वैज्ञानिक नाम: Hierococcyx varius
हिन्दी नाम: पपीहा,
अन्य नाम: कपक, उपक, भुराव चोकगल्लो(बंगाल)
अंग़्रेजी नाम: Common hawk-cuckoo, Brainfever bird
चित्र स्थान और दिनाङ्क: सरयू का कछार क्षेत्र, अयोध्या, 16/04/2017
छाया चित्रकार (Photographer): आजाद सिंह
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Cuculiformes
Family: Cuculidae
Genus: Hierococcyx
Species: Varius
Category: Perching Bird
Wildlife schedule: IV
विवरण: यह जंगल, आम के उद्यान आदि में मानव बस्ती के पास घने पेड़ों पर पाया जाने वाला पक्षी है जिसकी आकृति श्येन (बाज) से मिलती जुलती है और इसे इसके स्वर ‘पी कहाँ, पी कहाँ’ से ही पहचाना जा सकता है। अंग्रेजों ने इसके स्वर को तीखी ऊँची होती तान के में ‘ब्रेन फीवर, brain fever’ शब्द से पहचाना इसलिये इसका नाम Brainfever bird रखा। इसकी तान धीरे धीरे तेज होती जाती है और यह लगातार घंटो बोलता रहता है, चाहे दिन हो या रात।
प्रवासी भारतीय, केवल भारत और श्रीलंका में पाया जाता है। भारत में इसका क्षेत्र हिमालय से दक्षिण भारत तक है।
आकार, रूप, रङ्ग: लम्बाई लगभग 13 इंच, ऊपरी भाग का रंग हल्का धूसर, उड़न पंख भूरे तथा भीतरी भाग पर श्वेत पट्टियाँ। पूँछ का रंग ललछोंह भूरा जिस पर इसी रंग की गाढ़ी पट्टियाँ होती हैं। ग्रीवा के सामने का तथा वक्ष का रंग ललछौंह बादामी। आँख की पुतली पीली, चोंच हरछौंह तथा ऊपर की ओर काली एवं टाँगे पीली होती हैं। नर एवं मादा एक जैसे होते हैं।
भोजन: कीड़े मकोड़े, जंगली बेरी, अंजीर आदि।
प्रजनन: पपीहा अपना घोंसला नहीं बनाती बल्कि चरखी (वाब्लेर ) पक्षी के घोसले में अण्डा देती है। इसके प्रजनन का समय बसंत से ग्रीष्म में मार्च से जून तक का होता है और उस समय यह अधिक शोर करता है। कोयल की तरह यह भी अपने अंडे चरखी (वाबलेर, सेवेन सिस्टर) के घोंसलों में रखती है और उनके अंडे नीचे गिरा देती है। दोनों पक्षियों के अण्डों का रंग गहरा हरा बहुत मिलता जुलता है पर इसके अण्डे आकार में थोडा बड़े होते हैं। बच्चे निकलने के पश्चात पपीहा के बच्चों का आकार चरखी से बड़ा होता है। इसके बच्चे चरखी के बच्चों को नीचे गिरा देते हैं।
लेखक: आजाद सिंह |
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सम्पादकीय टिप्पणी:
संस्कृत में पपीहे को ‘अत्यूह’ कहा गया है। एक अन्य संज्ञा ‘दात्यूह’ को लेकर भी भ्रम बना रहता है जो कि अमरकोश के अनुसार जलीय कौवे के लिये प्रयुक्त होता है जबकि कतिपय स्रोत उसे चातक तक बता देते हैं! चातक और पपीहा दो भिन्न पक्षी हैं। अत्यूह नाम चरक संहिता में मिलता है: कैरात: कोकिलोऽत्यूहो गोपापुत्र: प्रियात्मज:। मराठी में इसके स्वर को वर्षा आगमन का संकेतक मान कर ‘पावस आला’ बताया जाता है।
लोक में पपीहे की पुकार को लेकर बहुत प्रेम रहा है। उसे लेकर कथायें गढ़ी गई हैं, लोकगीत भी रचे गये हैं। एक भोजपुरी कथा के अनुसार पपीहा ‘काका हो पी कहाँ’ बोलती है जो कि बिछड़े प्रियतम के बारे में अपने पिता से पूछताछ है। मीराबाई का एक बहुत मधुर भजन ‘पिउ की बानी ना बोल’ पपीहा को सम्बोधित है। उसमें भी प्रियतम की स्मृति है।