आषाढ़ पूर्णिमाङ्क, २०७८ वि., वर्ष-६, अङ्क-१०३, शनिवार
27/04/2021, Saturday
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा चरैवेति चरैवेति। अतीत की स्मृतियाँ किसे व्यथित नहीं करतीं? कौन है जो नेत्र मूँदे भावी से अनभिज्ञ निज दायित्वों से भागता फिरता है? वह कुछ भी हो, कालयात्री तो नहीं हो सकता। आदर्शों के इस विशाल मेरु ने आपको भी एक दायित्व सौंपा है। मेरी गति तो कहीं नहीं से उबरें! उन वाक्यों, कथनों का स्मरण करें जिससे कालयात्री ने क्षण-प्रतिक्षण आपको अभिसिंचित किया था। देवायतनों से उठते स्वर व बलाघात को गुनें। साथ ही उस अदम्य साहस को प्रणाम करें जिसने नितान्त अन्धकूप में भी ‘धूप’ का स्पर्श पाया।
इन्द्र तथा उपेन्द्र ने परस्पर मिल कर जाने कितनी लीलायें रचीं हैं, न जाने कितने काण्ड लिखे हैं। न जाने कितने आख्यान हैं दोनों के, जिनमें इनके परस्पर सहयोग से देवजाति तथा सम्पूर्ण सृष्टि एवं मानवता का कल्याण हुआ। इतना अवश्य है, कि इन्द्र इन्द्र ही रहे, किन्तु उपेन्द्र ने अनगिन रूप धारे।
साधारण सा लगने वाला यह पक्षपात वास्तव में इतना प्रबल होता है कि टीका जैसी जीवनरक्षक वस्तु पर भी व्यक्ति मिथ्या सूचना प्रसारित कर देते हैं। वो भी प्रबल दृढ़ता से। ‘Denying to the Grave: Why We Ignore the Facts That Will Save Us’ में मनोवैज्ञानिक जैक गोर्मन इन बातों की विस्तृत चर्चा करते हैं। परन्तु पुस्तक के अंत में वह भी यहीं रुक जाते हैं कि इन सिद्धांतों के ज्ञात होते हुए भी इन समस्याओं का हल आज भी एक चुनौती ही है।
सफ़ेद तीतर भारत का बहुत ही प्रसिद्ध पक्षी है जो बहुधा दिखाई पड़ जाता है परन्तु चपलता पूर्वक झाड़ियों में छुप भी जाता है। क्योंकि बढ़ते विकास के साथ-साथ इस पर मानव अत्याचार/आखेट बढ़ा है। इस कारण यह मानव अदि की उपस्थिति के आभास मात्र से या दूर से देखकर ही छिपने के लिए भाग जाता है।
किसी भी व्रत-पर्व-त्यौहार इत्यादि के निर्णय के लिए २ बातों की जानकारी आवश्यक है — प्रथमतः उसके आधारभूत ज्योतिषीय घटना और द्वितीयतः उस व्रत-पर्व-त्यौहार के मनाने के लिए धर्मशास्त्र की सम्मति। गणित उसमें विस्तृत विवरण तो दे सकता है, परन्तु सम्मति नहीं अतः व्रत-पर्व-त्यौहार का मनाना-मानना विशुद्ध धर्मशास्त्र का निर्णय है। इसमें धार्मिक सम्मति सम्प्रदाय या परम्परागत भेद से विभिन्न हो सकती है, परन्तु गणित पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता।