Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम् : रामायण – ५५
Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम् – – मैंने पिघले कञ्चन के समान सुंदर वर्ण वाली सीता को देखा। उन कमलनयनी का मुख उपवास के कारण कृश हो गया था।
Sundarkand रामपत्नीं यशस्विनीम् – – मैंने पिघले कञ्चन के समान सुंदर वर्ण वाली सीता को देखा। उन कमलनयनी का मुख उपवास के कारण कृश हो गया था।
Sundarkand सुंदरकांड – ५२ : स्वयं को धिक्कारते चले गये, यदि दग्धा त्वियं लङ्का नूनमार्याऽपि जानकी। दग्धा तेन मया भर्तुर्हितं कार्यमजानता॥
दिक्काल : जो उद्योगी एवं लक्ष्य आराध्य समर्पित चिरञ्जीवी हनुमान हैं न, आज उनके जन्मदिवस पर उनसे ही सीख लें। ढूँढ़िये तो अन्य किन सभ्यताओं में दिक्काल को निज अस्तित्व से मापते चिरञ्जीवियों की अवधारणा है?