Sundarkand सुंदरकांड उत्तरं पारं – ५३ : [रामदर्शनशीघ्रेण प्रहर्षेणाभिचोदितः]

हनुमान सागर को एक विशाल जलपोत की भाँति पार कर रहे हैं। आकाश, क्षितिज और सागर मिल कर कैसा दृश्य उपस्थित कर रहे हैं!
सूर्य और चन्द्र दोनों दिख रहे हैं।