Lesser Adjutant चंदियार शिशु के साथ नीड़ में। चित्र सर्वाधिकार: आजाद सिंह, © Ajad Singh, कदुवा-दियारा, नौगछिया, भागलपुर, बिहार, October 31, 2019

Lesser Adjutant चंदियार

चंदियार पक्षी उत्तर भारत में अब अत्यल्प दृष्टिगोचर होता है। निचलौल के जंगल में मात्र २ पक्षी दिखाई दिए है। परन्तु बिहार के भागलपुर जिले के नवगछिया प्रखंड के कदुवा-दियारा गाँव में इनके नीड़ देखे गए हैं।

Indian White Ibis कचाटोर, चित्र सर्वाधिकार: आजाद सिंह, © Ajad Singh, समदा झील, सुचित्तागंज, अयोध्या, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश, March 10, 2019

Indian White Ibis / Black-Headed Ibis कचाटोर

कचाटोर का संस्कृत ‘शराटिका’ नाम शर/सरोवर में अट्‍ अर्थात भ्रमण के कारण पड़ा है। बक जाति के इस पक्षी का उल्लेख अमरकोश में मिलता है। इसके अन्य नाम दात्यूह, कालकण्ठक, ध्वाङ्क्ष एवं धूङ्क्षणा हैं। कचाटोर संज्ञा की व्युत्पत्ति इस प्रकार है – कचाटु:>कचाटुर>कचाटोर। कच केश या सिर के किसी चिह्न को कहते हैं। श्वेत वर्ण के इस पक्षी का आधे गले सहित काला शिरोभाग ऐसा प्रतीत होता है मानों आग से झौंसाया सिर लिये भटक रहा हो, कचाटु: की व्युत्पत्ति इसी से है – कचेन शुष्कव्रणेन सह अटति। ध्वाङ्क्ष एवं धूङ्क्षणा नामों के मूल में मिलन ऋतु में इसका धूम घोषी स्वर है – ध्वाङ्क्ष घोर वाशिते ।

Red Wattled Lapwing, टिटिहरी। चित्र सर्वाधिकार: आजाद सिंह, © Ajad Singh, सरयू नदी का कछार, अयोध्या, फैजाबाद उत्तर प्रदेश, May 21, 2018

Red Wattled Lapwing टिटिहरी

टिटिहरी जो आसमान पाँव पर उठा लेती है। भारत में इसको बहुधा वर्षा ऋतु की कई मान्यताओं से जोड़ा जाता है। तो इस बार मानसून, वर्षा ऋतु के आगमन पर आजाद सिंह की अवधि चिरईया शृंखला में इसी पक्षी के बारे में जानते हैं।

Grey Heron, खैरा बगुला। चित्र सर्वाधिकार: आजाद सिंह, © Ajad Singh, समदा झील, सोहावल, फैजाबाद उत्तर प्रदेश, May 10, 2018

Grey Heron खैरा बगुला

सारस जैसा दिखाई देने वाला ये विशालकाय बगुला दिन और रात में समान रूप से देखने की क्षमता रखता है। प्रजनन के लिए नर की रूचि हर बार नयी मादा में ही होती है। पुराने समय में पश्चिमी जगत में ऐसी मान्यता भी थी कि यदि पूर्णिमा की रात्रि में इसका शिकार करके इसकी चर्बी प्रयोग में ली जाये तो संधिवात (गठिया) रोग को सही करता है। कभी-कभी यह अपने शिकार (मछली) आदि को एक बार में ही निगल जाता है जो इसके गले में फंस जाता है। इसके अच्छे शिकारी कौशल को देखते हुए मध्यकाल में इसका प्रयोग शिकारियों द्वारा प्रशिक्षण देकर किया जाता था।