Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम्

Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम् : रामायण – ५५

Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम् – – मैंने पिघले कञ्चन के समान सुंदर वर्ण वाली सीता को देखा। उन कमलनयनी का मुख उपवास के कारण कृश हो गया था।

Sundarkand सुंदरकांड उत्तरं पारं – ५३ : [रामदर्शनशीघ्रेण प्रहर्षेणाभिचोदितः]

हनुमान सागर को एक विशाल जलपोत की भाँति पार कर रहे हैं। आकाश, क्षितिज और सागर मिल कर कैसा दृश्य उपस्थित कर रहे हैं!
सूर्य और चन्द्र दोनों दिख रहे हैं।

Sundarkand सुंदरकांड

Sundarkand सुंदरकांड – ५२ : विदा दें [सा निर्दहेदग्निं न तामग्निः प्रधक्ष्यति]

Sundarkand सुंदरकांड – ५२ : स्वयं को धिक्कारते चले गये, यदि दग्धा त्वियं लङ्का नूनमार्याऽपि जानकी। दग्धा तेन मया भर्तुर्हितं कार्यमजानता॥

Sundarkand सुंदरकांड

लंकादहन की भूमिका – सुंदरकांड [प्रदीप्तलाङ्गूलस्सविद्युदिव तोयदः] – ५१

लंकादहन की भूमिका – किरणों के घेरे में परम तेजस्वी सूर्य सम प्रकाशित मारुति द्वारा चलाये जाते परिघ का सम्पूर्ण बिम्ब भासमान हो उठता है।

Fire ordeal अग्निपरीक्षा

Fire ordeal अग्निपरीक्षा सुंदरकांड [यदि चास्त्येकपत्नीत्वं शीतो भव हनूमतः] – ५०

यदि चास्त्येकपत्नीत्वं शीतो भव हनूमतः । शिशिरस्य इव सम्पातो लाङ्गूल अग्ने प्रतिष्ठितः!  …
जो देवी सीता हैं न, हम सबकी आदर्श, उनके सतीत्व की अग्निपरीक्षा यह है। कोई और अग्निपरीक्षा कभी नहीं हुई। युद्ध पश्चात जो अग्निपरीक्षा का क्षेपक है, वह किसी की कल्पना मात्र है।

Valmikiya Ramayan प्रमदावन विध्वंसक हनुमान

विभीषण सुंदरकांड [धर्मार्थविनीतबुद्धिः परावरप्रत्ययनिश्चितार्थः] – ४९

विभीषण सुंदरकांड – आप कुछ को आदेश दें कि शत्रु पर आप की शक्ति दर्शाने हेतु वे अभियान करें, उन दो राजपुत्रों को पकड़ लायें।

Valmiki Ramayan Sundarkand Valmikiya Ramayan वाल्मीकीय रामायण

रामायण सुंदरकांड [उत्तरं कर्म यच्छेषं निमित्तं तत्र राघवः] – ४८

रामायण सुंदरकांड – वीरभाव से अत्यंत सौष्ठव के साथ व्यक्त हनुमान के अप्रतिम वचन सुन कर दशानन के नेत्र मारे क्रोध के वक्र हो गये।

दिक्काल, चिरञ्जीवी हनुमान, ⍍t➛0 एवं हम

दिक्काल : जो उद्योगी एवं लक्ष्य आराध्य समर्पित चिरञ्जीवी हनुमान हैं न, आज उनके जन्मदिवस पर उनसे ही सीख लें। ढूँढ़िये तो अन्य किन सभ्यताओं में दिक्काल को निज अस्तित्व से मापते चिरञ्जीवियों की अवधारणा है?

Valmikiya Ramayan प्रमदावन विध्वंसक हनुमान

आदिकाव्य रामायण से – 24 : सुन्‍दरकाण्ड, [तृणमन्तरतः कृत्वा – तिनके की ओट से]

आदिकाव्य रामायण से – तिनके की ओट से पर स्त्रियों के अपहरण एवं बलात्कार को अपना धर्म बता कर रावण उस परम्परा का प्रतिनिधि पुरुष हो जाता है जो आज भी माल-ए-ग़नीमत की बटोर में लगी है। येजिदी, कलश नृजातीय स्त्रियों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं! उन अत्याचारियों के लिये भी पराई पीड़ा का कोई महत्त्व नहीं, केवल लूट की पड़ी है।