Paternity and Human evolution मानव विकास में पितृत्व का महत्त्व

Paternity and Human evolution शरीरकृत् प्राणदाता यस्य बच्चों के चित्र देख पिताओं के मस्तिष्क में पारितोषिक प्रदान क्षेत्र सक्रिय हो जाते हैं। मातृत्व की ही भाँति पितृत्व भी मानव प्रजाति के साथ साथ व्यक्ति के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है तथा मातृत्व एवं पितृत्व एक दूसरे के पूरक हैं एक दूसरे को प्रतिस्थापित नहीं कर सकते।

Negativity bias Good Company सत्संग

Negativity bias Good Company सत्संग : सनातन बोध – ६९

Negativity bias Good Company सत्संग वर्ष २००५ में रिव्यू ऑफ जनरल साइकोलोज़ी में छपे शैली गेबल और जोनाथन हैडट के एक शोध पत्र के अनुसार सामान्यतः हमें नकारात्मक से तीन गुना अधिक सकारात्मक अनुभव होते हैं। यह शोध पढ़ते हुए मन में स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि यदि ऐसा है तो क्यों हम बहुधा अपने…

Delusion Yoga Vasishtha भ्रांति माया अविद्या : सनातन बोध – ६८

भ्रांति यथा इंद्रजाल, माया या अविद्या की चर्चा किसी एक सनातन ग्रंथ तक सीमित नहीं होते हुए यह सनातन दर्शन का एक विशिष्ट सिद्धांत है, विशेषकर अद्वैत ग्रंथों में। बौद्ध दर्शन, जिसका परिवर्तित रूप पश्चिमी देशों में लोकप्रिय है, भी स्पष्ट रूप से इन दर्शनों से प्रभावित है। मानव मस्तिष्क के परे ब्रह्मांड के निर्माण, परिवर्तन तथा विस्तार इत्यादि के संदर्भ में भी सनातन दर्शन में इन भ्रांतियों की परिभाषा बृहत् है।

Self-control Yoga Vasishtha आत्मसंयम : सनातन बोध – ६७

योगवासिष्ठ एक अद्भुत सनातन ग्रंथ है, साथ ही दर्शन तथा मनोविज्ञान की दृष्टि से भी यह ग्रंथ अद्वितीय है। शोध व अध्ययनों का सारांश है कि जिस व्यक्ति के पास लोभों से बचने का आत्मसंयम हो, दीर्घकाल में उसका जीवन अत्यंत सफल होता है।

स्वास्थ्य संध्या नियमित दिनचर्या : सनातन बोध – ६६

आधुनिक अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार के समय में जहाँ लोग किसी भी नित्य-नियमित को व्यर्थ का बंधन व नीरस समझते हैं तथा प्रति दिन एक नए रूप में जीना चाहते हैं; क्या बँधी बँधाई दिनचर्या के विषय में मनोविज्ञान के कुछ निष्कर्ष उपलब्ध हैं?

Death मृत्यु से भय कैसा? : सनातन बोध – ६१

Death मृत्यु से भय कैसा? इसका संज्ञान सुखी जीवन की ओर ले जाता है। इस दर्शन का अलौकिक लाभ हो न हो, मनोवैज्ञानिक लाभ तो स्पष्ट ही है।

Ego Trap Narcissism आत्मप्रशंसा शत्रु : सनातन बोध – 59

सनातन दर्शन में आत्मश्लाघा, आत्मप्रेम, आत्मप्रवञ्‍चना इत्यादि को स्पष्ट रूप से मिथ्याभिमान तथा अविद्या कहा गया है। वहीं स्वाभिमान की भूरि भूरि प्रशंसा भी की गयी है तथा उसे सद्गुण कहा गया है। अर्थात दोनों का विभाजन स्पष्ट है।

स्पर्श व मर्म चिकित्सा – सनातन बोध – 58

शताब्दियों से स्पर्श मनुष्य के लिए रोचक विषय रहा है। त्वचा इंद्रियों में सबसे विस्तृत तथा बाह्य ग्राही है। ज्ञानेंद्रियों में त्वचा एक प्रमुख इन्द्रिय है।

Let go बीती ताहि बिसार दे Forgetting, Key to Health : सनातन बोध – 56

Let go बीती ताहि बिसार दे जैसी उक्तियों में यही बात है। अतीत को भूल वर्तमान में जीने का दर्शन तो निर्विवाद सनातन ही है। ‘बंधनम् मुच्यते मुक्ति’।

सामाजिक संचार माध्यम, सुविधा या जटिलता : सनातन बोध – 55

सनातन दर्शनों की विशेषता यही है कि मानव मस्तिष्क की जो विवेचना उसमें की गयी है वो विभिन्न देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार भी सत्य है। यथा सभा का स्वरूप भले परिवर्तित हो गया हो परन्तु उस सभा में कब क्या बोलना चाहिए, किससे प्रेम करना चाहिए तथा कब और कितना क्रोध करना चाहिए जो इन बातों को जानता है उसे ही तो अब भी पंडित कहा जाएगा

परोपकार Selfless help : सनातन बोध – 54

व्यसनी,धोखाधड़ी आदि में लिप्त व्यक्ति अर्थात जिन्हें परोपकार से कुछ लेना देना नहीं था, से जब छोटे परोपकार के कार्य कराए गए तो उनकी प्रसन्नता में वृद्धि हुई।

प्रकृति के सान्निध्य से मनोवैज्ञानिक लाभ : : सनातन बोध – 53

वन-वृक्ष-नदी-पर्वत का साधना से क्या सम्बन्ध ? ग्रंथ, ऋषि वाणियाँ प्रकृति वर्णन से क्यों भरे पड़े है? वनों में ऐसा क्या प्राप्त हो जाता है जो सामान्य नगरों में नहीं मिलता?

Paradox of Choices, craving of best, seek of happiness

Maximiser vs Satisficer सर्वोत्तम की चाहना, विकल्प एवं सुख : सनातन बोध – 51

Maximiser Vs Satisficer, मनोवैज्ञानकों ने निर्णय लेने के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण दो सरल रूपों में किया है – एक वे जो प्रत्येक निर्णय को इस प्रकार लेने का प्रयत्न करते हैं जिससे उन्हें अधिकतम लाभ मिले (maximiser), इन व्यक्तियों को अपने निर्णयों के पूर्णत: दोषमुक्त (perfect) होने चिंता बनी रहती है। और दूसरे वे जो अपने निर्णयों से प्रायः संतुष्ट होते हैं।

monotheism vs polytheism

Sanātana Darśana Monotheism Polytheism कति देवाः? : सनातन बोध – 50

Sanātana Darśana Monotheism Polytheism कति देवाः? आठ वसु, एकादश रुद्र, द्वादश आदित्य, इन्‍द्र एवं प्रजापति, कुल तैंतिस। पूरा प्रकरण एक ऐसी प्रवाहमान धारा को इङ्गित करता है जिसकी पूरी व्याख्या अब अनुपलब्ध है।

Holy Femme Fatales यत्र नार्यस्तु या कामिनी कंचन : सनातन बोध – 47

स्त्री-पुरुष में प्रकृति-प्रदत्त शारीरिक और प्रकृति के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए निर्मित विकासवादी-जनित कुछ मनोवैज्ञानिक भेद अवश्य हैं। जिनका पूर्ण अध्ययन अभी भी शेष है। स्त्री-पुरुष की कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जिन्हें हम सामान्यतया असमानता समझ लेते हैं। वास्तव में वो स्त्री-पुरुष की विशिष्टताएं हैं। इन विशिष्टताओं को श्रेष्ठ या निकृष्ट कह सौहार्द विखंडित करना अनुचित एवं मूर्खता है।

Maslow hierarchy of needs एवं पञ्चकोश : सनातन बोध – 46

ब्राज़ील के प्रोफ़ेसर पाउलो हायऐशी ने शंकराचार्य विरचित तत्वबोध और मास्लो के सिद्धांत में समानता देखी और दोनों को एक संदर्भ में अध्ययन करने का सुझाव दिया।

Intermittent Fasting उपवास एवं व्रत : सनातन बोध – 45

जैसे जैसे आधुनिक शोध आते जायेंगे, अनुभव एवं प्रेक्षण आधारित सनातन प्रज्ञा के निष्कर्ष सूत्र पुष्ट होते जायेंगे। मानवता एक प्रकार से स्वयं के पुनर्नुसन्‍धान में लगी है एवं भारत उसके मार्ग में सहस्रदीप जलाये हुये है।

Temptation and Self-control प्रलोभन एवं आत्मसंयम : सनातन बोध – 44

मनोविज्ञान में इसे अस्थायी कटौती (temporal discounting) भी कहते हैं, दीर्घकालिक लाभ की दूरदर्शी सोच के स्थान पर अल्पकालिक क्षणिक सुख के प्रलोभन में उलझना।

Live in the moment सत् चित्त आनंद : सनातन बोध – 43

Live in the moment चित्त एकाग्रता। आधुनिक मनोविज्ञान सत् चित्त आनंद की निष्पत्ति तक तो आ चूका है परन्तु उस स्थिति को प्राप्त करने का उपाय अभी आधुनिक मनोविज्ञान नहीं बता पा रहा परन्तु सनातन दर्शन इसका हल भी बताता है।

अनासक्ति व प्रेम सम्बन्ध Detachment and Relationship : सनातन बोध – 37

अनुकम्पा और मोह से अनासक्त हो वस्तुनिष्ठ होने की बात है। भ्रान्ति से परे सम्बन्‍धों और संसार को समझने की बात है, सुखमय प्रेम और दाम्पत्य के लिए ।