भरतस्य शपथाः (प्रथमः भागः)

भरतस्य शपथाः (प्रथमः भागः)

वाल्मीकीये रामायणे बहुषु स्थानेषु तत्समये किम्कर्तव्यम किमकर्तव्यम् इति शिक्षा मिलति, परस्पर द्वयोः जनयोः सम्वाद रूपे लेखकस्य स्वगतविचारे वा । यथा अयोध्याकाण्डे श्रीरामः पितुः वचनानुसारेण स्वराज्याभिषेकं त्यक्त्वा सीतालक्ष्मणौ सह वनं प्रति गच्छति । भरतः कैकय राज्यात् अयोध्यायां आगमने महाराज दशरथस्य देहान्तं श्रीरामस्य वनगमनं च शृणोति स्म । सः कैकय्याः दुष्कृत्याय जननीं कुत्सयति स्वाक्रोशं च प्रदर्शयति

ममता और निर्ममता

ममता और निर्ममता : शब्द – ७

ममता और निर्ममता- ममता (मम+तल्+टाप्)। तल्+टाप् से बनने वाले शब्द सदा स्त्रीलिंग होते हैं। जहाँ मम अर्थात् स्वकीय भाव का अभाव हो – निर्मम। भारतीय आन्वीक्षिकी में राजपुरुषों, धर्मस्थों आदि हेतु निर्ममता को एक आदर्श की भाँति लिया गया है। समय के साथ शब्दों के अर्थ रूढ़ होते जाते हैं। निर्मम शब्द का अर्थ अब बहुधा नकारात्मक रूप में लिया जाता है, क्रूरता से, बिना किसी करुणा आदि के किया गया अवांंछित कर्म निर्मम कह दिया जाता है।

श्राद्ध और सम्बन्धी

श्राद्ध और सम्बन्धी

श्राद्ध और सम्बन्धी – हम पितरों को कृष्णतिल एवं पयमिश्रितजल अर्पण करते हैं। एक गृहस्थ द्वारा षोडश दिवसपर्यन्त नित्य तर्पण किया जाना चाहिए।

अर्थ की गति : श्रीधर जोशी

अर्थ की गति

शब्द यदि शिव है, तो अर्थ ही उसकी शक्ति है। निरर्थक शब्द अप्रयुक्त माने जाते हैं, साथ ही अर्थज्ञान से रहित को यास्क ने ठूँठ कहा है। यास्क कहते हैं,कि जैसै बिना ईंधन के अग्नि नहीं जल पाती है, उसी प्रकार अर्थज्ञान के विना शब्द प्रयोग व्यर्थ है

संस्कृत संस्कृति संस्कार

संस्कृत संस्कृति संस्कार : शब्द – ६

आज श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को सभी संस्कृतप्रेमी संस्कृत-दिवस का आयोजन कर रहे हैं। कहा गया है- “संस्कृति: संस्कृताश्रिता” अर्थात् ‌ भारत की संस्कृति संस्कृत भाषा पर ही आश्रित या निर्भर है।

बीसा यन्त्रम् Beesa Yantram

लिङ्ग liṅga : शब्द – ५

लिंग के निम्न अर्थ प्राप्त हैं— चिह्न, लक्षण, प्रतीक, परिचायक। प्रमाण के साधन। स्त्री/पुरुष वाची शब्द। देव-प्रतीक प्रतिमा नहीं प्रतीक है।

प्रागैतिहासिक : शब्द – ४

प्राक्+ इतिहास में क् के बाद इ आने पर क् अपने तृतीय ग् में परिवर्तित हो गया। इस तरह यह प्राग् बना। इतिहास में ठक् प्रत्यय होने से इ ऐ में परिवर्तित हो गया और बना ऐतिहासिक। प्राग्+ ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक ।

धम्मदीक्षा दास हेतु नहीं – न भिक्खवे दासो पब्बाजेत्तब्बो

धम्मदीक्षा दास हेतु नहीं – विकृत एवं मिथ्या दृढ़कथन व मान्यतायें। वैश्विक स्तर पर राजनीतिक एवं स्वार्थी आग्रहों से बँधी अकादमिकी का यही सच है। 

किंकर्तव्यविमूढ

किंकर्तव्यविमूढ़ – क्या करे, क्या न करे? : शब्द – २

“सावित्री के तर्क सुनकर धर्मराज किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए” । इस वाक्य में एक शब्द है -किंकर्तव्यविमूढ। यह एक शब्द न हो कर तीन शब्दों का समूह है

भाषा-संकट राष्ट्रभाषा व जीविका

भाषा-संकट राष्ट्रभाषा व जीविका

एक बार पुनः भाषाओं को लेकर विवाद चल पड़ा है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने पर कुछ क्षेत्रीय दलों, बुद्धिजीवियों द्वारा विरोध का क्रम चल पड़ा है। आने वाले २०-३० वर्षों में बहुत ‌से कार्य जो अभी लोग बोल कर करते हैं, उन्हें कम्‍प्यूटर करने लगेंगे। ये कार्य सर्वप्रथम अंग्रेजी भाषा के ही होंगे इसमें भी कोई संशय नहीं है।  बचे खुचे ऐसे कार्यों के लिए मूल अंग्रेजी भाषी को और अधिक प्राथमिकता मिलनी निश्चित ही है। तो हमारे लोग क्या बनेंगे? अंग्रेजी बोलने वाले वेटर?

पारसी - हिंदी - अंग्रेजी

हिंदी – संवैधानिक पृष्ठभूमि व स्थिति

हिंदी – संवैधानिक पृष्ठभूमि व स्थिति : यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्राधिकृत अनुवाद भी नहीं छपते। क्या हमारी राजभाषा की यह अपमानजनक संवैधानिक स्थिति  स्वयं संविधान का ही घोर उल्लंघन नहीं?