अयनांत विशेषाङ्क : भारती संवत – १, गुरु-शनि युति, विषम विभाजन व अभिजित

अयनांत विशेषाङ्क : भारती संवत – १, गुरु-शनि युति, विषम विभाजन व अभिजित

नक्षत्रों के नाम देखें तो स्पष्ट होता है कि बहुधा उनके नाम योगताराओं के या मुख्य तारकों की समूह आकृतियों के आधार पर रखे गये। यथा चित्रा का योगतारा spica क्रांतिवृत्त के निकट का प्रकाशमान तारा है तथा मात्र आधे अंश के देशांतर भेद पर स्थित स्वाति के अति प्रकाशमान योगतारा से मिल कर सरल अभिज्ञान के साथ साथ सु+अति (अत्युत्तम) की सञ्ज्ञा का पात्र है। मृगशिरा निकटवर्ती त्रिकाण्ड से मिल कर वास्तव में एक मृग के सिर की भाँति प्रतीत होता है। कृत्तिका के छ: तारे एक गँड़ासी की आकृति बनाते हैं जोकि काटने में प्रयुक्त होती है। साथ ही कृत्तिका के देवता अग्नि की भाँति ही वह समूह आकाश में दप दप करते प्रतीत होते हैं।

भारती सम्वत प्रस्ताव - गिरिजेश राव - vernalequinox-e

भारती संवत : प्रस्तावना (शीत अयनान्त एवं गुरु-शनि युति एक साथ)

भारती संवत – जब कि भारतीय परम्परा में शीत अयनांत के साथ नववर्ष आरम्भ के दृढ़ प्रमाण हों, नयी संवत्सर पद्धति आरम्भ करने का सबसे उत्तम अवसर है। मासानां मार्गशीर्षोऽहम्‌ (श्रीकृष्ण, भगवद्गीता, १०.३५)। कल अग्रहायण या मार्गशीर्ष मास की शुक्ल प्रतिपदा है, अमान्त पद्धति से मार्गशीर्ष मास का आरम्भ। इस दिन से मैं एक नये ‘भारती संवत’ का प्रस्ताव करता हूँ। अब्द, संवत, वर्ष, era, epoch आदि नामों के अर्थों की मीमांसा में न जाते हुये कहूँगा कि जैसे विक्रमाब्द, शालिवाहन शकाब्द आदि विविध संवत्‌ प्रचलित हैं, ऐसे ही यह नया संवत होगा।