पुरा नवं भवति

पुरा नवं भवति

भारत में इतिहास को काव्य के माध्यम से जीवित रखा गया। स्वाभाविक ही है कि ऐसे में कवि कल्पनायें नर्तन करेंगी ही। कल्पना जनित पूर्ति दो प्रकार की होती है, एक वह जो तथ्य को बिना छेड़े शृङ्गार करती है, दूसरी वह जो तथ्य को भी परिस्थिति की माँग के अनुसार परिवर्तित कर देती है। दूसरी प्रवृत्ति की उदाहरण रामायण एवं महाभारत, दो आख्यानक इतिहासों, पर आधारित शताधिक रचनायें हैं जिनमें पुराण भी हैं। आख्यान का अर्थ समझ लेंगे तो बात स्पष्ट होगी। आख्यान आँखों देखी रचना होते हैं।

मूल में भी क्षेपक जोड़े गये जिनका अभिज्ञान कठिन है किन्तु असम्भव नहीं।

कृष्ण जन्माष्टमी व पुराण

कृष्ण जन्माष्टमी व पुराण

श्रीकृष्ण, एक नाम जिसने सम्पूर्ण भारत के स्नेह को स्वयं में सहस्राब्दियों से समाहित कर रखा है। कान्ह, कान्हा, कन्हैया, ठाकुर जी, रसिया, गोविन्‍द, रणछोड़, भगवान जैसे नामों से लोक में पुकारे जाते श्रीकृष्ण के विराट महामानवी रूप की परास ऐसी है कि वह प्रत्येक वय, प्रत्येक भाव, प्रत्येक कर्म को समो लेती है।

Shiva Linga Skanda

Shiva Linga Skanda शिव, लिङ्ग, स्कन्‍द [पुराण चर्चा-1, दशावतार एवं बुद्ध-4]

shiv linga skanda शिव, लिङ्ग एवं स्कन्‍द पुराण : दक्ष का यज्ञ ध्वंस साङ्केतिक भी है। शिव के लिये प्रयुक्त शब्द अमंगलो, अशिव, अकुलीन, वेदबाह्य, भूतप्रेतपिशाचराट्, पापिन्,  मंदबुद्धि, उद्धत, दुरात्मन् बहुत कुछ कह जाते हैं। इस पुराण के वैष्णव खण्ड में यज्ञ के अध्वर रूप की प्रतिष्ठा की गयी है, पशुबलि का पूर्ण निषेध है।   

puran-vishnu-dashavatar-buddha-parashuram-3

Brahmand Vayu Brahma ब्रह्माण्ड, वायु, ब्रह्म पुराण, [पुराण चर्चा -1, (राधा, परशुराम), विष्णु दशावतार तथा बुद्ध – 3]

राम जामदग्नेय को प्रतिहिंसक द्वेषी दर्शाया गया है जिसका विस्तृत विवरण ब्रह्माण्ड पुराण में अन्यत्र कहीं से ला कर जोड़ा गया है। इसकी पूरी सम्भावना है कि उस स्वतंत्र पाठ को विकृत करने के पश्चात जोड़ा गया।

Markandeya Vaman Koorma मार्कण्डेय वामन कूर्म [पुराण चर्चा-1, दशावतार व बुद्ध -2]

कलियुग के लक्षणों को गिनाते हुये इस पुराण में शुक्लदंताजिनाख्या, मुण्डा, काषायवासस: पद प्रयुक्त हुये हैं जिन्हें स्पष्टत: बौद्ध मत का परोक्ष उल्लेख कहा जा सकता है:

अट्टशूला जनपदाः शिवशूलाश्चतुष्पथाः  । प्रमदाः केशशूलिन्यो भविष्यन्ति कलौ युगे  ॥
शुक्लदन्ताजिनाख्याश्च मुण्डाः काषायवाससः  । शूद्रा धर्मं चरिष्यन्ति युगान्ते समुपस्थिते  ॥

Harivansha हरिवंश [ पुराण चर्चा – 1 : विष्णु दशावतार तथा बुद्ध – 1]

पुराणों में ही उल्लिखित विविध पुराण श्लोक संख्याओं का अब उपलब्ध श्लोक संख्याओं से भेद मिलता है। पुराण परम्परा निरन्‍तर अद्यतन होती रही है। Harivansha Puran हरिवंश पुराण।