Hume, do you too sense, western Dharma films like The Matrix are allegories of Sanātana Darśana : सनातन बोध – 49

पश्चिमी दर्शन, फ़िल्म,साहित्य में सनातन दर्शन का संदर्भ मुख्यतया प्रायः बौद्ध दर्शन के रूप में मिलता है। सम्भवतः इसका कारण पश्चिमी अब्राहमिक धर्मों के ईश्वरदूत (prophet) के रूप में किसी एक व्यक्ति विशेष को देखने की प्रवृत्ति हो जिसे वे तथागत के रूप में देख इस दर्शन की ओर आकर्षित होते हों। परन्तु सत्य तो यह है कि बौद्ध दर्शन विस्तृत सनातन दर्शन का विरोधाभासी न होकर उस विशाल वटवृक्ष की एक विशेष शाखा ही है।

Indian Philosophy vs Western Philosophy : सनातन बोध – 48

उपनिषद भौतिक लक्ष्य से परे का दर्शन है। जबकि यूनानी दर्शन (प्लेटो) अनुसार मनुष्य अपनी ऊर्जा से भौतिक जीवन के उन्नत रूपों (forms) को पा सकता है। कठोपनिषद का लक्ष्य उन्नत रूप तथा भौतिक सुख के स्थान पर आत्म-अन्वेषण, बुद्धि और परम लक्ष्य की दिशा में है। यूनानी दार्शनिकों ने सनातन दर्शन के अनेक सिद्धांतों को अपना कर उन्हें पश्चिमी जनमानस के लिए पुनर्संस्कृत किया।

Holy Femme Fatales यत्र नार्यस्तु या कामिनी कंचन : सनातन बोध – 47

स्त्री-पुरुष में प्रकृति-प्रदत्त शारीरिक और प्रकृति के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए निर्मित विकासवादी-जनित कुछ मनोवैज्ञानिक भेद अवश्य हैं। जिनका पूर्ण अध्ययन अभी भी शेष है। स्त्री-पुरुष की कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जिन्हें हम सामान्यतया असमानता समझ लेते हैं। वास्तव में वो स्त्री-पुरुष की विशिष्टताएं हैं। इन विशिष्टताओं को श्रेष्ठ या निकृष्ट कह सौहार्द विखंडित करना अनुचित एवं मूर्खता है।

Maslow hierarchy of needs एवं पञ्चकोश : सनातन बोध – 46

ब्राज़ील के प्रोफ़ेसर पाउलो हायऐशी ने शंकराचार्य विरचित तत्वबोध और मास्लो के सिद्धांत में समानता देखी और दोनों को एक संदर्भ में अध्ययन करने का सुझाव दिया।

Intermittent Fasting उपवास एवं व्रत : सनातन बोध – 45

जैसे जैसे आधुनिक शोध आते जायेंगे, अनुभव एवं प्रेक्षण आधारित सनातन प्रज्ञा के निष्कर्ष सूत्र पुष्ट होते जायेंगे। मानवता एक प्रकार से स्वयं के पुनर्नुसन्‍धान में लगी है एवं भारत उसके मार्ग में सहस्रदीप जलाये हुये है।

Temptation and Self-control प्रलोभन एवं आत्मसंयम : सनातन बोध – 44

मनोविज्ञान में इसे अस्थायी कटौती (temporal discounting) भी कहते हैं, दीर्घकालिक लाभ की दूरदर्शी सोच के स्थान पर अल्पकालिक क्षणिक सुख के प्रलोभन में उलझना।

Live in the moment सत् चित्त आनंद : सनातन बोध – 43

Live in the moment चित्त एकाग्रता। आधुनिक मनोविज्ञान सत् चित्त आनंद की निष्पत्ति तक तो आ चूका है परन्तु उस स्थिति को प्राप्त करने का उपाय अभी आधुनिक मनोविज्ञान नहीं बता पा रहा परन्तु सनातन दर्शन इसका हल भी बताता है।

Illusory superiority ऐंद्रजालिक वरिष्ठता : सनातन बोध – 42

आधुनिक मनोविज्ञान के अनेकों अध्ययन निर्विवाद रूप से इस बात को सिद्ध करते हैं कि मनुष्य संज्ञानात्मक पक्षपात से अंधे होते हैं। मानसिक रूप से इस अंधेपन के साथ-साथ हमारे हठी एवं अतार्किक होने के भी प्रमाण मिलते हैं। यदि मनुष्य तार्किक एवं ग्रहणशील होते तो उन्हें तथ्यों को पढ़-समझ कर सत्य का आभास हो जाता तथा स्वयं की भ्रामक मान्यताओं को सुधारने में सहजता होती। परंतु ऐसा होता नहीं !

Hindu wedding marriage

Arranged Marriage Love Marriage ब्रह्म विवाह प्रेम विवाह : सनातन बोध – 41

विवाह का निर्णय युवाओं का, परंतु एक माता-पिता अपने बच्चों को भली भाँति जानते हैं। We have a very romantic view of marriage. Theirs is more pragmatic.

Perception and Reality अनुभूति व वास्तविकता : सनातन बोध – 40

क्या अनुभूतियाँ (perception) स्थिर न होकर देश, काल और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनशील होती हैं? जीवन में कभी चरम सौन्दर्य एवं अतिप्रिय लगने वाले उपादान भी क्या कभी कालान्तर में हमें व्यर्थ प्रतीत हो सकते हैं?

Ego Self-centeredness Selflessness अहम, आत्मविमोहता एवं नि:स्वार्थता : सनातन बोध – 39

मनोवैज्ञानिक इसे मानसिक व्याधियों से जोड़ते हैं, प्रमुख हैं – व्यग्रता (anxiety) एवं अवसाद (depression), सबका केंद्र –आत्म आसक्ति जिसकी जड़ – अहम (ego) !

Find your passion! Is it so? उत्कट कामना, जीवन सिद्धि? : सनातन बोध – 38

Find your passion! Is it so? हमें अपनी एक विशेष रुचि ‘पैशन’ ढूंढना होता है या फल की इच्छा बिना कर्म करना होता है। नए शोध सनातन दर्शन की ओर झुकते दिखाई पड़ते हैं।

अनासक्ति व प्रेम सम्बन्ध Detachment and Relationship : सनातन बोध – 37

अनुकम्पा और मोह से अनासक्त हो वस्तुनिष्ठ होने की बात है। भ्रान्ति से परे सम्बन्‍धों और संसार को समझने की बात है, सुखमय प्रेम और दाम्पत्य के लिए ।

Sanaatan Emerges as Science Moves On, Painful for the Scientist? सनातन बोध – 36

Post Modern Science Discoveries Resemblance to Sanaatana Knowledge. Is it Painful for Scientist? “…the main influence (on my work) is coming from Indian philosophy. I don’t know why. When I read it, I see that it very strongly fits into some quite modern schemes which appear in cosmology. …Many centuries before Greek philosophy appears, there were clever people who were just sitting and thinking — a lot of schools of people with very deep and profound thinking.” says Prof. Andrei Dmitriyevich Linde.

Cruel to Be Kind हितकर कठोरता : सनातन बोध – 35

संसार में कुछ भी आनन्‍ददायक तब तक नहीं, जब तक हम उसमें पारङ्गत नहीं हो जाते और किसी भी विषय में पारङ्गत होने के लिए कठिन परिश्रम आवश्यक है।

Chronic pain जीर्ण वेदना, वेदना प्रबन्‍धन, परिग्रह एवं अनासक्ति : सनातन बोध – 34

Chronic pain : पश्चिमी चेतना के चिकित्सा वर्ग हेतु इन सिद्धांतों को समझना कठिन है। स्वीकृति को सरलता से अवसाद या निराशा समझ लिया जा सकता है ।

Can Shame be Useful ? लज्जा का नियतभाव एवं धर्म : सनातन बोध – 33

Can Shame be Useful? लज्जा के विधायी प्रभाव एवं धर्म। मानव व्यवहार में परिवर्तन हेतु तर्कपूर्ण आंकड़ों और तथ्यों से अधिक प्रभावी सामाजिक संस्कार ही होते हैं। अध्ययन का सबसे रोचक निष्कर्ष यह था कि जो लोग अल्पाल्प नियंत्रण में रहते हैं, जिनके बन्धन और दायित्व अपेक्षतया न्यून होते हैं अर्थात जो व्यक्तिगत रूप से अधिक स्वतंत्र हैं उनके आत्महत्या करने की सम्भावना उतनी ही प्रबल भी होती है।

Love Attachment Theory प्रेम आसक्ति सिद्धान्‍त : सनातन बोध – 32

वर्णित सिद्धान्तों के आधार पर वे प्रेम संबंधों को दो रूपों में विभाजित करते हैं – आवेशी (Passionate) और साहचर्य (companionate)। इन दोनों का वर्णन जान लेने पर यह स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है कि आवेशी वह है जिसे ग्रंथो में कामुक या तामसी कहा गया है एवं साहचर्य अर्थात गृहस्थ और दाम्पत्य।

Illusion of objectivity वस्तुपरकता की भ्रान्ति : सनातन बोध – 31

Illusion of objectivity वस्तुनिष्ठता की भ्रान्ति : वैरी संचार माध्यम प्रभाव (Hostile media effect) -संचार माध्यमों पर अपर विचारधारा के समर्थन का दोष।

ultra-sociality reciprocity अतिसामाजिकता पारस्परिकता : सनातन बोध – 30

हमारा वर्तमान हमारे भूतकाल के विचारों से निर्मित होता है। हमारे वर्तमान के विचार हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। हमारा जीवन एक मानसिक सृष्टि है। – बुद्ध