Valmikiya Ramayan प्रमदावन विध्वंसक हनुमान

आदिकाव्य रामायण से – 22 : सुन्‍दरकाण्ड, [प्रशस्य तु प्रशस्तव्यां सीतां तां]

सुन्‍दरकाण्ड : संदिग्ध अर्थ वाली स्मृति, पतित ऋद्धि, विहत श्रद्धा, भग्न हुई आशा, विघ्न युक्त सिद्धि, कलुषित बुद्धि, मिथ्या कलङ्क से भ्रष्ट हुई कीर्ति। इन दो श्लोकों में कवि ने करुणा परिपाक के साथ ज्यों समस्त आर्य संस्कारों का तापसी पर अभिषेक कर दिया!