CoVid-19 Information Stress, प्रतिकूल समाचारों को सकारात्मक समाचारों तथा अध्ययनों से संतुलित करना महत्त्वपूर्ण है , आधिकारिक एवं प्रामाणिक समाचारों (Aarogya Setu) पर ही विश्वास करना तथा दिनचर्या में समाचारों के लिए भी एक समय सीमा निर्धारित करना भी। यदि मानव मस्तिष्क समाचारों से सचेत एवं चिंतित होने के अभ्यस्त हैं तो ऐसे में समाचारों के स्रोत को छानना भी स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है।
कोरोना विषाणु जनित वैश्विक महामारी से सम्बंधित निरंतर मिल रहे समाचारों से मानसिक तनाव होना स्वाभाविक है। मानसिक तनाव हमें क्यों होते हैं? इस प्रश्न का रोचक उत्तर विकासवादी मनोविज्ञान से मिलता है, जिसके अनुसार तनाव(stress) होने का कारण है। तनाव का मानव जीवन में महत्त्व तो है परंतु उसकी वास्तविक प्रवृत्ति क्षणभंगुर है।
स्टैंफ़र्ड विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान तथा तंत्रिका विज्ञान के प्रो. रॉबर्ट सपोल्सकी के अनुसार (Robert Sapolsky discusses physiological effects of stress) प्रकृति ने व्यक्ति में तनाव इसलिए बनाया जिससे संकट के क्षणों में जीवनरक्षा हो सके। यथा, वन में किसी हिंसक पशु से सामना होने पर मस्तिष्क हमारा मन, ध्यान, मांसपेशियाँ और प्रतिरोधी क्षमता सब कुछ एकाकार कर हमें वहाँ से दूर किसी सुरक्षित स्थान पर भगा सके। ऐसी परिस्थिति में हमारे लिए लाभकारी यही होगा कि बिना विचार किए हम पूर्ण रूप से पहले अपनी रक्षा कर सकें।
इस प्रकार के तनाव की प्रकृति क्षणिक होती है अर्थात संकट टल जाने के पश्चात हमारे सारे तंत्र कुछ पलों में ही पुनः अपने कार्य पर लग जाते हैं। क्योंकि तनाव की अवस्था में शरीर की आवश्यक ऊर्जा, स्वास्थ्य तथा शारीरिक प्रतिरोधी क्षमता प्रभावित हो जाती हैं, तनाव की परिस्थिति में शरीर के संसाधनों का निरंतर अत्यधिक उपयोग में होने के कारण व्यक्ति अन्य किसी विषय पर सोच नहीं पाता जिससे व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है तथा संसाधनों के व्यस्त होने से हम आवश्यक समस्याओं को भी संकीर्ण रूप में देखने लगते हैं।
आधुनिक जटिल युग में तनाव यदि क्षणिक होने के स्थान पर अधिक समय के लिए रहने लगे तो वह मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। यही कारण है कि तनाव की अवस्था में हमें बिना कुछ किए भी श्रांत, क्लांत एवं निश्चल प्रतीत होता है। हम दूसरों की समस्याओं पर उचित रूप से ध्यान नहीं दे पाते। इसके विपरीत शांत एवं प्रसन्न अवस्था में हम स्वस्थ रहने के साथ साथ दूसरों की भी यथासम्भव सहायता कर पाते हैं। उनकी समस्याओं को भी उचित रूप से समझते हैं। हम उन कार्यों पर अपना ध्यान केंद्रित कर पाते हैं जिन्हें करने की आवश्यकता होती है। यही नहीं, अत्यधिक तनाव से मिथ्या प्रभाव (nocebo effect) भी होता है अर्थात कोरोना जनित महामारी के बारे में अधिक चिंतन मात्र करने से व्यक्ति में उसके लक्षण भी दिखने लग सकते हैं। यथा, गले में खरास तथा ज्वर।
मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य की महत्ता को चरक संहिता में कुछ इस प्रकार कहा गया है :
सत्त्वमात्मा शरीरं च भयमेतत्भिदण्डवत ।
लोकस्तिष्ठित संयोगात्तत्र सर्वं प्रतिष्ठितम् ॥ (चरक सू. अ. ७/४६)
अर्थात मन, आत्मा और शरीर तीन स्तंभ हैं जिन पर न केवल मानव जाति का परंतु विश्व का अस्तित्व टिका हुआ है।
और पुन: मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य की एक दूसरे पर निर्भरता को इन आधुनिक अध्ययनों के समरूप ही तो कहा गया है :
शरीरं हि सत्त्वमनुविधीयते सत्त्वं च शरीरम्॥ (च.शा.४/३६)
अर्थात रोगोत्पत्ति में शरीर और मन के पारस्परिक सम्बन्ध इस प्रकार हैं कि जैसा मन होगा वैसा शरीर तथा जैसा शरीर वैसा मन।
निरंतर समाचारों तथा समाज से कटे होने के इस वर्तमान समय में व्यक्तियों में तनाव हो जाना स्वाभाविक है परंतु इसके विपरीत यदि हम शांत मन से रहें या निश्चिन्त रहें तब हम शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के साथ अन्य समस्याओं को भी विस्तृत रूप में देख पाते हैं तथा उनके बारे में गम्भीरता से विचार भी कर पाते हैं। हमारी शारीरिक प्रतिरोधी क्षमता भी सुचारु रूप से कार्य करती है।
अधिक तनाव तथा चिंतित-व्यग्र अवस्था में मस्तिष्क का अतिकेंद्रित हो जाना तथा शारीरिक एवं मानसिक संसाधनों का उपयोग इस प्रकार से करना जैसे हमारे जीवित रहने के लिए उसकी उसी प्रकार से आवश्यकता है ‘जैसे वन में हिंसक पशु से सामना हो जाने पर’ के विपरीत वर्ष २००७ में विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन (Mental Training Affects Distribution of Limited Brain Resources) में यह पाया गया कि तीन महीनों के ध्यान (meditation) के पश्चात व्यक्ति अधिक सचेत हो गए तथा वस्तुओं के विभिन्न पहलुओं का भली भाँति आँकलन करने में भी अधिक सक्षम हुए।
ध्यान से तनाव को अल्प करने में अत्यधिक सहायता मिलती है। वर्ष २०१९ में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन (When the Muses Strike: Creative Ideas of Physicists and Writers Routinely Occur During Mind Wandering) के अनुसार शांत मन से हम अधिक रचनात्मक कार्य कर पाते हैं अर्थात किसी भी कार्य को समुचित रूप से करने तथा स्वस्थ रहने के लिए शांत मन अति आवश्यक है। अनेक अध्ययनों में शांत मन के लिए प्राणायाम का महत्त्व दर्शाया गया है जिसे पश्चिमी आधुनिक विज्ञान में mindful Breathing इत्यादि अन्य नामों से जाना जाता है यथा :
- प्राणायाम / Respiratory feedback in the generation of emotion
- आत्म चिंतन / Self-criticism and self-compassion
- करुणा / Exploring Compassion: A meta-analysis of the association between self-compassion and psychopathology
- सामाजिकता / Loneliness Matters: A Theoretical and Empirical Review of Consequences and Mechanisms
- स्वस्थ सम्बंध, मित्रता तथा परोपकार / Giving to Others and the Association Between Stress and Mortality
ऊपर बिन्दुवार दिए गए सभी सनातन मूल्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। इन अध्ययनों का महत्त्व कोरोना विषाणु जनित वैश्विक महामारी में पृथक रहने की अवस्था में समाचारों से उपजे तनाव के लिए अत्यंत अधिक है। इन अध्ययनों से निष्कर्ष निकलता है कि समस्या समाचारों से नहीं परंतु उन्हें समुचित रूप से न ग्रहण कर तनाव में रहने से है। सूचनाएँ आवश्यक हैं। संक्रमण की उचित सूचना भी आवश्यक है परंतु उससे ओतप्रोत और चिंतित हुए बिना।
इसी महामारी के संदर्भ में पिछले दिनों प्रकाशित अध्ययनों (यथा The Novel Coronavirus (COVID-2019) Outbreak: Amplification of Public Health Consequences by Media Exposure) से भी स्पष्ट है कि तनाव के दीर्घकालिक मानसिक एवं शारीरिक दुष्परिणाम हो सकते हैं। महत्त्वपूर्ण है – प्रतिकूल समाचारों को सकारात्मक समाचारों तथा अध्ययनों से संतुलित करना तथा उसे मित्रों एवं परिवार इत्यादि के साथ भी साझा करना।
अध्ययनों के एक सर्वेक्षण (Acute stress and subsequent health outcomes: A systematic review) के अनुसार प्रतिकूल समाचारों से उपजे तनाव का स्वास्थ्य पर दीर्घकाल तक प्रभाव रहता है। साथ ही तनाव की अवस्था में हमारी प्रतिरोधी क्षमता तथा निर्णय क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसे में महत्त्वपूर्ण हैं – आधिकारिक एवं प्रामाणिक समाचारों (Aarogya Setu) पर ही विश्वास करना तथा दिनचर्या में समाचारों के लिए भी एक समय सीमा निर्धारित करना। यदि मानव मस्तिष्क समाचारों से सचेत एवं चिंतित होने के अभ्यस्त हैं तो ऐसे में समाचारों के स्रोत को छानना भी स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है।
समाचारों को सीमित करने के अतिरिक्त इस बात का भी संज्ञान आवश्यक है कि इस महामारी पर विजय एक सामूहिक प्रयास है इसलिए आवश्यक है कि प्रयास एकजुट होंं। संसार में सबकुछ ही एक दूसरे से जुड़े होने के सनातन दर्शन की महत्ता इससे अधिक भला कब स्पष्ट होगी? महामारी पर विजय एक दूसरे के सहयोग पर निर्भर है। जो इसमें सहयोग नहीं कर रहे वे असुर सदृश्य मानवता के शत्रु हैं। वर्तमान आरोग्य भावना कुछ इस प्रकार होनी चाहिए :
नात्मार्थं नाऽपि कामार्थं अतभूत दयां प्रतिः।
वतर्ते यश्चिकित्सायां स सर्वमति वर्तते ॥ (च० चि० १/४/५८)
अर्थ तथा कामना के लिए नहीं, वरन् प्राणिमात्र पर दया की दृष्टि से जो चिकित्सा में प्रवृत्त होता है, वह सब पर विजय प्राप्त करता है।
सूचनाएँ जो आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण हों पर वे नहीं जो हमें दुर्बल करें। हम रुचिकर कार्य करें, जिससे तनाव घटे तथा हम व्यस्त रहें। अपने मित्रों तथा परिवार से सम्पर्क में रहें। जिन बातों की चर्चा हमने पिछले लेखांश में की उनकी आयुर्वेद से भी पुष्टि होती है :
धी धृति स्मृति विभ्रष्ट: कर्मयत् कुरुत्ऽशुभम्।
प्रज्ञापराधं तं विद्यातं सर्वदोष प्रकोपणम्॥ (चरक संहिता शरीर. १/१०२)
अर्थात् बुद्धि, धैर्य और स्मृति के भ्रष्ट हो जाने पर मनुष्य जब अशुभ कर्म करता है तब सभी शारीरिक और मानसिक दोष प्रकुपित हो जाते हैं। इन अशुभ कर्मों को प्रज्ञापराध कहा जाता है। प्रज्ञापराध करने वाले के शरीर और स्वास्थ्य की हानि होती है और वह रोगग्रस्त होता ही है।
संतुलित भोजन, शयन, व्यायाम, परोपकार की भावना, तथा सामाजिक सम्बंध वाली सनातन दिनचर्या की ही पुष्टि मनोवैज्ञानिक अध्ययन भी कर रहे हैं। हर विपरीत परिस्थिति एक अवसर भी उपलब्ध कराती है। वर्ष २०११ में प्रकाशित इस अध्ययन (Psychological Flexibility as a Fundamental Aspect of Health) के अनुसार भी विपरीत परिस्थिति में मानसिक रूप से सबल रहना ही तो स्वास्थ्य का आधार है। ।
दिनचर्या का महत्त्व इस बात से भी बढ़ जाता है कि अभी तक इस महामारी से बचाव शरीर की प्रतिरोधी क्षमता से ही सम्भव है। शरीर की प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने में सनातन तथा आयुर्वेदिक दिनचर्या का महत्त्वपूर्ण योगदान है। पश्चिमी वैज्ञानिक चिकित्सा शास्त्र में भी अनेक आयुर्वेदिक जीवन शैलियों तथा औषधियों द्वारा शरीर की प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने के प्रमाण हैं। विगत वर्षों में इनमें से प्रमुख एवं अत्यंत लोकप्रिय हैं हल्दी (What does the evidence say about turmeric’s health benefits?) तथा विशेष रूप से हल्दी (उसमें पाए जाने वाले Curcumin) एवं काली मिर्च के सम्मिश्रण (Why Turmeric and Black Pepper Is a Powerful Combination) के सेवन से होने वाले अद्भुत लाभ। ऐसे अनेक अध्ययन हैं यथा —
- “Spicing up” of the immune system by curcumin
- Therapeutic Roles of Curcumin: Lessons Learned from Clinical Trials
- Curcumin: A Review of Its’ Effects on Human Health
हल्दी-कालीमिर्च इस महामारी की औषधि तो नहीं परंतु शरीर की प्रतिरोधी क्षमता की वृद्धि में इनका व आयुर्वेदिक दिनचर्या का योगदान निर्विवाद है ही। चरक संहिता में कहा भी गया है —
सोयेऽमायुर्वेद: शाश्वतो निर्दिश्यते,
अनादित्वात्, स्वभावसंसिद्धलक्षणत्वात्, भावस्वभाव नित्यत्वाच्च। (चरक संहिता सूत्र, 30/26)
अर्थात् अनादि होने से, अपने लक्षण के स्वभावत: सिद्ध होने से और भावों के स्वभाव के नित्य होने से आयुर्वेद शाश्वत है।