‘मघा’ के इस अंक से हम एक नयी शृंखला आरम्भ कर रहे हैं जिसमें विविध विषयों पर विद्वानों से बातचीत और साक्षात्कार प्रस्तुत किये जायेंगे।
श्रीगणेश के लिये भारत की सबसे प्राचीन थाती ‘ऋग्वेद’ से अधिक उपयुक्त कौन सा विषय हो सकता है और ऋग्वेद पर बातचीत के लिये स्वनामधन्य श्री भगवान सिंह जी से उपयुक्त कौन?
भगवान सिंह जी की पुस्तक ‘हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य’ ने सरस्वती-सिंधु सभ्यता और ऋग्वेद के सम्बंध पर नयी राहें तो दिखाई हीं, साथ ही कई भ्रामक अवधारणाओं और स्थापनाओं को सदा सदा के लिये ध्वस्त कर दिया।
इस कृति को पढ़ते हुये सहज ही ‘सूक्ष्मातिसूक्ष्म मन का विवेक’ और ‘पूर्णाभिषेक’ जैसे शब्द ध्यान में आ जाते हैं।
वर्षों के तप से सृजित इस पुस्तक के बारे में इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि विशद अध्ययन और विश्लेषण में छांदस, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी के कुल 636 संदर्भ ग्रंथों, लेखों आदि का प्रयोग हुआ है।
प्रश्नावली नीचे दी गयी है जिस पर उनसे बातचीत 23 जुलाई 2017 को उनके निवास पर ही सर्वश्री सुभाष शर्मा और गंगेश द्वारा ध्वनिमुद्रित की गयी। ऑडियो को हेडफोन लगा कर सुनना अधिक स्पष्टता देगा।
भाग 1:
भाग 2:
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- आप ने साक्षात्कार हेतु अनुमति दी, इसके लिये मघा की ओर से हम आभार व्यक्त करते हैं। ऋग्वेद पर आप की पुस्तक ‘हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य’ एक मील का पत्थर मानी जाती है जिसने ऐसे अनेक सूत्रों को उद्घाटित किया जिन्होंने शोध की नयी दिशाओं और विचारों के मार्ग खोले। जहाँ तक हमें पता है, लगभग 20 वर्षों के सतत अध्ययन के पश्चात यह पुस्तक सामने आई और उस समय जबकि कम्प्यूटर पर नागरी टंकण इतना सरल नहीं था, आप ने कृतिदेव फॉण्ट में ऋग्वेद का पूरा पाठ तैयार किया।
अपनी इस यात्रा के बारे में आप बताइये कि ऋग्वेद में आप की रुचि कैसे जागृत हुई और उस ऐतिहासिक पुस्तक के छपने तक की यात्रा कैसे पूरी की गयी, क्या बाधायें आईं? किनके सहयोग मिले? आदि से पाठक अवगत होना चाहेंगे। - ऋग्वेद के अध्ययन के लिये और कौन से वेद, ब्राह्मण, उपनिषद और पुराण हैं जिनसे आप को सहायता मिली?
- कुछ विद्वानों, साथियों और सलाहकारों के बारे में बतायेंगे जिन्होंने आप को इस यात्रा में सहयोग दिया और अपने विचारों से आप के चिंतन को विस्तार दिया?
- ऋग्वेद के विदेशी अध्येताओं के बारे में सामान्य धारणा यह रही है कि उन्होंने आर्य आक्रमण के नरेटिव को पुष्ट करने के लिये वे कार्य किये जिनके पीछे अकादमिक निष्ठा के स्थान पर राजनीतिक और अन्य पूर्वग्रह एवं अन्य आग्रह काम कर रहे थे। इसके बारे में आप कुछ कहेंगे?
- 10 July 2009 को india international centre में हुई एक संगोष्ठी में Michael Witzel से आप के प्रश्नोत्तर बहुत चर्चित रहे जिनमें आप ने उनकी कुछ मान्यताओं की बड़ी निर्मम काट प्रस्तुत की थी। आप किञ्चित विस्तार देते हुये समझायेंगे कि वे कौन से बिंदु थे जिन पर Prof. Michael Witzel ठीक नहीं थे?
- ऋग्वेद का काल निर्धारण एक ऐसी गुत्थी रही है जिस पर टिळक और जैकोबी से ले कर आज तक अध्येता और विद्वान लगे हुये हैं। इसके अकादमिक, राजनीतिक, सामाजिक और अन्य पहलुओं के बारे में तनिक विस्तार से बताइये।
- सरस्वती सिंधु सभ्यता और वैदिक साहित्य के बारे में आप का एक विचार कुछ ऐसा रहा है कि जहाँ एक का साहित्य नहीं मिलता वहीं दूसरे के भग्नावशेष नहीं, दोनों एक नहीं हो सकते क्योंकि दोनों के भूगोल और कालखण्ड भी एक हैं? इस पर कुछ कहेंगे?
- कुछ परवर्ती अध्ययन यह सिद्ध करने में लगे हैं कि हड़प्पा सभ्यता द्रविड़ थी। वे हड़प्पा लिपि को द्रविड़ियन का प्राक् रूप मानते हैं। इनमें इरावतम महादेवन प्रमुख हैं। आप के विचार?
- ऋग्वेद सहित पुराणों में भी कुछ ऐसे शब्द हैं जो मात्र एक बार प्रयुक्त हुये हैं, यथा ‘हरियूपिया’ जिसे हड़प्पा से जोड़ने के प्रयास किये गये।
ऐसे शब्दों का होना संयोग मात्र है या उनके कुछ निहितार्थ हैं या दोनों? - असीरिया, मेसोपटामिया, मिस्र आदि पुरानी सभ्यताओं और ऋग्वैदिक जन के सम्बंधों के प्रमाण हैं क्या? मितान्नी संधि को लेकर यह प्रयास किये जाते रहे हैं कि वह संधि भारत में आर्य आव्रजन का प्रमाण है। इस पर आप के क्या विचार हैं?
- जह्नुप्रदेश हो या ऋग्वेद में आये जर्भरी तुर्फरी जैसे शब्द। कुछ अध्येता उन्हें पूरब और भोजपुरी प्रभाव से जोड़ते हैं। यह भी कहा जाता है कि ऐसे कुछ मंत्रों का सायण ने भाष्य तक नहीं किया। कृपया इस पर प्रकाश डालिये।
- आप के विचार से ऋग्वेद में ऐसे कौन से अंश हैं जिनपर नये अध्येताओं को केंद्रित होना चाहिये? Inter disciplinary अध्ययन की दिशा क्या हो?
- भारतीय परिप्रेक्ष्य में ऋग्वेद अध्ययन के राजनीतिक और सामाजिक आयाम क्या हैं? विभेद करने वाले और सामाजिक वैमनस्य एवं फूट डालने वाले अकादमिक प्रयास कितने सफल हुये या होंगे?
पहले भाग के अन्त में भगवान चचा शायद शेल्डॉन पोलॉक की बात कर रहे हैं… दूसरा भाग कुछ समय के बाद नहीं तो पचाना मुश्किल हो जाएगा… 🙂
A Valuable & Thoughtful Research,Establishing Sanatan HISTORICAL TRUTH ~ Thank You
लाजवाब साक्षात्कार। चुने हुए सवाल और जानकारीपूर्ण उत्तर। आभार!
It is a soul lifting discussion more so for me as i had arrived on nearly identical yet crude conclusions with which i was to write a book.
Obviously, this work is far more authentic and magnificient in light of its width of references and evidences. Salutations. And congratulations to Maghaa.
It is surprising to note the contents of the interview, I am astonished on this meaningful journey to bring so authentic knowledge and that too on today’s platform of computer era ,this will keep reserve the valuable thoughts . my profound regards .
Thank you very much for your encouraging words. Please keep on visiting and enrich us with your valuable comments.