Sundarkand सुंदरकांड – ५२ : विदा दें [सा निर्दहेदग्निं न तामग्निः प्रधक्ष्यति]
Sundarkand सुंदरकांड – ५२ : स्वयं को धिक्कारते चले गये, यदि दग्धा त्वियं लङ्का नूनमार्याऽपि जानकी। दग्धा तेन मया भर्तुर्हितं कार्यमजानता॥
Sundarkand सुंदरकांड – ५२ : स्वयं को धिक्कारते चले गये, यदि दग्धा त्वियं लङ्का नूनमार्याऽपि जानकी। दग्धा तेन मया भर्तुर्हितं कार्यमजानता॥
जिस प्रकार बहुदेववाद को भ्रम की भाँति न देखते हुए अपने इष्ट का चुनाव कर स्वयम की साधना/श्रम/लगन पर ध्यान देना ही सफलता दिलाने में सहायक होता है, उसी प्रकार कोई अकेला प्रसिद्ध विषय या प्रोग्रामिंग भाषा का चयन अपने आप से सफलता नहीं दिलाता। मूल मन्त्र एक ही है – आलस्य त्याग कर श्रम, साधना प्रारम्भ करने पर ही आपको अपना अभीष्ट प्राप्त होगा। उसी से चाहे आपके देवता हों या विषय, प्रसिद्ध और विकासमान होते हैं।