Mauritius another small India outside of India
… कुल मिलकर यदि आपको भारत के बाहर यदि कहीं भारत के दर्शन हो सकते हैं तो वह स्थान अवश्य ही मॉरिशस होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
कुछ दिन पहले ही स्वर्ग से लौटा हूँ। जी हाँ, अगस्त मास में भारत सरकार के सहयोग से मॉरिशस में बने ‘महात्मा गांधी संस्थान’ द्वारा आयोजित ‘आप्रवासी साहित्य सृजन सम्मान समारोह’ में भाग लेने के लिये मॉरिशस के मनोरम द्वीप की अविस्मरणीय यात्रा से लौटा हूँ।
बचपन से मॉरिशस के बारे में पढ़ता सुनता आया था। इतना अधिक कि लगता था जैसे अभिमन्यु अनत, मुड़िया पहाड़, गंगातालाब आदि सब देखे हुए हों। इसलिये पिछले महीने घर से मॉरिशस की पहली यात्रा के लिये निकलते समय भावना कुछ ऐसी थी मानो कहीं और नहीं बल्कि भारत ही जा रहा होऊँ। काम के लिहाज़ से वैसे ही बहुत व्यस्त समय था, लेकिन यात्रा मॉरिशस की थी, भारत के बाहर एक सम्पूर्ण भारत।
मॉरिशस एक लघु भारत जैसा ही लगा। भारत सा ही विविध। क्रीयोल, फ़्रैंच और अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी और कुछ अन्य भारतीय भाषाओं का बाहुल्य। मॉरिशस में विभिन्न मान्यताओं, धर्मों और पृष्ठभूमि के लोग, एक साथ प्रेम से रहते हुए मिलेंगे।
हिंद महासागर में स्थित मॉरिशस अफ़्रीकी महाद्वीप के पूर्व में स्थित है इसलिये स्वाभाविक है कि अरबी या सोमाली व्यापारियों या दस्युओं ने पहले इसे देखा हो और पहाड़ी धरातल को अधिक उपयोगी न पाकर यूँ ही छोड़ दिया। 1507 में पुर्तगाली नाविकों के उल्लेख से पहले तमिळ नाविकों द्वारा इस द्वीप के देखे जाने की दंतकथाएँ भी अस्तित्व में हैं। बाद में यूरोपीय देशों द्वारा भारत व्यापार के लिये कम्पनियाँ स्थापित करके अभियान आरम्भ करने पर 1638 में डच समूह यहाँ उतरे। केवल इसी द्वीप पर पाये जाने वाले दुर्लभ पक्षी डोडो का भोजन के लिये समूल विनाश करने के बाद वे इस द्वीप को वीरान छोड़कर चले गये। डच समूह के मॉरिशस से गुज़रने के बाद सन् 1715 में इस पर फ़्रांस ने अधिकार किया जोकि 1810 में हुए ब्रिटिश अधिकार तक जारी रहा।
1968 में ब्रिटेन से स्वतंत्र होने से पहले यहाँ के लोग भारत के स्वतंत्रता दिवस, यानि 15 अगस्त को ‘स्वराज्य दिवस’ के नाम से किसी पर्व की तरह मनाते थे। सन् 1992 मे भारत जैसा संसदीय लोकतंत्र बना मॉरिशस अफ्रीका महाद्वीप के सबसे समृद्ध क्षेत्रों में से एक है।
मॉरिशस के हवाई अड्डे पर उतरते ही मुस्कराते भारतीय चेहरों के साथ-साथ सूचना पट्टों पर लिखी हिंदी देखकर मन प्रसन्न हो उठा। मॉरिशस की मुद्रा का नाम रुपया है और नोटों पर अंग्रेज़ी के अलावा हिंदी और तमिळ भी लिखी होती है।
मॉरिशस का जन्म अंत:समुद्री ज्वालामुखीय विस्फोटों से हुआ है। यहाँ के ज्वालामुखी आज भी मृत न होकर सुप्त हैं और आने वाले समय में पुनः जागृत हो सकते हैं। मॉरिशस की एक क्रेटर झील ग्रैण्ड बेसिन को अब ‘गंगातालाब’ कहा जाता है। समुद्र तल से 1,800 फुट ऊँचाई पर स्थित यह सुंदर झील मॉरीशस का पवित्र धार्मिक स्थल है। सन् 1898 में त्रिओले गांव के पंडित गिरि गोसाईं ने अधिकारियों से अनुमति लेकर गंगातालाब की प्रथम सामूहिक तीर्थयात्रा की व्यवस्था की थी। तब से यह परम्परा अनवरत चल रही है। मॉरिशसवासियों की मान्यता है कि गंगातालाब धरा के अंदर से गंगा से जुड़ा हुआ है। कुछ दंतकथाओं के अनुसार सिवजी के माथे की गंगा की कुछ बूंदें इस झील में गिर गई थीं। यहाँ के पहले प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम ने गंगोत्री से लाया गंगाजल यहाँ प्रवाहित करके गंगातालाब नाम को सार्थक किया। मॉरीशस भर के अनेक धार्मिक स्थलों के बीच, इसे सर्वाधिक पवित्र स्थल माना जाता है।
गणपति विसर्जन
भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों की मान्यता है। लेकिन मॉरिशसवासी गंगातालाब के किनारे स्थापित इस शिवमंदिर को ‘मॉरिशस ईश्वरनाथ’ के नाम से तेरहवाँ ज्योतिर्लिंग मानते हैं। शिवरात्रि के दिन समस्त देशवासी यहाँ आते हैं। सामान्य दिनों में भी यह किसी अन्य तीर्थस्थल जैसा ही व्यस्त रहता है। गंगा तालाब से कुछ ही पहले भगवान शिव की 108 फुट ऊंची विशाल मनोहारी मूर्ति बनाई गई है। मेरी यात्रा के दौरान इस विशाल मूर्ति के पास में माँ दुर्गा की एक भव्य मूर्ति का निर्माण चल रहा था।
हर घर के बगीचे या आंगन में हनुमानजी का मंदिर होना मॉरिशस की एक अनूठी विशेषता है। वार्ता के दौरान एक मित्र ने बताया कि दासत्व जैसी कठिन परिस्थितियों में जीने वाले गिरमिटियों को उनकी आस्था ने ही बचाये रखा। वे अपने साथ रामचरित मानस जैसे ग्रंथ भी लाये और हिंदू धर्म की अनेक मौखिक कहानियाँ भी, जो घर की रसोई और गाँवों की बैठक के सहारे जीवित रहीं। लेकिन इसके आगे भी हर घर की रक्षा के लिये आंगन के हनुमान जी और गाँव की काली माई के मंदिर बनाए गये। काली माई के मंदिर में सात देवियों की पिंडियों की उपस्थिति भी होती थी। महात्मा गांधी संस्थान के ‘आप्रवासी संग्रहालय’ में गिरमिटियों के बर्तन, वस्त्राभूषण, पारपत्र, आदि के साथ, उनके गाँव की बैठक के प्रतिरूप भी सुरक्षित हैं। उनके सामानों में आई धार्मिक पुस्तकें भी वहाँ दर्शनीय हैं।
आधुनिक मॉरिशस में हनुमानजी और काली माई के इन परम्परागत मंदिरों के साथ ही आर्य समाज और इस्कॉन के मंदिर भी दिखाई दिये। कई आधुनिक बाबा भी वहाँ अपनी पहचान बनाने में प्रयासरत हैं। खड़ी बोली वाली हिंदी भाषा के साथ भोजपुरी भी मॉरिशस में खूब बोली-सुनी जाती है। शाकाहारी भोजन भी आम है। कुल मिलाकर यदि आपको भारत के बाहर यदि कहीं भारत के दर्शन हो सकते हैं तो वह स्थान अवश्य ही मॉरिशस होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
-अनुराग शर्मा, पिट्सबर्ग