पतनोन्मुख भारतीय शिक्षातंत्र व भविष्य

‘हमें चाहिये आजादी’ केवल उत्साही नारा मात्र नहीं, वह भी नहीं जो इसके सिद्धांतकार बताते फेचकुर फेंक देते हैं; यह तीव्र गति से पसर रहे एक घातक रोग का लक्षण है। इस रोग में उत्तरदायित्व का कोई स्थान नहीं, कर्तव्य पिछड़ी सोच है तथा बिना किसी आत्ममंथन के कि हम इस देश से जो इतना ले रहे हैं, कुछ दे भी रहे हैं क्या? केवल अधिकार भाव है, अतिक्रांत सी स्थिति।

खण्ड खण्ड आत्मघात

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के धर्म सङ्काय में अधार्मिक पंथ के अनुयायी की आचार्य पद पर हुई नियुक्ति का जो विरोध हुआ है, उसने हमारी अकादमिकी एवं पूरे शिक्षा तंत्र के एक बहुत बड़े सङ्कट को अनावृत्त किया है। जानते तो लोग बहुत पहले से हैं किंतु जैसा कि समस्त समस्याओं के साथ होता, कुछ दिनों पश्चात या तो समायोजन कर लिया जाता है या आँखें मूँद ली जाती हैं।