लहरता दिनमान प्रस्थान और विश्राम बीच – ऑक्तावियो पाज़
लहरता दिनमान प्रस्थान और विश्राम बीच, निजी पारदर्शिता के मोह में। वर्तुल तिजहर खाड़ी अब, थिरता में जग डोलता जहाँ। दृश्यमान सब और सब मायावी, सभी निकट और स्पर्श दूर। कागज, पुस्तक, पेंसिल, काँच, विरमित निज नामों की छाँव में। दुहराता समय स्पंदन मेरे केनार वही अपरिवर्तित रक्त अक्षर। बदले प्रकाश में उदासीन भीत भुतहा…