आमुख लेख

भारती संवत संवत्सर नाम

भारती संवत : संवत्सर नाम, मास एवं तिथियाँ (१, महाश्रावण, मास तप)

भारती संवत : संवत्सर नाम – इस वर्ष अस्त के पश्चात गुरु का उदय श्रावण नक्षत्र में होगा, अत: यह संवत्सर हुआ – महाश्रावण। मास : तप-मृगशिरा।
भारती संवत में महीना पूर्णिमा से आरम्भ हो कर शुक्ल चतुर्दशी को समाप्त होगा।
तिथि का गणित वही रहेगा जो है किन्तु यदि तिथि परिवर्तन सूर्योदय से सूर्यास्त के पूर्व कभी भी हो गया तो उस दिन वह तिथि मान ली जायेगी, भले उदया न हो। उदाहरण के लिये, कल पूर्णिमा सूर्य के रहते ही हो गई थी, अत: पूर्णिमा कल की मानी जायेगी।

Crisis ahead आसन्न सङ्कट : मिथ्या-दृष्टि का ग्रहण करने से दुर्गति

Crisis ahead आसन्न सङ्कट : मिथ्या-दृष्टि का ग्रहण करने से दुर्गति

Crisis ahead आसन्न सङ्कट – भय न करने की बात में भय देखते हैं, भय करने की बात में भय नहीं देखते; मिथ्या-दृष्टि से दुर्गति को प्राप्त होते हैं।

CAA व भ्रष्ट जिहादी युवा

सांस्कृतिक व मानवीय दृष्टि से भी ऐतिहासिक (CAA नागरिकता संशोधन अधिनियम) विधिक प्रावधान को मुस्लिम विरोधी बना कर प्रस्तुत किया गया। उसकी आड़ में ‘direct action’ और जिहाद का पूर्वाभ्यास किया गया।

Stop this fire यह आग रुकनी चाहिये।

हमारा समय ‘अवमुक्त’ समय है। अभिव्यक्ति स्वतन्त्रता के नाम पर, व्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर सामाजिक एवं धार्मिक निषेध बहुत तनु होते गये हैं। कहीं न कहीं हम अधिक स्वकेन्द्रित होते जा रहे हैं।

खण्ड खण्ड आत्मघात

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के धर्म सङ्काय में अधार्मिक पंथ के अनुयायी की आचार्य पद पर हुई नियुक्ति का जो विरोध हुआ है, उसने हमारी अकादमिकी एवं पूरे शिक्षा तंत्र के एक बहुत बड़े सङ्कट को अनावृत्त किया है। जानते तो लोग बहुत पहले से हैं किंतु जैसा कि समस्त समस्याओं के साथ होता, कुछ दिनों पश्चात या तो समायोजन कर लिया जाता है या आँखें मूँद ली जाती हैं।

elections and pseudo

चुनाव, लोकतंत्र गुणवत्ता, सुरक्षा संकट एवं शत्रुबोध

आज जब कि युद्ध के उपादान, समय, क्षेत्र, अवधि, माध्यम आदि में विशाल विविधता आ चुकी है, सुरक्षा की ‘सकल स्थिति’ पर विचार करने की आवश्यकता है।

उत्तिष्ठ हरि शार्दूल लङ्घयस्व महार्णवम्

उत्तिष्ठ हरि शार्दूल। भीरुता की परिपाटी तोड़ने के लिए समय-समय पर नए हनुमान प्रस्तुत करना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। इस देश में हरि शार्दुल तभी पैदा हो पाएंगे।

हम कभी दीर्घ ‘लाभ’ की नहीं सोचते

चार दिन का है खेला रे; को नृप होंहि हमहिं का हानी को जीते हम दीर्घ लाभ नहीं देखते। संसार के किसी भी वाङ्मय में ऐसा कुछ भी अनूठा नहीं है जो हमारे यहाँ नहीं।

जिहादी मुल्क एवं बनिया देश

चूँकि युद्ध एवं विनाश एक दूसरे के पर्याय हैं, कोई भी विकसित उत्पादक समाज युद्ध नहीं चाहता, जब कि लुटेरा सदैव चाहता है जिसकी युद्ध की अपनी परिभाषा होती है — संरक्षण हेतु नहीं, लूट हेतु। जिहाद उसी प्रकार का युद्ध है।

पुलवामा, कम्युनिस्ट वैचारिकी एवं प्रबुद्ध वर्ग का पतन

आधुनिक भारत की समस्या उसके प्रबुद्ध वर्ग के घोर पतन की है। जन सामान्य सदैव ऐसे ही रहे हैं। वांछित सुखद परिवर्तन प्रबुद्ध वर्ग की उत्कृष्टता में अभिवृद्धि से होते हैं, उनके पतन से देश का पतन होता है। प्रबुद्ध वर्ग निराशा भरा है।

Dynamo, आर्यावर्त एवं भारत

हिन्दी क्षेत्र की असफलता उस चुम्बक-युक्ति में गति के अभाव से समझी जा सकती है जिसमें बल था, क्षमता थी किंतु नहीं थी तो सार्थक गति नहीं थी। आर्यावर्त का Dynamo मात्र पङ्गु ही नहीं है, वरन चलने की उसमें इच्छा ही नहीं है !

पितृविसर्जन, नवरात्र, नवोन्मेष, उद्योग

पितृविसर्जन हो गया जो आगत एक वर्ष हेतु हमें अपने मूल से जोड़ उद्योग रत होने की ऊर्जा दे गया कि हम उन्नति करेंगे तो पितरों का भी सम्मान बढ़ेगा एवं वे ‘तृप्त’ होंगे। जहाँ यह पक्ष कर्मकाण्डीय तिलाञ्जलि द्वारा उनकी तृप्ति का प्रतीकात्मक आयोजन होता है, वहीं शेष वर्ष के 23 पक्ष अपने कर्मों द्वारा उन्हें तृप्त करने के होते हैं।

मघा सहित सूर्य चंद्र

मघा नक्षत्र में सूर्य प्रति वर्ष प्राय: अंतर्राष्ट्रीय सौर दिनाङ्क 17 अगस्त से 30 अगस्त तक रहते हैं। ऐसे में यदि चंद्र का संयोग भी मघा के साथ बने तो इन ‘तीनों के साहित्य’ पर साहित्य अङ्क आना चाहिये, कल की अमावस्या और आज की शुक्ल प्रतिपदा की युति के नेपथ्य में यही भाव है।  …