PIED CRESTED CUCKOO 01

चातक PIED CRESTED CUCKOO

चातक  PIED CRESTED CUCKOO के प्रति लगाव भारतीय संस्कृति में गहन विविधता के साथ देखने को मिलता है। साहित्यिक रूपक  प्रतिमान  हों, वर्षा आगमन की सूचना देने वाले दूत की भूमिका हो या शुभ शकुनी की, चातक प्राचीन काल से ही प्रतिष्ठित है। वैज्ञानिक नाम: Clamater jacobinus हिन्दी नाम: चातक, सारंग, कपिञ्जल (संस्कृत) अंग्रेजी नाम:…

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा बैंक ग्राहकों की सुरक्षा के लिये नये निर्देश

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन फ्रॉड में ग्राहकों की सुरक्षा हेतु बैंकों की जिम्मेदारी बढ़ाते हुए दिशा-निर्देश जारी किया हैं।

सांख्य दर्शन : सनातन बोध: प्रसंस्करण, नये एवं अनुकृत सिद्धांत – 7

मनु बृहस्पति से कहते हैं कि मनुष्‍यों द्वारा हिमालय पर्वत का दूसरा पार्श्‍व तथा चन्‍द्रमा का पृष्‍ठ भाग देखा हुआ नहीं है तो भी इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि उनके पार्श्‍व और पृष्‍ठ भाग का अस्तित्‍व ही नहीं है। (२०३।६) यह वार्तालाप पढ़ते हुए कई संज्ञानात्मक पक्षपात सांख्य के मनोविज्ञानिक विश्लेषण की विशेषावस्था लगते हैं। संज्ञानात्मक पक्षपातों के सारे सिद्धांत इस कथन की तरह ही हैं। यह कथन आधुनिक व्यावहारिक मनोविज्ञान के हर पुस्तक की भूमिका है!

नर पक्षी ,प्रजनन अवस्था में घोसला बनाते हुए

बया BAYA WEAVER

बया Baya Weaverऔर उसके सुन्दर घोंसले। सर्वप्रिय सोन चिरी में नर कई घोंसले बनाने शुरू करता है पर जो घोंसला मादा को पसन्द आता है उसे ही पूरा किया जाता है।   वैज्ञानिक नाम: Ploceus philippinus हिन्दी नाम: बया, सोन चिरैया (भोजपुरी), सुघारी (गुजराती ), बबुई (बंगाली ), सुग्रह्कर्ता (संस्कृत), टोकोरा, टोकोरा चिरई (असम) चित्र…

संस्कृते अङ्कानांसंख्यानांच प्रयोगः (गताङ्कतः अग्रे)

त्रि (3) + त्रय(3) + अङ्ग(6) + पञ्च(5) +अग्नि(3) + कु(1) + वेद(4) + वह्नय(3); शर(5) + ईषु(5) + नेत्र(2) + अश्वि(2) + शर(5) + इन्दु(1) + भू(1) + कृताः(4)। वेद(4) + अग्नि(3) + रुद्र(11) + अश्वि(2) + यम(2) + अग्नि(3) + वह्नि(3); अब्धयः(4) + शतं(100) + द्वि(2) + द्वि(2) + रदाः(32) + भ (नक्षत्र) + तारकाः।

इस्राएल के अनुभवों से भारत क्या सीख सकता है?

What India can learn from Israel यशार्क पाण्डेय आज बदले माहौल में इस्राएल के अब तक के युद्ध अनुभव से भारत क्या सीख सकता है। साथ ही ऑपरेशन थंडरबोल्ट, एंटेबे की कहानी। साथ ही संनिघर्षण युद्ध (War of Attrition) की नीतियाँ। गतांक में हम इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद के विरुद्ध स्पेशल ऑपरेशन फ़ोर्स की…

संज्ञानात्मक पक्षपात inattentional blindness (सनातन बोध: प्रसंस्करण, नये एवं अनुकृत सिद्धांत – 6)

संज्ञानात्मक पक्षपात inattentional blindness का अध्ययन चेतना की दृष्टिहीनता को बताता है। सभी सनातन ग्रंथों में चैतन्य को सर्वश्रेष्ठ विज्ञान कहा गया है। सनातन बोध : प्रसंस्करण, नये एवं अनुकृत सिद्धांत – 1  , 2, 3, 4 और  5 से आगे  … संज्ञानात्मक पक्षपात संज्ञानात्मक पक्षपातों का अध्ययन इस बात का अध्ययन है कि हम किसी बात…

सनातन बोध: प्रसंस्करण, नये एवं अनुकृत सिद्धांत – 5

दुःख-सुख का उल्टा नहीं। उपलब्ध विकल्पों में हम उनको चुनते हैं जिसमें लाभ भले कम हो पर हानि होने के आसार ना हो। हम लाभ से ज्यादा हानि के प्रति सचेत होते हैं। (decision making economics behavioural science) सनातन बोध : प्रसंस्करण, नये एवं अनुकृत सिद्धांत – 1  , 2, 3 और  4 से आगे  … व्यावहारिक…

उपनयन संस्कार

उपनयन की पद्धतियों के ४ भाग दीखते है। विद्यारम्भ, वेदारम्भ, ब्रह्मचर्य व्रत, उपनयन। (१) विद्यारम्भ इसका एक लौकिक रूप है- खली छुआना। खली से स्लेट पर लिखते हैं। सबसे पहले वर्णमाला सीखते हैं। देवों का चिह्न रूप में नगर देवनागरी लिपि है। इसमें ३३ देवों के चिह्न क से ह तक स्पर्श वर्ण हैं। १६ स्वर मिलाने…

अवधी चिरइयाँ : SARUS CRANE सारस

सरहंस, उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी। प्रणय का प्रतीक ये अपना जोड़ा जीवन भर के लिए बनाते हैंi यदि किसी कारण एक की मृत्य हो जाये तो दूसरा वियोग में मर जाता है।

निवेश करना भी एक कला है

निवेश करना भी एक कला है जिसके लिए अनुशासन बहुत जरूरी है। निवेश करना एक विज्ञान भी है जिसके लिए एक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। निवेश बचत के बाद की सीढ़ी है। निवेश करना एक ऐसी कला है जिसके लिए अनुशासन बहुत जरूरी है। तो निवेश करना कला तो है ही साथ में एक विज्ञान…

संस्कृते अङ्कानांसंख्यानांच प्रयोगः

संस्कृते अङ्कानांसंख्यानांच प्रयोगः – संस्कृत तकनीकी ग्रंथों में अङ्‌क सङ्‌ख्या प्रयोग

संस्कृते अङ्कानांसंख्यानांच प्रयोगः संस्कृत तकनीकी ग्रन्थेषु  यथा ज्योतिष शास्त्रे, शुल्ब सूत्रे, आयुर्वेदे प्रायः अङ्कानां संख्यानां च प्रयोगे एका विशिष्टा शैली उपयुज्यते । अद्य एतोपरि चर्चा तथा उदाहरेण अवगन्तुं प्रयासं करिष्यामः । संस्कृतग्रन्थेषु गणितसंबन्धिने  बहुधा छन्दप्रयोगः अभवत्, पद्यरुपाः अस्माकं ग्रन्थाः । छन्दबाहुल्यः संस्कृत परम्परायाः विशिष्टता अस्ति, बहवः प्रकारकाः छन्दाः भवन्ति । गायत्रीत्रिष्टुप्अनुष्टुप इत्यादि विभिन्न छन्दानां नामाः…

कौटलीय अर्थशास्त्रे शब्दप्रयोगाः

मम लेखस्य विषयः कौटलीय अर्थशास्त्रे कतिपय राजपदानाम्, कर्तव्यानाम्, वस्तूनाम् चार्थे प्रयुक्ताः विभिन्नाः अप्रसिद्ध शब्दाः। वयं जानीमः शब्दार्थाः परिवर्तनशील सन्ति कालेन सह तेषां अर्थाः परिवर्तयन्ति (अर्थशास्त्रस्य कालखण्ड तृतीय-चतुर्थ शताब्दि ईसा पूर्वं मन्यन्ते) अतः शब्दानाम् अर्थे अधुनातः वैचित्र्यं लभ्यते। कतिचन् शब्दाः मम ध्यानाकर्षण अकुर्वन् अर्थशास्त्रे तेषां प्रयोगात् अधुना वयं अपरिचितः च अस्तु एषः लेखः। प्रथमे अधिकरणे आचार्यः…

नवसंवत्सरोऽयं

अद्य नवसंवत्सर पर्वः अस्ति। सामान्यतया अस्माकं भारत देशे कार्यालयेषु, वित्तकोषेशु, विद्यालयेषु सामान्यजनाः व्यवहारे ख्रीष्ट वर्षपदः उपयुज्यते।

ऋतूनां कुसुमाकरः!

वृहद्संस्कृतवाङ्ग्मये ऋतुराजवसन्तप्रयोगाः प्रचुराः, तेन पठने-पाठने कामोद्दीपनं जायते अतः सावधानतया सुस्थिर मनसा तेषु पठनीयम् 🙂 यद्यपि ‘श्रीर्हरति मुनेरपि मानसं वसन्तः’।
विकसितसहकारभारहारिपरिमलपुञ्जितगुञ्जित द्विरेफ:।
नवकिसलयचारुचामरश्रीर्हरति मुनेरपि मानसं वसन्तः॥

Holaka Krida(होलाका क्रीड़ा) : Annual Deva Yajna(देव यज्ञ) for Masses

ग्राफिक्स चित्र संदर्भ: http://newseastwest.com/wp-content/uploads/2017/01/lohri-celebrations.jpg http://img09.deviantart.net/183e/i/2010/087/3/8/holi_festival_2010_46_by_falln_stock.jpg  Holaka From the references of Sabara and Jaimini bhashya on Purvamimasa-sutra, it appears that the original word is होलाका. [1] होलाका is a festival of unmixed gaiety and frolics throughout India. Although, all parts of India don’t celebrate it same way, but one element is common across India i.e. element…

प्रीतिः मंजरीषु इव

वह आनंद-बोध ही क्या जिससे हम स्वयं भी रिक्त रहें तथा हमारा परिसर भी रिक्त रह जाये? जो गगन को आपूरित नहीं कर सकता वह गीत तथा जो मन को आपूरित नहीं कर सकता वह उत्सव व्यर्थ है! यह आपूरण विधि-निषेधों से परे है। यह न आदेश देने पर आता है, न रोकने पर रुक ही सकता है। यह तो जातीय-प्रवाह है! जिस “जाति” की शिराओं में गाढ़ा लाल रक्त प्रवाहमान रहे उस जाति के लिये आपूरण के क्षण आये बिना नहीं रह सकते। जिस जाति ने अनंगोत्सव तथा रंगोत्सव की कल्पना की, योजना बनायी, परम्परा चलायी, वह तपश्चर्या से, संयम से तथा चिंतन से सामाजिक मर्यादा का वास्तविक मूल्य भली-भाँति जानती थी; किन्तु वह लोक-धर्म भी पहचानती थी, इसीलिये वसंतोत्सव को उसने लोकोत्सव का रूप दिया।

आया बसन्त, अब मत सो

हिमाद्रेः संभूता सुललित करैः पल्लवयुता
सुपुष्पामुक्ताभिः भ्रमरकलिता चालकभरैः
कृतस्थाणुस्थाना कुचफलनता सूक्ति सरसा
रुजां हन्त्री गंत्री विलसति चिदानन्द लतिका।