नाम अमरकोश से : लघु दीप – ३६
चन्दन आदि को घिसने से उत्पन्न सुगन्धि को परिमल कहते हैं।
दूर तक पसरने वाली सुगन्ध को समाकर्षी एवं निर्हारी नाम दिये गये हैं।
सुगन्धि के चार नाम हैं – सुरभि, घ्राणतर्पण, इष्टगन्ध एवं सुगन्धि।
मुख को सुगन्धित करने वाले द्रव्य आमोदी एवं मुखवासन कहे गये हैं।
दुर्गन्ध के दो नाम हैं, पूतिगन्धि एवं दुर्गन्ध।
कच्चे मांस की गन्ध को विस्र एवं आमगन्धि नाम दिया गये हैं।
Phishing ठगी छल-योजनादि : सनातन बोध – ८९
Phishing ठगी छल-योजनादि – अज्ञानवश पतङ्ग दीपक की लौ में अपने को भस्म कर लेता है। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।
फ़िशिंग अर्थात् अन्तर्जाल पर कुशलतापूर्वक निर्मित छलयोजना से किसी व्यक्ति की मानसिक अवस्था को इस प्रकार साधित करना जिससे प्रभावित होकर वह अपनी गुप्त जानकारी, धन, प्रिय वस्तु इत्यादि गँवा बैठे। सुनने में ऐसा प्रतीत होता है मानो विरले कोई मूर्ख ही ऐसा करता होगा परंतु आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक युग में भी ठीक ऐसी ही योजनाएँ चलती हैं जिनमें फँसने वाले व्यक्तियों की संख्या प्रतिदिन लाखों में है।
Mallard नीलसर
Mallard नीलसर। संस्कृत में इनका सामान्य नाम कारण्डव है। इसे बन्धुर कारण्डव तथा मञ्जुप्लव भी कहते हैं – अथ बन्धुर: कारण्डव: प्लवो मञ्जु:।
प्रणयकाल में ये पक्षी बहुत अधिक ऊँचाई पर वृत्ताकार पथ पर उड़ते, कलरव एवं क्रीड़ा करते हुये पाये गये हैं। एक मादा को अनेक नर रिझाने के प्रयास करते हैं। इनकी यह क्रीड़ा नादावर्त्त कही गयी है – हंसकारण्डवचक्रवाकादीनाम् व्योम्नि क्रीडतामावर्त्तो नादावर्त्त:।
शतक सिंहावलोकन
शतक सिंहावलोकन,
आज मघा का शतकाङ्क है अर्थात इसे प्रकाशित होते हुये सौ पक्ष पूरे हो गये, कुल १४७७ दिन। विक्रम संवत २०७३ की पौष पूर्णिमा को इसका शून्याङ्क प्रकाशित हुआ था।
नानक की बाबरवाणी : द्वेष से खलासी असम्भव!
मुगलों के अत्याचार पर तुलसीदास ने भी लिखा – खेती न किसान को भिखारी को न भीख … किंतु उनका स्वर आक्रोश से भरे भक्त का है जिसमें लोक के प्रति करुणा ही करुणा है न कि नानक जैसे सूफी हिंसक आनन्द कि छाँई कि अच्छा हुआ जो ईश्वर ने इस प्रकार दण्डित किया।
गुरग्रन्थ में ‘मुक्ति’ हेतु ‘खलासी’ शब्द शताधिक बार दुहराया गया है किन्तु मूल के ही गड़बड़ होने के कारण खालिस्तानी द्वेष व मिथ्या श्रेष्ठताबोध के विष से ‘खलासी’ पायेंगे, इसमें शङ्का ही शङ्का है।