वस्त्र गाथा और नारीवाद

वस्त्र गाथा

भाँति भाँति का फैशन क्या है और महिलाओं में वस्त्रों को लेकर प्रतिस्पर्धा कहाँ से आई? इस प्रश्न का एक शब्द में उत्तर है बाजारवाद। कुछ दिन पहले टहलते समय मेरी लगभग दस साल की बेटी ने प्रश्न किया कि क्या बड़े होने पर लड़कियों को छोटे कपडे नहीं पहनने चाहिए?

आकाओं के कान नहीं, हमारे हाथ पाँव नहीं! प्रतिरोध हो भी तो कैसे?

आकाओं के कान नहीं, हमारे हाथ पाँव नहीं! प्रतिरोध हो भी तो कैसे?

निर्माण में समय लगता है, ध्वंस में नहीं। निर्माण में नहीं लगेंगे तो एक दिन ध्वस्त हो ही जायेंगे – यह सार्वकालिक व सार्वभौमिक सच है। हमें अपनी ‘सचाइयों’ में आमूल-चूल परिवर्तन करने ही होंगे, और कोई उपाय नहीं। ट्विटर या फेसबुक पर रुदाली गाना तो किसी भी दृष्टि से विकल्प नहीं, आकाओं के कान हैं ही नहीं!