे श्रीरामः पितुः वचनानुसारेण स्वराज्याभिषेकं त्यक्त्वा सीतालक्ष्मणौ सह वनं प्रति गच्छति । भरतः कैकय राज्यात् अयोध्यायां आगमने महाराज दशरथस्य देहान्तं श्रीरामस्य वनगमनं च शृणोति स्म । सः कैकय्याः दुष्कृत्याय जननीं कुत्सयति स्वाक्रोशं च प्रदर्शयति

ममता और निर्ममता

ममता और निर्ममता : शब्द – ७

ममता और निर्ममता- ममता (मम+तल्+टाप्)। तल्+टाप् से बनने वाले शब्द सदा स्त्रीलिंग होते हैं। जहाँ मम अर्थात् स्वकीय भाव का अभाव हो – निर्मम। भारतीय आन्वीक्षिकी में राजपुरुषों, धर्मस्थों आदि हेतु निर्ममता को एक आदर्श की भाँति लिया गया है। समय के साथ शब्दों के अर्थ रूढ़ होते जाते हैं। निर्मम शब्द का अर्थ अब बहुधा नकारात्मक रूप में लिया जाता है, क्रूरता से, बिना किसी करुणा आदि के किया गया अवांंछित कर्म निर्मम कह दिया जाता है।

श्राद्ध और सम्बन्धी

श्राद्ध और सम्बन्धी

श्राद्ध और सम्बन्धी – हम पितरों को कृष्णतिल एवं पयमिश्रितजल अर्पण करते हैं। एक गृहस्थ द्वारा षोडश दिवसपर्यन्त नित्य तर्पण किया जाना चाहिए।

अर्थ की गति : श्रीधर जोशी

अर्थ की गति

शब्द यदि शिव है, तो अर्थ ही उसकी शक्ति है। निरर्थक शब्द अप्रयुक्त माने जाते हैं, साथ ही अर्थज्ञान से रहित को यास्क ने ठूँठ कहा है। यास्क कहते हैं,कि जैसै बिना ईंधन के अग्नि नहीं जल पाती है, उसी प्रकार अर्थज्ञान के विना शब्द प्रयोग व्यर्थ है

संस्कृत संस्कृति संस्कार

संस्कृत संस्कृति संस्कार : शब्द – ६

आज श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को सभी संस्कृतप्रेमी संस्कृत-दिवस का आयोजन कर रहे हैं। कहा गया है- “संस्कृति: संस्कृताश्रिता” अर्थात् ‌ भारत की संस्कृति संस्कृत भाषा पर ही आश्रित या निर्भर है।

प्रागैतिहासिक : शब्द – ४

प्राक्+ इतिहास में क् के बाद इ आने पर क् अपने तृतीय ग् में परिवर्तित हो गया। इस तरह यह प्राग् बना। इतिहास में ठक् प्रत्यय होने से इ ऐ में परिवर्तित हो गया और बना ऐतिहासिक। प्राग्+ ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक ।

कृष्ण सङ्कर्षण कृषि

कृष्ण सङ्कर्षण कृषि : शब्द – ३

कृष्ण सङ्कर्षण कृषि – सङ्कर्षण – सम्यक् कृष्यते इति सङ्कर्षण। नीलाम्बरो रौहिणेयस्तालाङ्को मुसली हली। सङ्कर्षणो सीरपाणि: कालिन्दीभेदनो बल: ॥

किंकर्तव्यविमूढ

किंकर्तव्यविमूढ़ – क्या करे, क्या न करे? : शब्द – २

“सावित्री के तर्क सुनकर धर्मराज किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए” । इस वाक्य में एक शब्द है -किंकर्तव्यविमूढ। यह एक शब्द न हो कर तीन शब्दों का समूह है

आत्मनिर्भर : शब्द – १

विगत दिनों माननीय प्रधानमंत्री ने देश के नागरिकों के समक्ष आत्मनिर्भर होने का विचार व्यक्त किया। आत्मनिर्भर शब्द को समझने का हम प्रयास करते हैं।