संज्ञानात्मक पक्षपात inattentional blindness का अध्ययन चेतना की दृष्टिहीनता को बताता है। सभी सनातन ग्रंथों में चैतन्य को सर्वश्रेष्ठ विज्ञान कहा गया है।
सनातन बोध : प्रसंस्करण, नये एवं अनुकृत सिद्धांत – 1 , 2, 3, 4 और 5 से आगे …
संज्ञानात्मक पक्षपात
संज्ञानात्मक पक्षपातों का अध्ययन इस बात का अध्ययन है कि हम किसी बात या अवस्था को उसकी वास्तविकता जाने बिना कैसे समझने का भ्रम पाल लेते हैं और किस प्रकार हमारी इन्द्रियाँ हमारी अनुभूतियों को भ्रमित करती हैं। यह एक प्रकार की दृष्टिहीनता है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के डेनियल सिमोंस और क्रिस्टोफर चाबरिस ने अपने 1999 के बहुचर्चित प्रयोग में ‘परिवर्तन दृष्टिहीनता’ (change blindness) और ‘बेपरवाह दृष्टिहीनता’ (inattentional blindness) की चर्चा करते हुए दिखाया कि हम अपने परिवेश तक से कैसे अनभिज्ञ होते हैं। उन्होंने अपने प्रयोग में दिखाया कि किस प्रकार एक वीडियो को देखते हुए उसमें आये गोरिल्ला को अधिकतर लोग देख ही नहीं पाते हैं।
इस तरह के अनेक प्रयोग हैं और हमारे ऐसे संज्ञानात्मक पक्षपातों की सूची बहुत लम्बी है। हमारी सारी इन्द्रियों और लगभग हर प्रकार के परिवेश में मानवीय अनुभूतियों के छलित होने के प्रयोग किये गये हैं।
प्रोफ़ेसर काहनेमैन की चर्चा हमने पिछले लेखांश में की थी। उनके लगभग हर प्रयोग और सिद्धांत में ऐसे भ्रमों का ही उल्लेख है। जैसे किसी वस्तु की दूरी पता करने के लिए प्राय: हम दी गयी जानकारी से दूरी की गणना करने के स्थान पर उस वस्तु के दिखने की स्पष्टता से अनुमान लगाते हैं। खराब मौसम में स्पष्ट नहीं दिख रही वस्तु को हम दूर मानते हैं। हमारे ऐसे सोचने के ढंग से कई बातें प्रभावित होती हैं। एरिक जॉनसन और डेनियल गोल्डस्टीन ने एक शोध में दिखाया कि कैसे केवल दिये गये विकल्प में परिवर्तन से अंग दान करने वालों के प्रतिशत में भारी अन्तर आ जाता है। प्राय: हम अपने अंतर्ज्ञान (intuition) से निर्णय लेते हैं, बिना सोचे ही।
लगभग एक ही तरह के सामाजिक व्यवहार वाले पश्चिमी यूरोप के पड़ोसी देशों में अंग दान के फॉर्म में एक छोटे से अंतर के कारण अंग दान करने वाले लोगों के प्रतिशत में भारी अंतर आया। जिन देशों में फॉर्म इस तरह बने हुये हैं, ‘यदि आप अंग दान करना चाहते हैं तो इस बॉक्स में टिक करें।’, वहाँ अंग दान करने वाले लोगों का प्रतिशत अत्यल्प है, मात्र 4 से 27 प्रतिशत। वहीँ जिन देशों में इसी प्रश्न को बस इतना परिवर्तित कर दिया गया, ‘यदि आप अंग दान ‘नहीं करना’ चाहते हैं तो इस बॉक्स में टिक करें।’, वहाँ अंग दान करने वालों का प्रतिशत 98 से 99 तक है।
इन सारे प्रयोगों के निष्कर्ष एक ही हैं- हमारी भावनायें, अनुभव और विकासवाद जनित अंतर्ज्ञान हमें पता हुए बिना हमें छलित करते हैं। पक्षपातों से घिरी हमारी दृष्टि तिरछी हुई रहती है। हमारे निर्णय इस बात से प्रभावित होते हैं कि हम कैसे चित्र देखते हैं। हमारी थकान, आयु, स्वास्थ्य और बोझ की मात्रा से हमें ढलान अधिक सीधी या खड़ी दिखाई देती है।
भावनाओं का प्रभाव हम पर इस तरह होता है कि एक व्यक्ति की मृत्यु हमें मृत्यु दिखती है, जबकि हजारों लाखों की मृत्यु बस एक आँकड़ा बन कर रह जाती है।
सनातन बोध दर्शन
ये प्रसिद्ध हुये सिद्धांत नये नहीं हैं। इन सिद्धांतों के आधुनिक रूप और पुराने वर्णनों में दिखने वाले अंतर का एक बड़ा कारण है सनातन सिद्धांतों का धार्मिक दर्शन में अंतर्मिश्रित होना और प्राचीन शब्दावली का होना जिसका आधुनिक रूपांतरण उपलब्ध नहीं है।
जैसे मनोविज्ञान और चैतन्य की बात हो तो स्वतः ही वसुगुप्त के उन शिवसूत्रों का ध्यान आता है जिनके गूढ़ अध्ययन पर मनोविज्ञान के कई सिद्धांत उन सूत्रों के विशेषावस्था मात्र प्रतीत होते हैं – चैतन्यमात्मा ज्ञान बन्ध:। ज्ञानं जाग्रत्। जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिभेदे तुर्याभोग सम्भवः। मस्तिष्क की जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्त स्थितियों में भेद कर चतुर्थ स्थिति का अनुभव, मोहजयादनन्ताभोगात्सहजविद्याजयः।
साथ ही कुछ संज्ञानात्मक पक्षपात तो इतनी सरलता से मिलते हैं जैसे ‘एक्टर ऑब्सर्वर बायस’ अर्थात मनुष्य अपने स्वयं के व्यवहार के लिए परिस्थितियों को उत्तरदायी मानता है पर दूसरों के व्यवहार का कारण उनका चरित्र। अपनी त्रुटियों के हम कारण ढूँढ लेते हैं परन्तु दूसरों की त्रुटियों को उनके चरित्र और उनके आंतरिक गुणों से जोड़ते हैं। जैसे हमसे या हमारे अपनों से कुछ त्रुटि हुई तो हम परिवेश को उत्तरदायी मान लेते हैं पर वही त्रुटि यदि किसी दूसरे से हो तो हम यह मानते हैं कि वह मनुष्य ही वैसा है। यह श्लोक आपने कितनी ही बार सुना होगा:
सर्षपमात्राणि पराच्छिद्राणि पश्यति।
आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति।
(दूसरे का सरसो के दाने के बराबर दोष भी दिखता है और अपना बेल के फल जितना बड़ा हो तो दिखते हुये भी नहीं दिखता!)
भोजपुरी की कहावत ‘पाँच-सात लईका एक संतोष, गदहा मरले कुछऊ ना दोष‘ हो या आज का ‘मेरे बच्चे बच्चे, तुम्हारे जनसंख्या‘, सभी उसी व्यवहार को इङ्गित करते हैं।
कुछ अन्य प्रसिद्ध सिद्धांतों की बात हम करेंगे पर स्पष्टत: इन भ्रांतिमूलक समस्याओं से निवारण का अर्थ है, वास्तविकता का ज्ञान अर्थात इन पक्षपातों पर नियंत्रण पाकर उनसे परे देखने वाली स्पष्ट दृष्टि प्राप्त करना। इस बात को विस्तृत परिप्रेक्ष्य में देखें तो इसका अर्थ हुआ अनभिज्ञता का निवारण और सत्य का ज्ञान। इस बात से अनेक ग्रन्थ भरे पड़े हैं अलग – अलग रूपों में ये बात बार-बार कही गयी है, सनातन ग्रन्थ हों या बौद्ध दर्शन। योग का लक्ष्य ही है इन्द्रियबोध, भावनाओं, विचार प्रक्रिया और मानसिक अवस्थाओं का ध्यान करना और उनके वास्तविक स्वरुप का ज्ञान प्राप्त करना। ‘जागृत ग्रहणबोध‘ चैतन्य सनातन और बौद्ध दर्शन के मूल हैं। सनातन ग्रंथों में चैतन्य को सर्वश्रेष्ठ विज्ञान कहा गया है।
पक्षपातों की उपज अंतर्ज्ञान और अपने अनुभवों से जनित भ्रम से होती है अर्थात ग्रंथों की भाषा में कहें तो पूर्व कर्मों से। ध्यान करने वाले इस कर्म के बंधन से उपजे स्वतः चिंतन प्रक्रिया पर ही तो नियन्त्रण पाते हैं। आधुनिक प्रायोगिक विधि से भी इस बात की बार-बार पुष्टि हुई है। ऐसे कई अध्ययन हैं जिनमें इन पक्षपातों पर नियंत्रण पाने वाली सनातन युक्तियों की पुष्टि हुई। इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि योग और ध्यान करने वाले लोगों पर इन भ्रमित अनुभूतियों के प्रभाव कम होते हैं। ऐसे कुछ अध्ययनों के बारे में यहाँ पढ़ा जा सकता है:
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/6382145
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/17672382
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/17488185
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/11153836
यहाँ एक ध्यान देने की बात यह भी है कि स्वाभाविक सी लगने वाली इन बातों का आधुनिक मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र के सिद्धांतों पर गहरा प्रभाव है। मनोविज्ञान की लोकप्रिय और उभरती हुई इस शाखा में बातें एक साथ बहुत सहज और प्रभावी भी लगती हैं। पर हम जितना पढ़ते हैं एक बात स्पष्ट होती जाती है- सनातन बोध और संज्ञानात्मक विज्ञान एक दूसरे के अद्भुत पूरक हैं, दो भाषाओँ और विभिन्न देश-काल में कही गयी एक ही बात।
अगले अंकों में अन्य मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के साथ सांख्य, पुरुष और त्रिगुणात्मक प्रकृति की चर्चा करेंगे।
लेखक: अभिषेक ओझा
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से
गणित और संगणना में समेकित निष्णात। न्यूयॉर्क में एक निवेश बैंक में कार्यरत। जिज्ञासु यायावर। गणित, विज्ञान, साहित्य और मानव व्यवहार में रूचि। ब्लॉग:http://uwaach.aojha.in ट्विटर: @aojha |