वैज्ञानिक नाम: Metopidius indicus
स्थानीय नाम: जलमखानी, जलपिपी, दालपिपी, टीभु, कांस्य पक्ष, जल कपोत, कटोई
अंग्रेजी नाम: Bronse Winged Jacana
चित्र स्थान और दिनाङ्क: अयोध्या, उत्तरप्रदेश, 13/01/2017
छाया चित्रकार (Photographer): आजाद सिंह
यह एक छोटी चिड़िया है जो कमल तथा पानी के अन्य पौधों पर टहलती रहती है। इसके पंजे काफी लम्बे होते हैं। नर और मादा एक ही रंग रूप के होते हैं। नर की लम्बाई लगभग 11 इंच होती है।
अवयस्क के पीठ और पूँछ कत्थई रंग के होते हैं। वयस्क के सिर, ग्रीवा और पैरों के अगले भाग हरे रंग की झलक लिये काले होते हैं। ग्रीवा के पिछले भाग में बैगनी चमक और आँखों के ऊपर श्वेत धारी, नीचे उसी रंग का चित्ता होता है। पीठ और पंख जैतूनी रंग के और बड़े पंख कालापन लिये होते हैं। आँखें भूरी, टाँगें मटमैली हरी, चोंच हरर्छौंह पीली और माथे पर चौड़ा निलछौंह चकत्ता होता है।
ये भारत, पाकिस्तान और बँगलादेश में पायी जाती हैं। पश्चिमी राजस्थान छोड़कर इन्हें प्रायः देश के सभी स्थानों पर देखा जा सकता है। देश के दक्षिणी भागों में अधिक पाई जाती हैं, उत्तर में पश्चिमी प्रदेशों में कम और उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागों से लेकर असम तक बहुतायत में मिलती हैं। ये पूरे वर्ष यहीं रहती हैं।
ये कमल कुइँ और सिंघाड़े से भरे तालाबों, झीलों और वनस्पतियों से भरे जलाशयों में बहुधा पाई जाती हैं। जलमखानी थोड़ी लजालु प्रजाति होती है जो आहट मिलते ही घास आदि में छुप जाती है। घास न मिलने पर ये पानी के अन्दर प्रवेश कर जाती हैं और आशंका रहने तक चुपचाप गर्दन पानी से बाहर निकाले पड़ी रहती हैं। पानी में डुबकी लगाने से अधिक ये जलीय पौधों पर दौड़ना पसंद करती हैं।
इनका मुख्य भोजन पानी के कीड़े मकोड़े, उनके अंडे बच्चे, पत्ते, जड़ें, दाना और बीज आदि हैं।
ये जून से सितम्बर तक जोड़ा बनाकर अंडे देती हैं। ये घास पात और सेवार से भरे पानी के किनारे या कमल आदि के बीच में बड़ा सा घोसला बनाती है जो तैरता भी रह सकता है। घोंसले के बीच बड़ा सा गड्ढा रहता है। मादा प्रायः 4 अंडे देती है जिनका रंग भूरा या ललछौंह होता है जिन पर कत्थई काली चित्तियाँ या धारियाँ पड़ी होती हैं। इनके अंडे बहुत चमकदार होते हैं।
लेखक: आजाद सिंह |
इसी को बन मुर्गी कहते हैं क्या?