श्रावण अमावस्याङ्क, २०७८ वि., वर्ष-६, अङ्क-१०४, रविवार
08/08/2021, Sunday
यदि निष्पक्ष भाव से प्रश्न करें तो एक स्वाभाविक प्रश्न मन में उठता है कि संकीर्ण मानसिकता तथा कुण्ठित विचारधारा के व्यक्ति अपने घृणित मत को भी सत्य सिद्ध करने के लिए कैसे किसी भी स्तर तक पतित हो जाते हैं। भला यह किसी प्रकार की दुराग्रही प्रवृत्ति है जो व्यक्ति को घृणा से अंधा…
वाल्मीकीये रामायणे बहुषु स्थानेषु तत्समये किम्कर्तव्यम किमकर्तव्यम् इति शिक्षा मिलति, परस्पर द्वयोः जनयोः सम्वाद रूपे लेखकस्य स्वगतविचारे वा । यथा अयोध्याकाण्डे श्रीरामः पितुः वचनानुसारेण स्वराज्याभिषेकं त्यक्त्वा सीतालक्ष्मणौ सह वनं प्रति गच्छति । भरतः कैकय राज्यात् अयोध्यायां आगमने महाराज दशरथस्य देहान्तं श्रीरामस्य वनगमनं च शृणोति स्म । सः कैकय्याः दुष्कृत्याय जननीं कुत्सयति स्वाक्रोशं च प्रदर्शयति
मैंने एक बार एक हिजाब धारण करनेवाले पोस्ट-डॉक्टोरल शोध विद्वान से पूछा क्या वह मानती है कि स्वामी विवेकानंद जैसे उत्कृष्ट हिंदुओं को भी अनन्त काल के लिए नरकाग्नि में डाल दिया जाएगा? मैंने उससे यह भी कहा कि जिस धर्म में मैं पली-बढ़ी हूं, वह इस्लाम जैसा ही दृष्टिकोण रखता है, लेकिन मैं अब उसे नहीं मानती।
उसका संक्षिप्त उत्तर था: “अल्लाह सबसे अच्छा जानता है।”
पीलक या पिरोला या हरदुआ कान्तिमान पीत वर्ण का का एक सुन्दर पक्षी है। जिसका सिर, डैना और पूँछ श्याम वर्ण की की होती है। यह अत्यंत चपल, तेज और चञ्चल पक्षी है। कोलहल रव करते हुए उपस्थिति प्रदर्शित करता है।