वैज्ञानिक नाम: Passer domesticus
हिन्दी नाम: गौरैया, चटक (संस्कृत)
अन्य नाम: चकली (गुजराती ), छोटी चराई (बँगला), कुरुवी (केरल, तमिलनाडु ), सेंदांग (मणिपुर), घर सुरोई (असम)
अंग़्रेजी नाम: House Sparrow
चित्र स्थान और दिनाङ्क: अवधपुरी कॉलोनी, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश, 09/03/2017
छाया चित्रकार (Photographer): आजाद सिंह
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Family: Passeridae
Genus: Passer
Species:’Domesticus
Category: Perching birds
वैसे तो हम सभी गौरैया को जानते और पहचानते हैं, फिर भी इस पक्षी के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी मैं यहाँ देना चाहूँगा। गौरैया एक घरेलू चिड़िया है और यह अधिकतर हमारी बस्तियों के आस-पास ही अपना घोंसला बनाना पसंद करती है। शहरी क्षेत्रों में इसकी छह प्रजातियाँ पाई जाती हैं – हाउस स्पैरो, स्पैनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें से हाउस स्पैरो ही हमारे घरों के आँगन में चहचहाती है।
आकार, रूप, रंग:
लंबाई लगभग 14 से 16सेमी तक, इसके शरीर पर छोटे छोटे पंख, पीली चोंच और पैर भूरे पीले होते हैं। नर और मादा के रंग अलग अलग, नर मादा की तुलना में चटक गाढ़े रंग का होता है जिसके सिर के ऊपर, नीचे का रंग भूरा और गले चोंच और आंखों के पास काला रंग होता है।
विस्तार:
सम्पूर्ण विश्व में फ़ुदकने वाली यह चिड़िया एशिया और यूरोप के मध्य क्षेत्र में अधिक पाई जाती है। हमारी सभ्यता के विकास के साथ ही यह चिड़िया संसार के बाकी भागों जैसे उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ़्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड में भी पहुंच गयी। यह बहुत बुद्धिमान और संवेदनशील पक्षी है। सामाजिक पक्षी होने के कारण ही यह अधिकतर झुंड में रहती है। पूरे भारत में लगभग 2000 मीटर की ऊँचाई तक हिमालय से कन्याकुमारी तक पाई जाती है। अंडमान और निकोबार द्वीपों में नहीं दिखती। पड़ोसी देशों बँगलादेश, पाकिस्तान, श्री लंका और म्यान्मार में भी पाई जाती है।
भोजन:
यह सर्वभक्षक (Omnivorous) चिड़िया है। मुख्यतः अनाज के दाने, कीड़े मकोड़े, फलों की कलियाँ, पराग कण, रसोई का बचा हुआ भोजन आदि इसके प्रिय भोजन हैं।
प्रजनन:
गौरैया पूरे वर्ष भर प्रजनन करती है। अनुकूल समय में क्षेत्र अनुसार भिन्नता दिखती है। यह घरों के रोशनदानों, खपरैल, छप्पर बगीचों, दुछत्ती जैसे स्थानों में घोंसले बनाती है या मनुष्य द्वारा लगाये गए मिटटी या लकड़ी के बनाये हुए सुरक्षित घोसलों को घास फूस के तिनको से संवार कर रहने योग्य बना देती है ताकि कोमल बच्चों की रक्षा और देखभाल अच्छे से हो सके।
अवध क्षेत्र में जून –जुलाई को छोड़कर लगभग पूरे वर्ष जहाँ भोजन की प्रचुरता हो इनका प्रजनन चलता रहता है। एक बार में मादा 3 से 5 पीले हरे सफ़ेद लाइन वाले तथा धब्बेदार अंडे देती है। गौरया के नवजात बच्चों का मुख्य भोजन छोटे छोटे कीड़े मकोड़े हैं जो घर के आस पास नालियों में मिल जाते हैं।
पर आज कहाँ चली जा रही हैं ये गौरैया?
यदि हम अपने देश भारत की ही बात करें तो शायद ही किसी घर का आँगन ऐसा होगा जहाँ गौरैया की चीं चीं मधुर ध्वनि न गूँजती रही हो। कोई घर ऐसा नहीं होगा जहाँ कभी गौरैया के झुंड़ आकर फ़ुदकते न रहे हों। हमारे परिवारों के बच्चों का पहला परिचय गौरैया से ही होता है। घरों की महिलाएं जिस पक्षी के लिये आँगन में अनाज के दाने बिखेरती हैं वह है गौरैया। नन्हाँ शिशु आँगन में जिस पक्षी को दौड़ कर छूने या पकड़ने के असफल प्रयास करता है वह गौरैया ही है।
हमारे आँगन, घरेलू बगीचे, रोशनदान, खपरैलों के कोनों को अचानक छोड़ क्यों रही हैं गौरैया? ऐसा क्या हो गया है हमारे चारों ओर कि हमें ‘विश्व गौरैया दिवस’ मनाने की आवश्यकता पड़ गई? हमें आज गौरैया बचाओ अभियान चलाने पड़ रहे हैं? इन सभी प्रश्नों पर मंथन करते हुए उन कारणों को खोजने की आवश्यकता है जिनके चलते यह पारिवारिक चिड़िया हमसे दूर हो रही है।
विश्व गौरैया दिवस :
पिछले कुछ वर्षों से हमारी प्यारी गौरैया हमसे पता नहीं क्यों रूठ गई है। यह अब हमारे घर, आँगन, दरवाजे पर बहुत कम आ रही है। संभवत: वह भी मनुष्यों द्वारा प्रकृति के अधाधुंध दोहन और हानिकारक उत्सर्जी वायु भरे प्रदूषित वातावरण से प्रभावित हो रही है। रूठी गौरैया को मनाने, उसे पुन: अपने आँगन, बगीचे में बुलाने के लिये ही विश्व गौरैया दिवस का प्रस्ताव रखा गया। ‘विश्व गौरैया दिवस’ मनाने का प्रारम्भ ‘नेचर फ़ॉरएवर सोसायटी’ द्वारा बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी, कार्नेल लैब्स ऑफ़ आर्निथोलोजी (यू एस ए), इकोसिस ऐक्शन फ़ाउण्डेशन (फ़्रांस) तथा वाइल्ड लाइफ़ ट्रस्ट, दुधवा लाइव के सहयोग से 20 मार्च 2010 को किया गया।
हमारी बदलती जीवनशैली व नगरीकरण ने इस पक्षी के प्रजनन पर जैसे रोक ही लगा दी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गौरैया का गायब होना मानव के लिए किसी खतरे से कम नहीं है।
वस्तुत: 10 हजार वर्षों से गौरैया मनुष्य से जुड़ी हुई है। गौरैया का भोजन और रहन-सहन हमारे ऊपर बहुत हद तक निर्भर था, लेकिन बदलते परिवेश और नगरीकरण ने गौरैया ही नहीं, बल्कि दूसरे पक्षियों के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। गौरैया पूरे विश्व का सामान्य पक्षी है जिसे अंग्रेजी में ‘कॉमन बर्ड’ कहा जाता है। लगभग दो दशक पहले की बात करें तो हमारे घर की रसोई में बर्तनों पर बैठकर भोजन जुटाना और घरों में रखी झाडू से तिनका-तिनका जुटाकर अपना घरौंदा बनाना इनका सामान्य दर्शनीय व्यवहार था, लेकिन खेत-खलिहानों के स्थान पर व्यापक स्तर पर बड़े आवासीय प्रकल्पों के साथ ही यह पक्षी हमसे दूर होती चली गई। आज स्थिति यह आ चुकी है कि प्रतिदिन अपनी चहचहाहट से प्रात साँझ सभी को प्रकृति से जुड़े होने का अनुभव देने वाली यह चिड़िया कठिनाई से दिखाई पड़ती है।
पहले रसोई के जूठे पात्रों से गौरैया अपना भोजन प्राप्त कर लेती थी। इसके अतिरिक्त उसे पार्क आदि से घोंसले बनाने के लिए पर्याप्त तिनके और घास उपलब्ध होते थे किन्तु नगरीकरण के कारण घर खुले होने के स्थान पर बंद रहने वाले बनने लगे। घरों की बनावट ऐसी हो गई कि परिंदा भी अब उनके भीतर पर नहीं मार सकता है। जूठन और बचा भोजन घरों से खुले में न डालकर बंद थैलियों में फेंका जाने लगा। इससे भोजन पक्षियों की पहुँच से दूर हो गया। साथ ही पेंड़ कम हो गए और विशाल वृक्षों की संख्या घटने से पक्षियों के सामने घोंसला बनाने की समस्या भी विकराल हो गई। भोजन और घोंसले के अभाव के कारण इन पक्षियों की प्रजनन शक्ति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा। अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ लोग पक्षियों को दाना डालते हैं या पानी भरकर रखते हैं, वहाँ कुछेक गौरैया दिख जाती हैं।
पिछले दस वर्षों से गौरैया पर देश-विदेश में ना केवल संरक्षण कार्य के प्रति जागरूकता लाई जा रही है, बल्कि समय-समय पर वन क्षेत्रों में अभियान चलाकर छात्रों और लोगों को गौरैया बचाने के प्रयास में शामिल किया जा रहा है।
वर्ष 2016 के प्रारम्भ में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर जन-जागरण और घोंसला वितरण कार्यक्रम चलाया गया जिसमें समाज के सभी पर्यावरण प्रेमी लोगों ने स्वेच्छा से सहभागिता की। मिटटी के गुल्लक से बने हुए घोंसले (MUD-NEST) वितरित किये जिसे बहुत से लोगों ने अपने घरों में लगाया और उन्हें बड़ी संख्या में गौरैया ने अपनाया भी। विश्व गौरैया दिवस पर छात्रों और जन मानस से पक्षियों के लिए पानी भरकर रखने और घोंसले तैयार कराने की अपील की जाती है।
इनके घोंसलों को लगभग 9-11 फीट की ऊँचाई पर सुरक्षित स्थान पर ही लगाना चाहिए तभी गौरैया उनको अपनाती हैं।गौरैया का लुप्त होना मानव के लिए कोई सामान्य घटना नहीं है, यह भविष्य में एक बड़े खतरे का सूचक है।
गौरैया और खुशहाली:
गौरैया के महत्व के बारे मे कहा जाता है कि यूरोप के जिन देशों में आज भी गौरैया का अस्तित्व है, वहाँ के लोग खुशहाल हैं और जहाँ से ये गायब हो रही हैं, वहाँ हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। अब तो खेतों में फसल की कटाई भी नई तकनीक की सहायता से एक या दो दिनों में पूरी हो जाती है। इससे खेतों में जत्था बनाकर दाना खाने के लिए पहुँचने वाले पक्षियों के भोजन की समस्या खड़ी हो गई है। पहले फसल कटाई के समय पक्षी मीलों-मील दूरी पर जाकर अपना बसेरा बनाते थे, लेकिन आज मशीनी युग में उनके लिए खुले सभी रास्ते बंद होते जा रहे हैं। यही नहीं पिछले दो दशक में जगह-जगह लगने वाले मोबाइल टावरों ने भी गौरैया जैसे सामान्य पक्षी को कम करने में विष के समान कार्य किया है। मोबाइल टावरों से निकलने वाली किरणों की वजह से गौरैया आदि छोटे पक्षी की प्रजनन शक्ति नष्ट या न के बराबर हो गई।
गोरैया के लुप्त होने के मुख्य कारणों मे इनके प्राकृतिक आवासों का सिमटना तथा खेतों में डाले जाने वाले कीटनाशक ही हैं, और लगातार हो रही वृक्षों की कटाई के कारण पक्षियों को बैठने का स्थान ही नहीं मिलता, जिससे यह मानव मित्र प्रजाति समाप्त हो रही है।
इनके संरक्षण और संवर्धन हेतु:
- अपने घर के आस-पास घने छायादार पेड़ लगायें ताकि गौरैया या अन्य पक्षी उस पर अपना घोंसला बना सकें।
- गोरैया के लिए घरों के बाहर या जहाँ भी सुरक्षित हो वहाँ ऐसे घोंसले लगायें जिनमें गौरैया आसानी से प्रवेश कर सके और कोई बड़ा पक्षी, बिल्ली या बन्दर उन्हें क्षति न पहुँचा सके।
- सम्भव हो तो घर के आँगन या बरामदों में मिट्टी का कोई बर्तन रखकर उसमें रोज साफ पानी डालें जिससे यह घरेलू पक्षी अपनी प्यास बुझा सके। वहीं पर थोड़ा अन्न के दानें बिखेर दें जिससे इसे आहार भी मिलेगा और यह आपके यहाँ प्रतिदिन आयेगी।
- यदि आपके घर में बहुत खुली जगह नहीं है तो आप गमलों में कुछ घने पौधे लगा सकते हैं जिन पर बैठ कर चिलचिलाती धूप या बारिश से इसे कुछ राहत मिलेगी। गमलों में लगे कुछ फ़ूलों के पौधे भी इसे आकर्षित करते हैं क्योंकि इन पर बैठने वाले कीट पतंगों से भी यह अपना पेट भरती है।
20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाने के पीछे वस्तुत: यही सोच थी कि न केवल प्यारी गौरैया बल्कि चिड़ियों तथा जीवों की अन्य विलुप्त हो रही प्रजातियों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जा सके। साथ ही इन प्रजातियों को बचाने के लिये भी आम जन को जागरूक किया जा सके। यह दिन मनाने की सार्थकता तभी होगी जब हम सभी इस प्यारी चिड़िया को पुन: अपने घर, आँगन और द्वार पर बुलाने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाकर पर्यावरण को संतुलित करने की दिशा में बढ़ें।
मुझे लगता है, गौरय्या से बचाओ अभियान चलाने की भी आवश्यकता है.
पूरे घर पर आधिपात्य… मेरे दिन इनकी बीट और तिनके साफ करते बीत रहे हैं.