Black Stork कृष्ण महाबक
Black Stork कृष्ण महाबक लम्बी टांगों वाला बगुला परिवार का एक सुन्दर पक्षी है जो अपने कृष्ण वर्ण के कारण ही सुरमई नाम से भी जाना जाता है।
Black Stork कृष्ण महाबक लम्बी टांगों वाला बगुला परिवार का एक सुन्दर पक्षी है जो अपने कृष्ण वर्ण के कारण ही सुरमई नाम से भी जाना जाता है।
चंदियार पक्षी उत्तर भारत में अब अत्यल्प दृष्टिगोचर होता है। निचलौल के जंगल में मात्र २ पक्षी दिखाई दिए है। परन्तु बिहार के भागलपुर जिले के नवगछिया प्रखंड के कदुवा-दियारा गाँव में इनके नीड़ देखे गए हैं।
कचाटोर का संस्कृत ‘शराटिका’ नाम शर/सरोवर में अट् अर्थात भ्रमण के कारण पड़ा है। बक जाति के इस पक्षी का उल्लेख अमरकोश में मिलता है। इसके अन्य नाम दात्यूह, कालकण्ठक, ध्वाङ्क्ष एवं धूङ्क्षणा हैं। कचाटोर संज्ञा की व्युत्पत्ति इस प्रकार है – कचाटु:>कचाटुर>कचाटोर। कच केश या सिर के किसी चिह्न को कहते हैं। श्वेत वर्ण के इस पक्षी का आधे गले सहित काला शिरोभाग ऐसा प्रतीत होता है मानों आग से झौंसाया सिर लिये भटक रहा हो, कचाटु: की व्युत्पत्ति इसी से है – कचेन शुष्कव्रणेन सह अटति। ध्वाङ्क्ष एवं धूङ्क्षणा नामों के मूल में मिलन ऋतु में इसका धूम घोषी स्वर है – ध्वाङ्क्ष घोर वाशिते ।
टिटिहरी जो आसमान पाँव पर उठा लेती है। भारत में इसको बहुधा वर्षा ऋतु की कई मान्यताओं से जोड़ा जाता है। तो इस बार मानसून, वर्षा ऋतु के आगमन पर आजाद सिंह की अवधि चिरईया शृंखला में इसी पक्षी के बारे में जानते हैं।
सारस जैसा दिखाई देने वाला ये विशालकाय बगुला दिन और रात में समान रूप से देखने की क्षमता रखता है। प्रजनन के लिए नर की रूचि हर बार नयी मादा में ही होती है। पुराने समय में पश्चिमी जगत में ऐसी मान्यता भी थी कि यदि पूर्णिमा की रात्रि में इसका शिकार करके इसकी चर्बी प्रयोग में ली जाये तो संधिवात (गठिया) रोग को सही करता है। कभी-कभी यह अपने शिकार (मछली) आदि को एक बार में ही निगल जाता है जो इसके गले में फंस जाता है। इसके अच्छे शिकारी कौशल को देखते हुए मध्यकाल में इसका प्रयोग शिकारियों द्वारा प्रशिक्षण देकर किया जाता था।