Ocyceros birostris , धनेश चण्डीगढ़ का राज्यपक्षी है।
वैज्ञानिक नाम: Ocyceros birostris
हिन्दी नाम: धनेश, धनचिड़ी
संस्कृत नाम: मातृनिन्दक
अन्य नाम: चलोत्रा राखी, सिंगचोचा (मराठी)
अंग़्रेजी नाम: Indian Grey Hornbill
चित्र स्थान और दिनाङ्क: ग्राम – पिल्खवाँ, फैजाबाद-लखनऊ राजमार्ग के पास, 20/03/2017
छाया चित्रकार (Photographer): आजाद सिंह
Order: Bucerotiformes
Family: Bucerotidae
Category: Perching Bird
रूप रंग: धनेश भारतीय प्रायद्वीप में प्रायः जोड़े में पाया जाने वाला वृक्षवासी पक्षी हैं जिनके भूरे रंग के पंख से पूरा शरीर ढका रहता है और नीचे पेट की ओर का भाग हल्का भूरा या हल्का सफ़ेद होता है। काली चोंच के ऊपर आधी दूर तक का हिस्सा उठा रहता है जो कि इसकी मुख्य पहचान है और उसे Casque या horn भी कहा जाता है।
अन्य लक्षण हैं – लंबाई लगभग 24 इंच, नर मादा एक जैसे, आँख के ऊपर भूरी और सफ़ेद धारियाँ, आँखों की पुतलियाँ लाल, भूरी पलकों में बरौनी तथा चोंच काली, पूँछ लंबी भूरी और सीढ़ीनुमा तथा प्रत्येक पंख के अंत में सफेद धब्बे के साथ हरिताभ काले रंग की पट्टी। टाँगे गहरे स्लेटी रंग की होती हैं।
इसका स्वर तेज, कर्कश और चील जैसा होता है।
निवास: यह भारत का स्थायी निवासी है जो हिमालय में 2000 फुट की ऊँचाई से लेकर सारे भारत में पाया जाता है। इसे घने जंगल में न रहकर उद्यानों और बस्तियों के पास रहना अधिक प्रिय है।
भोजन: जंगली फल, बीज, हरी पत्तियाँ और कीड़े मकोड़े आदि।
प्रजनन: धनेश के जोड़ा बनाने का समय मार्च से जून तक होता है। ये अपना घोंसला किसी बड़े पेंड़ के तने के छेद में बनाते हैं जोकि 10 फुट से अधिक ऊँचाई पर होता है। ये अधिकतर पीपल या सेमल के पेड़ों को पसंद करते हैं। धनेश की एक सबसे अनूठी बात होती है कि मादा पेंड़ के छेद में अंदर चली जाती है और अपने मल से प्रारम्भ के 2-3 दिन घोंसले के छेद को बंद करने में लगाती है। इसकी बीट बहुत लिसलिसी होती है जोकि सूख जाने पर मिटटी के ढेले जैसी कठोर हो जाती है। नर घोंसले के छेद को सील कर देता है जिसमें केवल मादा की चोंच निकलने भर का छिद्र रह जाता है जिससे वह उसे भोजन चुगाता रहता है। मादा अपने सारे पंख उखाड़कर घोंसले से बाहर फेंक देती है ताकि भीतर बच्चों के लिये आवश्यकता भर स्थान उपलब्ध हो सके।
मादा 5-6 अंडे देती है। ये अंडे चौंड़े, दीर्घवृत्तीय, चिकने और बिना चमक के किञ्चित सफ़ेद रंग के होते हैं। बच्चों के एक सप्ताह के हो जाने पर ही मादा घोंसले से बाहर निकलना प्रारम्भ करती है।
लेखक: आजाद सिंह |