Vyanjan Sandhi व्यञ्जन सन्धि या हल्‌ संंधि – २ : सरल संस्कृत – १०

त्र्यम्बकम् . यजामहे . सुगन्धिम् . पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकम्. इव. बन्धनात् . मृत्योः . मुक्षीय . मा . अमृतात् ॥ इसमें बन्‍धनात्‌ एवं मृत्योर्मुक्षीय की सन्‍धि में प्रथम शब्द के अन्तिम ‘त्‌’ के पश्चात मृत्यु का म्‌ आया है अत: संधि पश्चात त्‌ का परिवर्तन सवर्गी अनुस्वार न्‌ में हो कर बन्धनान्‌ हो जायेगा।उच्चारण शुद्धि हेतु श्री सूक्त में देखें।

Vyanjan Sandhi व्यञ्जन सन्धि या हल्‌ संंधि – १ : सरल संस्कृत – ९

Vyanjan Sandhi व्यञ्जन सन्धि – संस्कृत में प्रत्ययों के अतिरिक्त मूल भी होते हैं। किसी भी शब्द का विच्छेद करते हुये उसके मूल तक पहुँचा जा सकता है। मूल क्रिया आधारित हों अर्थात उनमें किसी कुछ करने का बोध हो तो वे धातु कहलाते हैं यथा युज्‌ जो जोड़ने के अर्थ में है जिससे योक्त, युक्त, योक्ता जैसे शब्द बने हैं।

अघोष घोष विसर्ग‍ संधि (अनुवर्ती व्यञ्जन) : सरल संस्कृत – ७

सघोष को केवल घोष भी कहा जाता है। नाम से ही स्पष्ट है कि जिन व्यञ्जनों के उच्चारण के समय वा‍क् तंतु में कम्पन न हो वे अघोष कहलाते हैं, जिनके उच्चारण में कम्पन हो वे सघोष या घोष कहलाते हैं।

Sandhi संधि — भूमिका व विसर्ग‍ संधि (स्वर‍ एवं अर्द्धस्वर) : सरल संस्कृत – ६

संधि को आप समझौते से समझ सकते हैं जिसमें दो पक्ष एकत्रित होते हैं, कुछ निश्चित मान्यताओं के अनुसार एक दूसरे को स्वीकार कर संयुक्त होते हैं तथा इस प्रक्रिया में दोनों के रूप परिवर्तित हो एक भिन्न रूप में एकीकृत हो जाते हैं।