सरहंस, उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी। प्रणय का प्रतीक ये अपना जोड़ा जीवन भर के लिए बनाते हैंi यदि किसी कारण एक की मृत्य हो जाये तो दूसरा वियोग में मर जाता है।(sarus crane grus antigone)
वैज्ञानिक नाम: Grus Antigone
हिन्दी नाम: सारस, सरहस, सरहंस, नीलांग, रक्तमस्तक
अंग़्रेजी नाम: Sarus Crane
चित्र स्थान और दिनाङ्क: फैज़ाबाद, सरयू नदी का किनारा, अयोध्या, 07/05/2017
छाया चित्रकार (Photographer): आजाद सिंह
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Gruiformes
Family: Gruidae
Genus: Grus
Species: Antigone
Wildlife schedule: IV
Sexes: Alike (Male is slight large)
Population: Decreasing
सरहंस। उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी। प्रणय के प्रतीक पक्षी यह अपना जोड़ा जीवन भर के लिए बनाते हैं तथा यदि किसी भी कारण से एक की मृत्य हो जाती है तो दूसरा वियोग में मर जाता है।
वितरण: पूरा भारत, पर उत्तर भारत में ज्यादा, असम से पंजाब तक तथा गंगा का मैदान अधिक पसंद।
रंग-रूप: नर मादा दोनों का रंग एक जैसा, बस नर थोडा मादा से साइज़ में बड़ा होता है। सारे शरीर का रंग सिलेटी, गर्दन के ऊपर का भाग हल्का और सर का भगा गहरा चटख लाल रंग का। कान के दोनों तरफ सिलेटी चित्ते, आंख का रंग नारंगी तथा टांगे गुलाबी रंग की होती हैं।
विलुप्त होने का खतरा बहुत अधिक ,पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा पक्षी सिर्फ भारत में।
आकार: १.५६ -१.७५ मीटर ,उड़ने वाला भारत का सबसे विशाल पक्षी। पंख का फैलाव ८ फुट और वजन ७ किलोग्राम।
आप्रवास स्थिति: प्रवासी
भोजन: कीड़े मकोड़े, मेंढक, मछली, छोटे कशेरुकी जीव, जड़ें तथा अनाज के दाने भी।
आवास: नदी, तालाब, पोखर, झील, दलदल, अदि के किनारे तथा सिंचित खेतों में भी जोड़े में या ६-८ का झुण्ड।
नर-मादा: लगभग समान। नर का साइज़ थोडा बड़ा।
घोसला: जुलाई से दिसम्बर तक किसी झील के बीच के टापू को चुनकर वहां घास फूस और लकड़ी से बड़ा सा घोंसला बनाता है जो मिटटी का टीला सा बनाकर उसी पर रखा रहता है।
जोड़ा बनाने के समय यह नाच का बड़ा ही सुन्दर प्रदर्शन करता है, उस समय नर और मादा दोनों ही अपनी गर्दन हिलाकर बड़े मनोरम ढंग से नाचते हैं और प्रणय क्रीडा करते हैं और फिर समय आने पर मादा २-३ तक अंडे देती है जिनका रंग हल्का गुलाबीपन लिए सफ़ेद होता है तथा कुछ पर बादामी और बैंगनी चित्तिया होती है। अण्डों का साइज़ काफी बड़ा लगभग ३.९६*२.५६ इंच। इन अंडो को नर और मादा बारी-बारी से सेते हैं।
नर सारस मुख्यतः सुरक्षा की भूमिका अदा करता है। लगभग एक महीने के पश्चात उसमें से बच्चे बाहर आते हैं। बच्चों के बाहर आने के बाद माता-पिता ४-५ सप्ताह तक उनका पोषण नन्हे कोमल जड़ों, कीटों, सूँडियों और अनाज के दानो इत्यादि से करते हैं। इतने समय के बाद बच्चे अपने माता-पिता के जैसे अपना आहार स्वयं प्राप्त करना सीख लेते हैं। बच्चे लगभग दो महीनों में अपनी प्रथम उड़ान भरने के योग्य हो जाते हैं। नन्हे सारस का शरीर बहुत हल्की लालिमायुक्त भूरे मुलायम रोंएदार परों से ढ़का होता है जो लगभग एक वर्ष में श्वेताभ हो जाते हैं। सारस पक्षी का संपूर्ण जीवन काल १८ वर्षों तक हो सकता है।
लेखक: आजाद सिंह |
बहुत अच्छी जानकारी, फ़ोटो के साथ!
Very nicely described. A
Thanks Sir