चेतना के स्तर अनुसार वेदों के मंत्र अपने कई अर्थ खोलते हैं। कतिपय विद्वानों की मान्यता है कि किसी श्रुति के छ: तक अर्थ भी किये जा सकते हैं – सोम चन्द्र भी है, वनस्पति भी है, सहस्रार से झरता प्रवाह भी। वेदों के कुछ मंत्र अतीव साहित्यिकता लिये हुये हैं। इस शृंखला में हम कुछ मंत्रों के भावानुवाद प्रस्तुत करेंगे।
अथर्वण संहिता का स्वापन सूक्त (शौ. शा., 4.5) कोमल शब्द योजना की दृष्टि से सुन्दर है। स्वापन किसे कहते हैं? वह जो नींद लाये, उसका कारण हो, सपनीली नींद लाये। लोरी उसी श्रेणी में आती है। यहाँ लोरी किसी बच्चे के लिये नहीं गायी जा रही, भरे पुरे समस्त परिवार के लिये गायी जा रही है। किसी माता या स्त्री द्वारा नहीं गायी जा रही, एक सुखी गृहस्थ द्वारा गायी जा रही है।
छन्द हैं, लय, मात्रा, यति, विश्रांति सब हैं, दिन बीत चुका है। संतुष्ट गृही समस्त परिवार की कल्याण कामना के साथ जागता हुआ सबके लिये गा रहा है, उसके गायन में घर के पालतू कुत्ते तक के लिये कामना है कि तुम भी सोओ!
चन्द्र के लिये सहस्रशृङ्गो वृषभो प्रयुक्त हुआ है। वर्षा ऋतु है, इस ऋतु का चन्द्र वृषभ है। समुद्र का किनारा है, पूर्णिमा है और चन्द्र निकल आया है। स्वच्छ आकाश में तारक गण भी हैं। बरसती चाँदनी ऐसे लगती है जैसे चन्द्र के हजारो सींग हों। घर पर सब शांत है।
ठहराव की इस घड़ी में स्वस्ति गान उपजता है, लोरी सा, सो जाओ, सब सो जाओ। सुन्दर सपनों की नींद सो जाओ। तुम्हारी कल्याण कामना के साथ मैं हूँ न! उसका गान सभी ऐसे गृहस्थों का गान है, वह सबकी ओर से गा रहा है। तारों भरी रात (शर्वरी सज्ञा का अर्थ यही है) में घर की स्त्रियों के प्रति वह भाव दर्शनीय है जो उन्हें ‘पुण्यगन्धा’ बताता है। बरबस ही ध्यान चन्द्र की एक संज्ञा सोम पर चला जाता है।
उगा समुद्र से चन्दा न्यारा, किरणों को लिये हजार।
हम तुम्हें सुलायें हौले से, ले उसका बल विस्तार॥
हे मन्द वायु तू धरती पर, न देखे कोई अन्धकार।
इन्द्र सखा सुला दे सब को, स्त्रियाँ और कुत्ते निहार॥
आँगन में हिंडोलों पर, शय्या पर लेटीं सब हार।
सुलायें पुण्यगन्धाओं को, हम शुचि स्वप्निल संसार॥
चक्षु भटकते निग्रह में, प्राण हुआ स्वाधीन सकार।
अङ्ग अङ्ग हैं निग्रह में, रात शर्वरी सब पर सवार॥
बैठा हो चाहे हो खड़ा, चलता हो जो आर पार।
सबकी आँखें बन्द करें, जैसे मन्दिर के बन्द द्वार॥
माता सोयें पिता सोयें, कुत्ता स्वामी सब सहकार।
बन्धु जाति सब निश्चल सोयें, चारो ओर पैर पसार॥
निंदिया रानी सुला दे सबको, सूर्योदय तक सँभार।
इन्द्र अरिष्ट अक्षित मैं जागूँ, पूरा करते जग व्यवहार॥
भावानुवाद : गिरिजेश राव
अहा!