ultra-sociality reciprocity अतिसामाजिकता पारस्परिकता : सनातन बोध – 30
हमारा वर्तमान हमारे भूतकाल के विचारों से निर्मित होता है। हमारे वर्तमान के विचार हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। हमारा जीवन एक मानसिक सृष्टि है। – बुद्ध
हमारा वर्तमान हमारे भूतकाल के विचारों से निर्मित होता है। हमारे वर्तमान के विचार हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। हमारा जीवन एक मानसिक सृष्टि है। – बुद्ध
नैतिक निर्णय, मतान्तरण : उनके तर्क तो उनकी सोच के बनने के पश्चात उस सोच के निरूपण एवं उसका औचित्य सिद्ध करने के लिए बने होते हैं!
Procrastination टालमटोल – विद्यार्थीं कुतो सुखः? – विद्यार्थियों का सन्दर्भ है तो इस शोधपत्र को विश्वविद्यालय में न्यूनतम उपस्थिति की अनिवार्यता के विरोध में प्रदर्शन एवं दीर्घ काल तक विश्वद्यालय में ही पड़े रहने के समाचारों से जोड़कर देखें तो?
अपेक्षाओं, मान्यताओं एवं कामोत्तेजना का प्रभाव : इस साधारण से प्रयोग के निष्कर्ष थे कि लोगों को पता नहीं होता कि कामोत्तेजना की अवस्था में उनके निर्णय लेने की क्षमता किस प्रकार परिवर्तित हो जाती है। वही व्यक्ति जब शांत अवस्था में हो एवं जब कामोत्तेजित अवस्था में, तो उसके सोचने की प्रवृत्ति पूर्णत: परिवर्तित हो जाती है।
अपरिग्रह एवं Paradox of Choice : अत्यधिक संचय एवं जहाँ आवश्यक नहीं हो वहाँ भी अधिक से अधिक विकल्पों को एकत्रित कर रखना। वस्तुयें हों या विचार या व्यक्ति – सञ्चय एवं आसक्ति। अपरिग्रह से पहले के चार यम कुछ इस प्रकार हैं जो मानों हमें अपरिग्रह की इस अवस्था के लिए सन्नद्ध कर रहे हों।
विकल्प-मानक-आदर्श सनातन बोध पिछले भाग से आगे पारंपरिक सामाजिक मूल्यों एवं आधुनिक भौतिक एवं व्यावसायिक मानकों के तुलनात्मक अध्ययन में आधुनिक मान्यताओं की कई भ्रान्तियाँ स्पष्ट होती हैं, यथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सबसे बड़ा सुख मान लेना! व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विकल्पों की अधिक से अधिक उपलब्धि पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डेनियल गिल्बर्ट का रोचक…
Presentism सम्प्रतित्व सिद्धांत : एक बाह्य पर्यवेक्षक के रूप में मनोविज्ञान सबसे उत्कृष्ट समझ प्रदान करता है। ये बातें सनातन सिद्धांतों की व्याख्या भर लगती है। उनका यह निष्कर्ष कि यथार्थ का हमारा विवेचन वास्तव में यथार्थ का एक संस्करण भर है, भला अनेकान्तवाद एवं माया के सिद्धांतों से कहाँ भिन्न है?
Frequency Illusion आवृत्ति भ्रान्ति : पहला, चयनित ध्यान (selective attention) जब हम किसी नयी बात पर अटक जाते हैं तब अवचेतन मन उस वस्तु को ढूँढ़ता रहता है। दूसरा, पुष्टिकरण पक्षपात (confirmation bias) जिससे हर बार उस वस्तु के दिखने पर इस भ्रम की पुष्टि होती है कि अत्यल्प काल में ही वह बात सर्वव्यापी हो गयी है।
एक रोचक मनोवैज्ञानिक अध्ययन है। जिसके अनुसार मानव मस्तिष्क साधारण ज्ञान के स्थान पर विशेष को प्राथमिकता देता है। विस्तृत आँकड़ों के स्थान पर विशेष उदाहरण को। जैसे हमें किसी व्याधि के बारे में बताकर पीड़ितों की सहायता करने को कहा जाय तो हम संभवतः दान नहीं देते परन्तु किसी एक विशेष पीड़ित व्यक्ति का चित्र दिखाकर हमसे सहायता मांगी जाय तो वो अधिक प्रभावी होता है। अभिज्ञेय पीड़ित प्रभाव (identifiable victim effect) के नाम से प्रसिद्ध इस संज्ञानात्मक पक्षपात से किसी भी समस्या की हम तब तक उपेक्षा करते रहते हैं जब तक हम स्वयं या कोई अपना भुक्तभोगी न हो।
Miswanting या इच्छा का मिथ्यानुमान : सुनने में असहज प्रतीत होता है कि भला हम मिथ्या इच्छा (miswant) कैसे कर सकते हैं? यह सोचें कि भविष्य में आपको किन बातों से सुख प्राप्त हो सकता है? जब इस प्रश्न के बारे में हम यह सोचते है तो प्रायः उन बातों के बारें में सोचते हैं जिनके होने से हमें वास्तविक सुख प्राप्त नहीं होना।