Social identity theory, US vs THEM

Social identity theory सामाजिक समरूपता सिद्धान्त

यदि निष्पक्ष भाव से प्रश्न करें तो एक स्वाभाविक प्रश्न मन में उठता है कि संकीर्ण मानसिकता तथा कुण्ठित विचारधारा के व्यक्ति अपने घृणित मत को भी सत्य सिद्ध करने के लिए कैसे किसी भी स्तर तक पतित हो जाते हैं। भला यह किसी प्रकार की दुराग्रही प्रवृत्ति है जो व्यक्ति को घृणा से अंधा…

Phishing ठगी छल-योजनादि

Phishing ठगी छल-योजनादि : सनातन बोध – ८९

Phishing ठगी छल-योजनादि – अज्ञानवश पतङ्ग दीपक की लौ में अपने को भस्म कर लेता है। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।
फ़िशिंग अर्थात् अन्तर्जाल पर कुशलतापूर्वक निर्मित छलयोजना से किसी व्यक्ति की मानसिक अवस्था को इस प्रकार साधित करना जिससे प्रभावित होकर वह अपनी गुप्त जानकारी, धन, प्रिय वस्तु इत्यादि गँवा बैठे। सुनने में ऐसा प्रतीत होता है मानो विरले कोई मूर्ख ही ऐसा करता होगा परंतु आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक युग में भी ठीक ऐसी ही योजनाएँ चलती हैं जिनमें फँसने वाले व्यक्तियों की संख्या प्रतिदिन लाखों में है।

पीड़ित मानसिकता (victimhood mindset) : सनातन बोध

पीड़ित मानसिकता (victimhood mindset) : सनातन बोध – ८८

पीड़ित मानसिकता (victimhood mindset) – तीन मुख्य भ्रांतियाँ उत्तरदायी – विवेचन, आरोपण तथा स्मृति भ्रांति।
पीड़ित मानसिकता (victimhood mindset) एक ऐसी मानसिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी अवस्था के लिए स्वयं के स्थान पर अन्य व्यक्तियों को उत्तरदायी मानता है। विफल अंतर्वैयक्तिक सम्बन्धों के परिणाम में यह एक महत्त्वपूर्ण मानसिक अवस्था है, यथा आधुनिक समय में सम्बंधों में विफलता के लिए स्वयं के स्थान पर अपने साथी को पूर्णरूपेण उत्तरदायी बताना।

Detachment अनासक्ति निर्णय कर्म

Detachment अनासक्ति निर्णय कर्म : सनातन बोध – ८७

Detachment अर्थात् अनासक्ति। इसका एक निष्कर्ष यह भी है कि आसक्ति में एवं भावना में बहकर कभी अर्थपूर्ण निर्णय और कार्य नहीं किए जा सकते। सहानुभूति के साथ-साथ अनासक्त अवलोकन की कहीं अधिक आवश्यकता है। तभी उसे करुणा तथा समुचित कर्म में परिवर्तित किया जा सकता है – स्वजनों के लिए भी एवं बृहत् स्तर पर मानवता के लिए भी, अन्यथा व्यक्ति सोचता ही रह जाएगा और चिंतित भी रहेगा।

विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष:

विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष: – सनातन बोध -८५

संसार में ज्ञान का अभाव नहीं है, प्रत्यक्ष प्रमाणों का भी नहीं है। परंतु ज्ञान का अनुभव में आना सदा ही दुष्कर रहा है। विज्ञान सहित ज्ञान किस प्रकार दुर्लभ है, इस पर भगवान स्वयं कहते हैं –
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये । यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ॥
अर्थात् सहस्रो मनुष्यों में कोई एक वास्तविक सिद्धिके लिये प्रयत्न करता है और उन प्रयत्नशील साधकों में भी कोई ही यथार्थ तत्त्व से जान पाता है।

Boredom बोरियत नीरसता ऊब

Boredom बोरियत नीरसता ऊब : सनातन बोध – ७९

Boredom बोरियत नीरसता ऊब – नीरसता, विरक्ति जैसे पर्याय मिल सकते हैं पर boredom जैसी चिरकालिक मानसिक अवस्था का सनातन दर्शन में अभाव ही रहा।

Do Animals have Moral मानवेतर जीव-चेतना

Do Animals have Moral मानवेतर जीव-चेतना? : सनातन बोध – ७८

क्या अन्य जीवों को भी अनुभूति होती है? क्या वो भी सोच पाते हैं? ये प्रश्न या तो अन्य परम्पराओं में उठे ही नहीं या इनका उत्तर सकारात्मक नहीं रहा। वहीं इन प्रश्नों का उत्तर सनातन दर्शन में सहज ही स्पष्ट है।

Reiki - Emotional Intelligence

Emotional intelligence भावात्मक प्रज्ञा : सनातन बोध – ७५

भावात्मक बुद्धि के उदाहरण सरल हैं -दूसरों की अवस्था समझना और यह समझना कि दूसरे जो कर रहे हैं, वैसा क्यों कर रहे हैं। और कोई भी क्षणिक प्रतिक्रिया देने से पहले वस्तुस्थिति को समझना। हमारे स्वयं की भावनाओं (संवेगों) को समझने तथा नियंत्रित  करने की योग्यता के साथ साथ दूसरों की भावनाओं एवं संवेगों को समझना और उन्हें सम्मान देना भी महत्वपूर्ण हैं जिससे निर्णय लेते समय हम उनसे प्रभावित न हों ।

Consciousness चैतन्य व योगवासिष्ठ : सनातन बोध – ७४

Consciousness चैतन्य व योगवासिष्ठ समुद्र-तरंग, सर्प-रस्सी, घट-आकाश, यन्त्र पुतली, अनेक स्वाँग धरने वाला नटुआ, वर्षाकाल का एक ही मेघ नानारूप। वस्तुओं और घटनाओं का स्वरूप मस्तिष्क द्वारा निर्मित होता है। इसका अर्थ यह नहीं कि वे वस्तुयें हैं नहीं परंतु यह है कि वे हमारे मस्तिष्क के लिए उस आभासी रूपों में हैं जिनमें उन्हें वह देखना चाहता है।

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CoVid-19 Information Stress कोरोना महामारी समाचार और मानसिक तनाव

महत्त्वपूर्ण है कि प्रतिकूल समाचारों को सकारात्मक समाचारों तथा अध्ययनों से संतुलित करना। अधिकारिक एवं प्रामाणिक समाचारों (Aarogya Setu) पर ही विश्वास करना तथा दिनचर्या में समाचारों के लिए भी एक समय सीमा निर्धारित करना। यदि मानव मस्तिष्क समाचारों से सचेत एवं चिंतित होने के आदी हैं तो ऐसे में समाचारों के स्रोत को छानना भी स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है।

Corona COVID-19 कोरोना कॅरोना विषाणु आकस्मिक भय : सनातन बोध – ७१

हमें मित्र से अभय हो, अमित्र (शत्रु) से अभय हो, जिसको जानते हैं उससे अभय हो, जिसको नहीं जानते उससे भी अभय हो, रात्रि में भी अभय हो, दिन में भी अभय हो, समस्त दिशायें हमारी मित्र हों अर्थात् हमें सब काल में सभी ओर से निर्भयता प्राप्त हो।
यदि ऐसा सोचें तो नकारात्मक भ्रांति कहाँ टिक पाएगी!

Paternity and Human evolution मानव विकास में पितृत्व का महत्त्व

Paternity and Human evolution शरीरकृत् प्राणदाता यस्य बच्चों के चित्र देख पिताओं के मस्तिष्क में पारितोषिक प्रदान क्षेत्र सक्रिय हो जाते हैं। मातृत्व की ही भाँति पितृत्व भी मानव प्रजाति के साथ साथ व्यक्ति के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है तथा मातृत्व एवं पितृत्व एक दूसरे के पूरक हैं एक दूसरे को प्रतिस्थापित नहीं कर सकते।

Negativity bias Good Company सत्संग

Negativity bias Good Company सत्संग : सनातन बोध – ६९

Negativity bias Good Company सत्संग वर्ष २००५ में रिव्यू ऑफ जनरल साइकोलोज़ी में छपे शैली गेबल और जोनाथन हैडट के एक शोध पत्र के अनुसार सामान्यतः हमें नकारात्मक से तीन गुना अधिक सकारात्मक अनुभव होते हैं। यह शोध पढ़ते हुए मन में स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि यदि ऐसा है तो क्यों हम बहुधा अपने…