वेद से लिपि का उद्भव तथा वर्गीकरण Scripts - Vedic Origin & Classification

वेद से लिपि का उद्भव तथा वर्गीकरण Scripts – Vedic Origin & Classification

ऋग्वेद के प्रथम सूक्त के दो शब्दों का व्यवहार केवल तमिल-तेलुगू में होता है – दोषा = रात, वस्ता = दिन। इसकी वृद्धि कर्णाटक में हुयी।

Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम्

Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम् : रामायण – ५५

Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम् – – मैंने पिघले कञ्चन के समान सुंदर वर्ण वाली सीता को देखा। उन कमलनयनी का मुख उपवास के कारण कृश हो गया था।

धम्मदीक्षा दास हेतु नहीं – न भिक्खवे दासो पब्बाजेत्तब्बो

धम्मदीक्षा दास हेतु नहीं – विकृत एवं मिथ्या दृढ़कथन व मान्यतायें। वैश्विक स्तर पर राजनीतिक एवं स्वार्थी आग्रहों से बँधी अकादमिकी का यही सच है। 

Sundarkand सुंदरकांड दृष्टा सीता – ५४ : [सर्वथा कृतकार्योऽसौ हनुमान्नात्र संशयः]

दिष्ट्या दृष्टा त्वया देवी रामपत्नी यशस्विनी॥ दिष्ट्या त्यक्ष्यति काकुत्स्थश्शोकं सीतावियोगजम्। यह सौभाग्य की बात है कि तुम श्रीराम की पत्नी यशस्विनी देवी सीता के दर्शन कर आये, अब देवी सीता के वियोग से उपजा काकुत्स्थ राम का शोक दूर हो जायेगा, यह भी सौभाग्य की बात है।

CoViD-19 और भारतीय मीडिया (टी वी) : कर्तव्य पालन या केवल छिछोरई?

CoViD-19 और भारतीय मीडिया (टी वी) : कर्तव्य पालन या केवल छिछोरई?

CoViD-19 और भारतीय मीडिया – मनोरोगी व क्षुद्र अनियंत्रित नागरिकों से भरी इकाई नहीं, सुव्यवस्थित समूह जो निज-हित की प्राथमिकताओं से बद्ध हो।

Sundarkand सुंदरकांड उत्तरं पारं – ५३ : [रामदर्शनशीघ्रेण प्रहर्षेणाभिचोदितः]

हनुमान सागर को एक विशाल जलपोत की भाँति पार कर रहे हैं। आकाश, क्षितिज और सागर मिल कर कैसा दृश्य उपस्थित कर रहे हैं!
सूर्य और चन्द्र दोनों दिख रहे हैं।

Sundarkand सुंदरकांड

Sundarkand सुंदरकांड – ५२ : विदा दें [सा निर्दहेदग्निं न तामग्निः प्रधक्ष्यति]

Sundarkand सुंदरकांड – ५२ : स्वयं को धिक्कारते चले गये, यदि दग्धा त्वियं लङ्का नूनमार्याऽपि जानकी। दग्धा तेन मया भर्तुर्हितं कार्यमजानता॥

श्रीराम जन्मोत्सव पुनश्च : रामनवमी (संस्कृत, तमिळ, अवधी हिन्‍दी, मराठी काव्य)

श्रीराम जन्मोत्सव रामनवमी : यह प्रस्तुति अव्यावसायिक है एवं इसका उद्देश्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जन्मोत्सव पर जनरञ्जन मात्र है। कृपया व्यावसायिक उद्देश्य या किसी भी प्रकार के आर्थिक, वस्तु लाभादि के लिये इसका प्रयोग न करें।

Holi अश्लील होली उदकसेविका व स्कंद पुराण में काम महोत्सव

जिसके समक्ष उदकसेविका पहुँचती, उसे प्रमत्त, पियक्कड़, विदूषक या पागल की तरह व्यवहार करना होता। लोग कुत्तों पर सवार हो जाते, एक दूसरे को गालियाँ बकते, चोकरते हुये गीत गाते, नाचते, निर्लज्जता सामान्य हो जाती। पुरुष उदकसेविका के साथ जो चाहे, करते।

Delhi Jihad दिल्ली जिहाद और शनै: शनै: बढ़ता भावी विकराल संकट

दिल्ली जिहाद उदाहरण है कि कैसे इस्लाम येन केन प्रकारेण अपने लिये जमीन छीनता है। जिहादी हिंसा से ग्रस्त दिल्ली के उत्तरी पूर्वी भागों में से कुछ से महीनों या एकाध वर्षों में हिंदुओं का पलायन पूर्ण हो जायेगा जो कि टुकड़ा टुकड़ा कर दारुल इस्लाम पा लेने की दिशा में एक लघु किंतु बहुत ही प्रभावी इस्लामी उपलब्धि होगी।

Sundarkand सुंदरकांड

लंकादहन की भूमिका – सुंदरकांड [प्रदीप्तलाङ्गूलस्सविद्युदिव तोयदः] – ५१

लंकादहन की भूमिका – किरणों के घेरे में परम तेजस्वी सूर्य सम प्रकाशित मारुति द्वारा चलाये जाते परिघ का सम्पूर्ण बिम्ब भासमान हो उठता है।

Fire ordeal अग्निपरीक्षा

Fire ordeal अग्निपरीक्षा सुंदरकांड [यदि चास्त्येकपत्नीत्वं शीतो भव हनूमतः] – ५०

यदि चास्त्येकपत्नीत्वं शीतो भव हनूमतः । शिशिरस्य इव सम्पातो लाङ्गूल अग्ने प्रतिष्ठितः!  …
जो देवी सीता हैं न, हम सबकी आदर्श, उनके सतीत्व की अग्निपरीक्षा यह है। कोई और अग्निपरीक्षा कभी नहीं हुई। युद्ध पश्चात जो अग्निपरीक्षा का क्षेपक है, वह किसी की कल्पना मात्र है।

Valmikiya Ramayan प्रमदावन विध्वंसक हनुमान

विभीषण सुंदरकांड [धर्मार्थविनीतबुद्धिः परावरप्रत्ययनिश्चितार्थः] – ४९

विभीषण सुंदरकांड – आप कुछ को आदेश दें कि शत्रु पर आप की शक्ति दर्शाने हेतु वे अभियान करें, उन दो राजपुत्रों को पकड़ लायें।

पतनोन्मुख भारतीय शिक्षातंत्र व भविष्य

‘हमें चाहिये आजादी’ केवल उत्साही नारा मात्र नहीं, वह भी नहीं जो इसके सिद्धांतकार बताते फेचकुर फेंक देते हैं; यह तीव्र गति से पसर रहे एक घातक रोग का लक्षण है। इस रोग में उत्तरदायित्व का कोई स्थान नहीं, कर्तव्य पिछड़ी सोच है तथा बिना किसी आत्ममंथन के कि हम इस देश से जो इतना ले रहे हैं, कुछ दे भी रहे हैं क्या? केवल अधिकार भाव है, अतिक्रांत सी स्थिति।

Self-control Yoga Vasishtha आत्मसंयम : सनातन बोध – ६७

योगवासिष्ठ एक अद्भुत सनातन ग्रंथ है, साथ ही दर्शन तथा मनोविज्ञान की दृष्टि से भी यह ग्रंथ अद्वितीय है। शोध व अध्ययनों का सारांश है कि जिस व्यक्ति के पास लोभों से बचने का आत्मसंयम हो, दीर्घकाल में उसका जीवन अत्यंत सफल होता है।

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

रामायण सुंदरकांड [उत्तरं कर्म यच्छेषं निमित्तं तत्र राघवः] – ४८

रामायण सुंदरकांड – वीरभाव से अत्यंत सौष्ठव के साथ व्यक्त हनुमान के अप्रतिम वचन सुन कर दशानन के नेत्र मारे क्रोध के वक्र हो गये।

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

वाल्मीकि रामायण – ४७ : सुंदरकाण्ड से [दूतोऽहमिति विज्ञेयो राघवस्यामितौजसः]

वाल्मीकि रामायण – एक वानर, एक मनुष्य; दो नितांत भिन्न राजवंशों का, उनकी मैत्री की साखी बना उनका संयुक्त दूत कह रहा है, सुनो प्रभु!

मुर्दे को कलमा नहीं – एक गल्प

अगर आप हाल फिलहाल पाकिस्तान जाने वाले हों तो मुझसे उस गाँव का पता लेते जाइयेगा। वहाँ जहाँ मस्जिद दिखेगी न, वहीं केशव का घर था। दीनी कसाब को तो न घर मयस्सर हुआ और न कब्रिस्तान ही।

स्वास्थ्य संध्या नियमित दिनचर्या : सनातन बोध – ६६

आधुनिक अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार के समय में जहाँ लोग किसी भी नित्य-नियमित को व्यर्थ का बंधन व नीरस समझते हैं तथा प्रति दिन एक नए रूप में जीना चाहते हैं; क्या बँधी बँधाई दिनचर्या के विषय में मनोविज्ञान के कुछ निष्कर्ष उपलब्ध हैं?